कृषि मंत्री तोमर बोले- किसान कानून वापसी पर अड़े, इसलिए बातचीत नतीजे तक नहीं पहुंची; इसका मुझे दुख

कृषि कानूनों पर विरोध कर रहे किसानों और सरकार के बीच शुक्रवार को 11वें दौर की बातचीत दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई। बैठक 3 घंटे चली। बैठक में सरकार ने किसानों के सामने नया प्रस्ताव रखा। सरकार ने कहा कि वे कृषि कानूनों के अमल पर 2 साल तक रोक लगाने के लिए तैयार हैं। अगर किसान इस प्रस्ताव पर तैयार हैं, तो आगे की चर्चा के लिए शनिवार को अगले दौर की बैठक हो सकती है। यह जानकारी किसान नेता राकेश टिकैत ने दी।

नई दिल्ली. कृषि कानूनों पर विरोध कर रहे किसानों और सरकार के बीच शुक्रवार को 11वें दौर की बातचीत दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई। बैठक करीब 3 घंटे चली। लेकिन यह भी बेनतीजा रही। इसी के साथ सरकार ने अगले दौर की बैठक के लिए तारीख भी नहीं दी है। हालांकि, सरकार ने कृषि कानूनों पर डेढ़ साल तक के लिए रोक लगाने वाले प्रस्ताव पर किसानों से दोबारा विचार करने के लिए कहा है।

बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, भारत सरकार की कोशिश थी कि वो सही रास्ते पर विचार करें जिसके लिए 11 दौर की बातचीत की गई। लेकिन किसान यूनियन कानून वापसी पर अड़ी रही। सरकार ने एक के बाद एक प्रस्ताव दिए। लेकिन जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता। 

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उन्होंने कहा, बातचीत के दौर में मर्यादाओं का तो पालन हुआ परन्तु किसानों के हक में वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो, इस भाव का सदा अभाव था इसलिए वार्ता निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे भी दुख है। 

प्रस्ताव पर दोबारा विचार करें किसान
नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, हमने किसान यूनियन को कहा कि जो प्रस्ताव आपको दिया है, 1 से 1.5 साल तक कानून को स्थगित करके समिति बनाकर आंदोलन में उठाए गए मुद्दों पर विचार करने का प्रस्ताव बेहतर है, उसपर फिर से विचार करें। 

सरकार दो साल तक रोक लगाने के लिए तैयार- राकेश टिकैत
बैठक में सरकार ने किसानों के सामने नया प्रस्ताव रखा। सरकार ने कहा कि वे कृषि कानूनों के अमल पर 2 साल तक रोक लगाने के लिए तैयार हैं। अगर किसान इस प्रस्ताव पर तैयार हैं, तो आगे की चर्चा के लिए शनिवार को अगले दौर की बैठक हो सकती है। यह जानकारी किसान नेता राकेश टिकैत ने दी।

वहीं, राकेश टिकैत ने बताया कि 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। इससे पहले 20 जनवरी को किसानों और सरकार के बीच बैठक हुई थी। इसमें सरकार ने कृषि कानूनों पर दो साल के लिए रोक लगाने की बात कही थी। हालांकि, किसानों ने इस पेशकश को ठुकरा दिया।

 घमंड अच्छी बात नहीं- उमा भारती
किसानों की बैठक से पहले भाजपा नेता उमा भारती ने कहा, किसानों और सरकार को मिलकर बात करनी चाहिए। जैसा 1989 में हुआ था। किसी भी पक्ष के लिए ईगो रखना ठीक नहीं है।

 

क्या 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे?

दिल्ली पुलिस ने 26 जनवरी का ट्रैक्टर मार्च रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ही फैसला करे कि दिल्ली में किसे आने देना है और किसे नहीं। ऐसे में कोर्ट में सुनवाई के बाद किसानों और दिल्ली पुलिस के बीच मार्च निकालने को लेकर बातचीत हुई। दो बार की बातचीत में पुलिस और किसान अपनी बात पर अड़े रहे। दिल्ली पुलिस मार्च की अनुमति नहीं दे रही है और किसान मार्च निकालने पर अड़े हैं। ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा, सरकार को आंदोलन के मूड को समझना चाहिए और उसके अनुसार काम करना चाहिए। दिल्ली के आउटर रिंग पर किसान इकट्ठा होने लगे हैं। हम 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। 

10वें दौर की बातचीत में सरकार ने रखे दो प्रस्ताव

इससे पहले 10वें दौर की बैठक में सरकार ने किसानों के सामने दो प्रस्ताव रखे थे। केंद्र ने कहा था कि सरकार डेढ़ साल तक कृषि कानून लागू नहीं करेगी। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी हलफनामा पेश करेगी। इसके अलावा एमएसपी पर बातचीत के लिए कमेटी बनाई जाएगी।

9 दौर की बातचीत में क्या कुछ भी बात नहीं बनी?

किसानों और सरकार के बीच 10वें दौर की बातचीत में सरकार ने जो प्रस्ताव दिया, उसपर किसानों ने कहा था आपस में बात करके बताएंगे। लेकिन इससे पहले किसानों और सरकार के बीच 9 दौर की बातचीत हो चुकी है। 9 दौर की बातचीत में किसानों और सरकार के बीच कोई बात नहीं बनी। सरकार ने दिसंबर 2020 में हुई बातचीत में किसानों की दो मांग मान ली थी। 30 दिसंबर की मीटिंग में 2 मुद्दों पर सहमति बनी थी। पहला, पराली जलाने पर केस दर्ज नहीं होंगे। अभी 1 करोड़ रुपए जुर्माना और 5 साल की कैद का प्रावधान है। सरकार ने इसे हटाने पर हामी भर दी है। दूसरा, बिजली अधिनियम में बदलाव नहीं किया जाएगा। किसानों का आशंका है कि इस कानून से बिजली सब्सिडी बंद हो जाएगी। अब यह कानून नहीं बनेगा। 

तो किसान सरकार से  किन-किन बात पर अड़े हैं?

किसानों की साफ मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द किया जाए। इसके नीचे वे किसी भी प्रस्ताव पर मानने के लिए तैयार नहीं है। किसान ये भी चाहते हैं कि एमएसपी पर अलग से कानून बने। ताकि उन्हें सही दाम मिल सके।

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