Mandatory Marathi signboards Controversy in Maharashtra : दुकानों के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में मराठी साइनबोर्ड लगाने की अनिवार्यता को चुनौती देने वाले व्यापारियों को बॉम्बे हाईकोर्ट ने राहत नहीं दी। कोर्ट ने कहा कि मराठी महाराष्ट्र की मातृभाषा है। ऐसे में इसे लिखने की अनिवार्यता को भेदभाव नहीं कहा जा सकता है।
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High court) ने बुधवार को रिटेल ट्रेडर्स एसोसिएशन (Retail Treders association) की एक याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में ट्रेडर्स एसोसिएशन ने पूरे महाराष्ट्र में दुकानों के बाहर मराठी साइनबोर्ड की अनिवार्यता को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने माना है कि अनिवार्य मराठी साइनबोर्ड का नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है।
मराठी महाराष्ट्र की मातृभाषा, भेदभाव नहीं कह सकते
कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाने के साथ ही इसे सीएम राहत कोष में जमा कराने के आदेश दिए हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि मराठी महाराष्ट्र की मातृभाषा है और किसी भी दुकान या अन्य स्थानों के बाहर मराठी साइनबोर्ड अनिवार्य करने के नियम को भेदभाव नहीं कहा जा सकता है।
क्या है मामला
जनवरी में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार की कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित कर सभी छोटी - बड़ी दुकानों में बड़े अक्षरों में मराठी भाषा में साइनबोर्ड लगाने के नियम को मंजूरी दी थी। ट्रेडर्स एसोसिएशन ने इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए अनिवार्यता को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
दुकानों में तोड़फोड़ की मिल रही थी चुनौती
दरअसल, यह नियम लागू होने के बाद से दुकानदारों को सुरक्षा का डर सता रहा था। कुछ समय पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने भी इसे लेकर धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि 'दुकानदार सोच लें कि साइनबोर्ड बदलने का खर्च ज्यादा आएगा या दुकान के कांच बदलने का खर्च ज्यादा होगा।'
दुकानदारों को क्या आपत्ति
इस विवाद के बढ़ने के बाद फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स ऐंड वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेन शाह ने कहा था कि दुकानों के बोर्ड मराठी में लिखने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन फॉन्ट साइज को लेकर आपत्ति है। उन्होंने सरकार से दुकानों की सुरक्षा करने की मांग की थी। शिवसेना सांसद संजय राउत का कहना था कि लोग महाराष्ट्र में रहते हैं और मराठी का विरोध करते हैं। इसलिए उन्हें मराठी में बोर्ड लगाने चाहिए।
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