पिछले साल उच्च न्यायालय ने पाइपलाइन के पास 'अनधिकृत' घरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था जिससे करीब 15,000 परिवार विस्थापित हो गए और बृहन्मुंबई नगर पालिका (बीएमसी) ने विस्थापित लोगों को प्रदूषित क्षेत्र माहुल की एक आवासीय कॉलोनी में स्थानांतरित कर दिया था जहां ऑयल प्यूरीफायर और केमिकल यूनिट्स स्थित हैं।
मुंबई (Mumbai). मुंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मुंबई के अत्यधिक प्रदूषित माहुल इलाके में लोगों के रहने से न सिर्फ उनके स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है, बल्कि आसपास के क्षेत्र में स्थित ऑयल प्यूरीफायरों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता पैदा हो सकती है।
मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार किसी भी व्यक्ति को माहुल में ऐसी आवासीय कॉलोनी में रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। बेंच लोगों के एक समूह की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जो तंसा पाइपलाइन पर अपने अनधिकृत घरों के गिराए जाने के बाद विस्थापित हो गए हैं। यह पाइपलाइन शहर के कई हिस्सों से गुजरती है।
उच्च न्यायालय की एक अन्य बेंच द्वारा अप्रैल 2019 में पारित एक आदेश पर भरोसा करते हुए मुख्य न्यायाधीश नंदराजोग की अगुवाई वाली बेंच ने सोमवार को कहा कि सरकार को या तो विस्थापितों को अन्यत्र आवास मुहैया करना होगा या उन्हें हर महीने 15,000 रुपये किराए के तौर पर देने होंगे ताकि वे अपना आवास खोजें। पिछले साल उच्च न्यायालय ने पाइपलाइन के पास 'अनधिकृत' घरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था जिससे करीब 15,000 परिवार विस्थापित हो गए। बृहन्मुंबई नगर पालिका (बीएमसी) ने विस्थापित लोगों को प्रदूषित क्षेत्र माहुल की एक आवासीय कॉलोनी में स्थानांतरित कर दिया था जहां ऑयल प्यूरीफायर और केमिकल यूनिट्स स्थित हैं।
लोगों ने रहने से कर दिया था मना
कई परिवारों ने यह कहते हुए माहुल जाने से इनकार कर दिया कि वहां की हवा प्रदूषित है और वहां स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी हैं। बेंच ने सोमवार को कहा कि स्पष्ट है कि ऐसे ऑयल प्यूरीफायरों के आसपास आवासीय परिसर बहुआयामी जोखिम पैदा करते हैं। यह न केवल आसपास के निवासियों के स्वास्थ्य तक सीमित हैं, बल्कि इन ऑयल प्यूरीफायरों का इस्तेमाल करके आतंकवादी हमले का खतरा भी है और इस तरह के आतंकवादी हमले से मुंबई शहर के भीतर भारी नुकसान होगा। बेंच द्वारा आदेश पारित किए जाने के बाद बीएमसी ने इस पर रोक लगाने की मांग की ताकि वह उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सके। लेकिन बेंच ने रोक लगाने से इनकार कर दिया।
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