100 की भीड़ लाठी डंडों के साथ पुलिस के सामने 3 लोगों पर टूट पड़ी, 2 संतों समेत तीन की मौत

जानकारी के मुताबिक, दोनों संत मुंबई से अपने के एक मित्र के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए सूरत जा रहे थे। इसी दौरान अचानक रात को कासा पुलिस थाने के पास गडचिंचले गांव मे ग्रामीणों उनकी गाड़ी को रोक दिया। फिर तीनों पर करीब 100 से ज्यादा लोगों ने लाठी-झंडे और पत्थरों से हमला बोल दिया। घटना के वक्त मौक पर पुलिस भी मौजूद थी।

Asianet News Hindi | Published : Apr 19, 2020 12:23 PM IST / Updated: Apr 19 2020, 06:24 PM IST

मुंबई.  कोरोना के कहर के बीच महाराष्ट्र के पालघर से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई। जहां गुरुवार रात गडचिनचले गांव में भीड़ ने जिन 3 लोगों की चोर समझकर पीट-पीटकर हत्या की थी उनकी पहचान हो गई है। उनमें से दो साधु-संत हैं। जबिक एक उनका ड्राववर था।

2 सतों समेत ड्राइवर की हत्या
दरअसल, जिन तीन लोगों की हत्या हुई थी, उनमें से दो की पहचान 35 साल के सुशीलगिरी महाराज और 70 साल के चिकणे महाराज कल्पवृक्षगिरी संत के रूप में हुई है। जबकि तीसरा व्यक्ति उनका ड्राइवर 30 साल का निलेश तेलगड़े था।

पुलिस के सामने 100 लोग 3 पर टूट पड़े
जानकारी के मुताबिक, दोनों संत मुंबई से अपने के एक मित्र के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए सूरत जा रहे थे। इसी दौरान अचानक रात को कासा पुलिस थाने के पास गडचिंचले गांव मे ग्रामीणों उनकी गाड़ी को रोक दिया। फिर तीनों पर करीब 100 से ज्यादा लोगों ने लाठी-झंडे और पत्थरों से हमला बोल दिया। बताया जाता है कि घटना के वक्त मौक पर पुलिस भी मौजूद थी।

पुलिस ने 110 लोगों को किया गिरफ्तार
हैरानी की बात यह कि जब पुलिसकर्मियों ने भीड़ को रोकना चाहा तो भीड़ ने पुलिस पर ही हमला बोल दिया। जिससे सिपाही अपनी जीप मौके पर छोड़कर भाग खड़े हुए। हालांकि, बाद में पुलिस ने गांव के करीब 110 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर उनको हिरासत में ले लिया है।

थाना प्रभारी ने बताया पूरा मामला
मामले की जानकारी देते हुए कासा पुलिस स्टेशन प्रभारी आनंदराव काले ने बताया- यह घटना कर्फ्यू के दौरान गुरुवार रात 9:30 से 10 बजे के बीच में हुई थी।  तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए पालघर के सरकारी अस्पताल में भिजवा दिया गया था। जांच में यह भी सामने आया ही कि ग्रामीणों ने मृतकों को कार से बाहर निकाला और उन पर पत्थर और लाठियों से हमला कर दिया। ग्रामीण उनको चोर मान बैठे थे, जबकि ऐसा नहीं था।

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