8 साल की उम्र में मैरिज, 24 की उम्र में गांधीजी के कहने पर ज्वेलरी छोड़ी, ऐसी थीं वीरांगना जानकी देवी बजाज

भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में लाखों लोगों ने योगदान दिया। हजारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऐसे हैं, जिनके बारे में हम जानते हैं। लेकिन तमाम ऐसे भी हैं, जिनके बारे में कम लोग जानते हैं। ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों को पहचान दिलाने आजादी के अमृत महोत्सव के तहत प्रयास जारी हैं।

कला डेस्क. भारत को स्वतंत्र कराने के लिए लाखों देशवासियों ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया था। इनमे से काफी लोगों को हम नाम से जानते हैं। लेकिन हजारों स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी हैं, जो गुमनाम हो गए। इन्ही गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए केंद्र सरकार आजादी के अमृत महोत्सव(Azadi Ka Amrit Mahotsav) के अंतर्गत भारत की गौरवशाली गाथाओं को जीवंत बनाने में जुटी है। इसके तहत विभिन्न कार्यक्रम हो रहे हैं। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत ही 'ब्लू फैदर थियटर' संस्था ने वीरांगना जानकी देवी बजाज पर एक नाटक कथनी-करनी:जानकी देवी बजाज का मंचन किया।  9 जुलाई को मुंबई के आराम नगर स्थित मुम्बा थियटर एंड फिलम्स, आराम नगर में खेला गया यह नाटक इसलिए महत्वपूर्ण बन गया, क्योंकि जानकी देवी बजाज की जिंदगी किसी फिल्म स्टोरी जैसी ही रही है। 

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प्ले में यह दिखाया गया
नाटक के आरम्भ में जानकी देवी बजाज को आजादी के बीते दिनों को याद करके अपने पति स्व. जमना लाल की यादों में खोया और बातें करते दिखाया गया है। फिर वो अपनी कहानी दर्शकों को बताना शुरू करती हैं कि किन परिस्थितियों में उनकी शादी केवल 8 वर्ष की उम्र में हो गई थी। किस तरह उन्होंने अपने सारे गहने 24 साल की उम्र में गांधी जी के कहने पर त्याग दिए थे। उस समय मारवाड़ी समाज में घूंघट प्रथा काफी प्रचलित थी। जानकी देवी ने ने गांधी जी के कहने पर इस प्रथा को छोड़ने का निर्णय लिया। जानकी मैया ने समझ लिया था कि घूंघट से अधिक आवश्यक है शिक्षा। उन्होंने खादी का प्रचार किया और अपने घर में 60 चरखों का वर्ग ही खोल डाला था।

उन्होंने शराब के विरोध में आवाज उठाई और नमक आंदोलन में भी भाग लिया, जिसके लिए वो जेल गईं और उन्हें काफी शारीरिक तकलीफों का सामना करना पड़ा। यहां तक की उन्होंने अपने क़ीमती जरी-गोटे वाले विदेशी कपडे़ और भगवान की बनी विदेशी पोशाकें भी आग में झोंक दी थीं। गौ-सेवा और विनोबा भावे जी के साथ भूदान में बढ़-चढ़ का हिस्सा लिया और 108 कुंए खुदवा डाले।

यह थी प्ले की टीम
नाटक समकालीन परिस्तिथियों को दर्शाता है। दरअसल, आज भी कई समुदायों में शिक्षा से अधिक घूंघट और अन्य दकियानूसी प्रथाओं पर जोर दिया जाता है। यह नाटक शिक्षित होने विशेषकर रंग भेद पर कड़ा प्रहार करता है। जानकी मैया का रंग भले की काला और ऊपर से चेचक के दाग वाला था, परन्तु आखिर में उनकी पहचान उनके काम से ही बनी न की शारीरिक सुंदरता से। नाटक का लेखन एवं निर्देशन सीनियर एक्टर और निर्देशक मो. शाहनवाज़ ने किया। शहनवाज पिछले 20 सालों से इस फील्ड में काम कर रहे हैं। वे प्रोफेशनल एक्टर  के तौर पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में 6 वर्ष और श्रीराम सेंटर रंगमंडल में 2 वर्ष तक काम कर चुके हैं।

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