
अहमदाबाद. गुजरात में बड़े पैमाने पर दलित धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। हिंदू धर्म में छुआछूत और भेदभाव के शिकार दलित लगातार बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं। इसी क्रम में राज्य के अलग-अलग इलाकों में अब तक 1,500 दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लिया है।
शाहीबाग स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल मेमोरियल में रविवार (27 अक्टूबर) को हुए इस कार्यक्रम का आयोजन बुद्ध लाइट इंटरनेशनल असोसिएशन (BLIA) की गुजरात इकाई की ओर से किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता बीएलआईए के धार्मिक प्रमुख और ताइवान के बौद्ध भिक्षु हसीन बाऊ ने की। इस कार्यक्रम में 1500 दलितों ने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
देश-विदेश से शामिल हुए लोग-
देश-विदेश के बौद्ध भिक्षुओं ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान लोगों ने पहले बीएलआईए में रजिस्ट्रेशन कराया और उसके बाद बौद्ध धर्म का पालन करने का संकल्प लिया। इस कार्यक्रम के दौरान बीएलआईए की गुजरात यूनिट के पूर्व अध्यक्ष और दासादा विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक नौशाद सोलंकी और बीजेपी के पूर्व सांसद रतिलाल वर्मा भी मौजूद थे।
बौद्ध धर्म पालन का लिया संकल्प
बीएलआईए के गुजरात अध्यक्ष तुषार श्रीपाल ने बताया कि करीब 1400 लोगों ने इस कार्यक्रम के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। वहीं, बीएलआईए गुजरात के वरिष्ठ सलाहकार सोलंकी के मुताबिक, 1400 लोगों के अलावा कार्यक्रम में ऐसे काफी लोग मौजूद थे, जिन्होंने पहली बार बौद्ध धर्म का पालन करने का संकल्प लिया।
सवर्णों के अत्याचार को बताया धर्म परिवर्तन की वजह
सौराष्ट्र के सुरेंद्रनगर में रहने वाली मंजुला मकवाना ने धर्म परिवर्तन की बजह बताई। उन्होंने कहा- ‘‘मैंने इस कार्यक्रम में अपने पति घनश्याम मकवाना और 3 बच्चों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। बौद्ध धर्म को अपनाने का एकमात्र कारण समानता है। बतौर हिंदू हमें समानता का अधिकार नहीं दिया गया है। अनुसूचित लोगों (दलितों) के खिलाफ भेदभाव व अत्याचार होता है। हम अपने क्षेत्र में सुरेंद्रनगर में सवर्णों के अत्याचार से परेशान हैं।’’
परिवार के 25 लोगों ने बदला धर्म
अहमदाबाद के नरोदा में रहने वाले निसर्ग परमार पेशे से इंजीनियर हैं। साथ ही, वह बीबीए का कोर्स भी कर रहे है। इस कार्यक्रम में बौद्ध धर्म अपनाने वाले वह दूसरे दलित शख्स हैं। निसर्ग के परिवार के करीब 25 लोगों ने इस कार्यक्रम में बौद्ध धर्म अपनाया। परमार ने बताया, ‘‘हम हिंदू धर्म का पालन करते थे, लेकिन हमें इसमें मौजूद भेदभाव पसंद नहीं है। बौद्ध धर्म समानता का संदेश देता है। ऐसे में हमने आज बौद्ध धर्म का पालन करने का संकल्प लिया। जातिवाद खत्म होगा और लोगों को समान अधिकार और समाज में सम्मान होगा तो भारत का विकास होगा।