पति की अर्थी को कंधा देने वाला कोई नहीं था, तब वो खुद श्मशान पहुंची और निभाया 7 फेरों का फर्ज

कोरोना संक्रमण किस तरह लोगों की 'भावनाओं से खेल' रहा है, यह घटना इसका उदाहरण है। रायसेन के रहने वाले एक शख्स का भोपाल में इलाज चल रहा था। लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। जब उसके अंतिम संस्कार की बात आई, तो सिवाय पत्नी के दूसरा कोई साथ नहीं था। ऐसी कठिन परिस्थिति में भी पत्नी ने हिम्मत नहीं खोई और पति की अंतिम क्रिया खुद पूरी की। सबसे बड़ी बात, पति की अर्थी को कंधा देने चार लोग भी मौजूद नहीं थे। बच्चे घर पर होने से नहीं आ सके।

Asianet News Hindi | Published : Apr 25, 2020 4:54 AM IST

भोपाल, मध्य प्रदेश. खुशियों में लोग भले शामिल न हों, लेकिन उम्मीद की जाती है कि वे दु:ख की घड़ी में जरूर आएंगे। लेकिन कोरोना संक्रमण ने इसमें भी अड़चनें पैदा कर दी थीं। कोरोना संक्रमण किस तरह लोगों की 'भावनाओं से खेल' रहा है, यह घटना इसका उदाहरण है। रायसेन के रहने वाले एक शख्स का भोपाल में इलाज चल रहा था। लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। जब उसके अंतिम संस्कार की बात आई, तो सिवाय पत्नी के दूसरा कोई साथ नहीं था। ऐसी कठिन परिस्थिति में भी पत्नी ने हिम्मत नहीं खोई और पति की अंतिम क्रिया खुद पूरी की। सबसे बड़ी बात, पति की अर्थी को कंधा देने चार लोग भी मौजूद नहीं थे। बच्चे घर पर होने से नहीं आ सके।

कोई नहीं था साथ..
भोपाल से करीब 45 किमी दूर रायसेन जिले के रहने वाले अमित अग्रवाल कोरोना संदिग्ध थे। शुक्रवार को भोपाल के हमीदिया हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था। इस वक्त उनकी पत्नी वर्षा के अलावा कोई उनके साथ नहीं था। अमित अपने पिता के साथ टिफिन सेंटर चलाता था। बुधवार को सांस लेने में दिक्कत के बाद उन्हें रायसेन के जिला हास्पिटल में भर्ती कराया गया था। वहां से गुरुवार को उन्हें भोपाल के हमीदिया हास्पिटल में रेफर कर दिया गया था। यहां उन्हें कोविड वार्ड में भर्ती कराया गया था। उनकी पत्नी रायसेन के सहकारी बैंक में काम करती हैं। उनका एक देवर भी हमीदिया में भर्ती है। बाकी परिजन लॉकडाउन के कारण बाकी परिजन रायसेन में थे। उनके दो बच्चे हैं। एक 8 और दूसरा 5 साल का। ऐसे में मासूम बच्चों को साथ में लाना भी संभव नहीं था।

सिर्फ सहेली आई मदद को आगे...
वर्षा अपने पति की देह रायसेन ले जाना चाहती थी, लेकिन संक्रमण को देखते हुए इसकी इजाजत देना संभव नहीं था। आखिरकार वर्षा ने अपनी एक सहेली की मदद ली और एम्बुलेंस से पार्थिव देह सुभाषनगर विश्रामघाट लेकर आई। यहां जरूर उसकी सहेली अपने पिता के साथ पहुंच गई थी। विश्राम घाट के कुछ कर्मचारी भी मदद को आगे आए। पति की चिता का अग्नि देने के बाद पत्नी आंखों में आंसू लिए अकेली ही रायसेन को रवाना हो गई।
 

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