
Rape victim want to terminate 26 weeks pregnancy: बांम्बे हाईकोर्ट में एक 14 साल की बच्ची ने न्याय की गुहार लगाते हुए अपने पेट में पल रहे 26 सप्ताह के भ्रूण को खत्म करने की अनुमति मांगी है। किशोरी के गर्भ में पल रहा बच्चे, उसके साथ हुए रेप का परिणाम है। रेप का दंश झेल रही बच्ची नहीं चाहती है कि वह शिशु को जन्म दे। हाईकोर्ट ने जेजे हॉस्पिटल को पीड़िता की मेडिकल टेस्ट कर रिपोर्ट मांगी है। 2 नवम्बर को कोर्ट फिर से इस मामले की सुनवाई करेगा तब वह तय करेगा कि बच्ची का गर्भ गिराया जाए या नहीं?
जेजे हास्पिटल का मेडिकल बोर्ड सौंपेगा रिपोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस माधव जामदार, जस्टिस कमल खाता की अवकाशकालीन पीठ ने की है। पीठ यौन उत्पीड़न पीड़िता के पिता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें लड़की के 26 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी गई थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड गठित कर रिपोर्ट दो नवम्बर को मांगी है। इस दिन कोर्ट सुनवाई कर आदेश देगा।
चाचा ने अपनी ही भतीजी के साथ किया था रेप
याचिका में बताया गया है कि पीड़िता के साथ उसके चाचा ने नवंबर 2021 से कई बार कथित तौर पर बलात्कार किया। इस महीने ही परिजन को इस बाबत पता चला। दरअसल, पीड़िता के पेट में दर्द की शिकायत के बाद उसे डॉक्टर के पास परिवारीजन लेकर गए। वहां उसके गर्भवती होने का खुलासा हुआ। इसके बाद परिवार में हड़कंप मच गया। डॉक्टर के अनुसार गर्भवती बच्ची के पेट में 26 महीने का भ्रूण है। इसके बाद परिजन ने आरोपी के खिलाफ बीते 24 अक्टूबर को केस दर्ज कराया।
अधिवक्ता तनवीर निज़ाम और मरियम निज़ाम ने बहस के दौरान कोर्ट को बताया कि पुलिस ने पॉक्सो व आईपीसी की विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज कर लिया। पीड़िता की ओर से दोनों अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि पीड़िता समाज के निम्न सामाजिक-आर्थिक तबके से ताल्लुक रखती है। इसलिए यह गर्भावस्था अत्यधिक पीड़ा और आघात का कारण बन रही। पीड़ित खुद एक बच्ची है और वह गर्भावस्था को जारी नहीं रखना चाहती। इसलिए कोर्ट प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति दे।
क्यों कोर्ट पहुंचा मामला?
दरअसल, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों के तहत 20 सप्ताह की अवधि के बाद गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती जब तक कि हाईकोर्ट से अनुमति नहीं ली जाती। ऐसे में अब इस मामले में हाईकोर्ट ही कुछ आदेश दे सकता है।
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