भारत में पिछले साल साल में 200 से ज्यादा ऐतिहासिक महत्व की प्राचीन प्रतिमाएं वापस लाई जा चुकी हैं। पिछले दिनों पीएम मोदी ने बताया था कि 2013 तक करीब 13 प्रतिमाएं ही भारत लाई जा सकी थीं, लेकिन पिछले सात साल में 200 से ज्यादा बहुमूल्य प्रतिमाओं को भारत वापस लाया जा चुका है।
नई दिल्ली। भारत एक बार फिर ऐतिहासिक महत्व की 29 प्रतिमाएं ऑस्ट्रेलिया से वापस लाया है। इनमें भगवान शिव, उनके शिष्य, शक्ति की पूजा, भगवान विष्णु और उनके रूप, जैन परंपरा, चित्र और सजावटी वस्तुएं शामिल हैं। ये पुरावशेष अलग-अलग समय के हैं। यह 9-10 शताब्दी ईस्वी पूर्व के हैं। मुख्य रूप से ये बलुआ पत्थर, संगमरमर, कांस्य, पीतल और कागज में उकेरी गईं मूर्तियां और पेंटिंग हैं। यह प्राचीन मूर्तियां राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल से हैं। सोमवार को इनके वापस आने पर पीएम मोदी ने इनका निरीक्षण किया।
7 साल में 200 से ज्यादा प्रतिमाएं भारत आईं
भारत में पिछले साल साल में 200 से ज्यादा ऐतिहासिक महत्व की प्राचीन प्रतिमाएं वापस लाई जा चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी को ‘मन की बात’ में भारत की प्राचीन मूर्तियाें का जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि इन मूर्तियों को वापस लाना भारत मां के प्रति हमारा दायित्व है। पीएम मोदी ने बताया था कि 2013 तक करीब 13 प्रतिमाएं ही भारत लाई जा सकी थीं, लेकिन पिछले सात साल में 200 से ज्यादा बहुमूल्य प्रतिमाओं को भारत सफलता के साथ वापस लाया जा चुका है। उन्होंने बताया था कि इन मूर्तियों को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, हॉलैंड, कनाडा, सिंगापुर और जर्मनी जैसे देशों से वापस लाया गया है। कुछ समय पहले काशी से चोरी हुई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा वापस लाई गई थी। इसके बाद 10वीं शताब्दी की दुर्लभ नटराज की प्रतिमा लंदन से राजस्थान लाई जाएगी। यह मूर्ति बाड़ौली के प्राचीन घाटेश्वर मंदिर से 1998 में चोरी हुई थी। अब यह प्रतिमा उसी मंदिर में स्थापित की जा सकती है।
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फरवरी में तमिलनाडु से चुराई गई 500 साल पुरानी प्रतिमा लाए थे घर
इस साल फरवरी में, संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने जानकारी दी थी कि तमिलनाडु से एक दशक पहले चुराई गई भगवान हनुमान की 500 साल पुरानी मूर्ति को घर लाया गया था। यूएस होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा दोबारा प्राप्त की गई चोरी गई प्रतिमा को 23 फरवरी को यूएस चार्ज डी' अफेयर्स द्वारा कैनबरा में भारतीय उच्चायोग को सौंप दिया गया था।
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