समलैंगिक विवाह पर सुशील मोदी बोले- दो जज नहीं कर सकते यह तय, तबाह हो जाएगा नाजुक संतुलन

Published : Dec 19, 2022, 06:09 PM ISTUpdated : Dec 19, 2022, 06:10 PM IST
समलैंगिक विवाह पर सुशील मोदी बोले- दो जज नहीं कर सकते यह तय, तबाह हो जाएगा नाजुक संतुलन

सार

भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के मुद्दे पर भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि यह दो जज तय नहीं कर सकते। इसके चलते पर्सनल लॉ का नाजुक संतुलन तबाह हो जाएगा।    

नई दिल्ली। भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को मांग किया कि अगर कोई लड़का लड़के से और लड़की लड़की से विवाह (same sex marriage) करती है तो इसे कानूनी मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। समलैंगिक विवाह देश की संस्कृति के खिलाफ है। अगर इसे अनुमति मिलती है तो यह पर्सनल लॉ के नाजुक संतुलन को तबाह कर देगा। 

राज्यसभा के शून्यकाल में सुशील मोदी ने कहा कि भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ या किसी और असंहिताबद्ध पर्सनल लॉ में समलैंगिक विवाह को न तो मान्यता दी जाती है और न ही स्वीकार किया जाता है। समलैंगिक विवाह देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन को तबाह कर देगा। 

सुशील मोदी ने केंद्र सरकार से कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाया जाए तो समलैंगिक विवाह के खिलाफ दृढ़ता से अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, "दो जज एक कमरे में बैठकर इस सामाजिक मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकते। संसद में इस पर बहस होनी चाहिए। इस पर समाज में बहस होनी चाहिए।"

सुप्रीम कोर्ट में होने वाली है समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता के मामले में सुनवाई
बता दें कि 14 दिसंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने देश के विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित समलैंगिक विवाहों की कानूनी मान्यता की मांग संबंधी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में  ट्रांसफर करने पर विचार करने पर सहमत हुई थी। याचिकाओं में मांग की गई है कि ऐसे विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कानूनी मान्यता दी जाए।

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24 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा था। कोर्ट ने मामले में सहायता करने के लिए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से अनुरोध किया था। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर सुनवाई होने की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के अपने फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। 

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2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का विरोध किया था। केंद्र सरकार ने कहा था कि भारत में विवाह को केवल तभी मान्यता दी जा सकती है जब वह पुरुष और महिला के बीच हो।

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