विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि जिस वक्त चंद्रयान-3 की लांचिंग की जा रही थी, उस वक्त पीएम मोदी ब्रिक्स समिट में शामिल हो रहे थे। जैसे-जैसे लांचिंग की टाइमिंग नजदीक आती गई, वहां की चर्चा भी चंद्रयान पर केंद्रित हो गई।
S. Jaishankar On Chandrayaan-3. दक्षिण अफ्रीका में हाल में संपन्न हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ही भारत का चंद्रयान-3 मिशन सफल हुआ। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उस समय की स्थितियों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे चंद्रयान-3 की लांचिंग टाइम नजदीक आती गई, वैसे-वैसे वहां चर्चा का केंद्र चंद्रयान ही बन गया। भारत के 75 मिलियन डॉलर के चंद्रमा मिशन ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा और वैश्विक स्तर पर स्पेस एजेंसीज ने भी इसकी तारीफ की। दुनिया के कई देशों की सरकारों ने भी भारत के कम बजट के सफल मिशन पर दिल खोलकर प्रशंसा की है।
सबसे ज्यादा उत्सुक दिखे अफ्रीकी प्रेसीडेंट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि पिछले सप्ताह जोहांसबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने पीएम मोदी के बगल में बैठने की इच्छा जाहिर की। जैसे ही चंद्रयान-3 मिशन की सफलता सामने आई ब्रिक्स नेताओं की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया आने लगी। रामफोसा तो इतने उत्साहित दिखे कि उन्होंने इसे अपने देश की उपलब्धि की तरह सेलीब्रेट किया। वे चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अच्छे वाइब्स का आनंद लेना चाहते थे। उन्होंने चंद्रयान-3 की सफलता के बाद पीएम मोदी के बगल में बैठने की भी इच्छा जाहिर की।
विदेश मंत्री ने याद किए महत्वपूर्ण क्षण
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विक्रम की लैंडिंग के दौरान महत्वपूर्ण क्षणों को याद किया और कहा कि एक बड़ी स्क्रीन पर मिशन की सफलता को प्रदर्शित किया गया। राष्ट्रपति रामाफोसा ने मजाक में टिप्पणी की, कि मंत्री चंद्रयान की प्रगति में तल्लीन दिख रहे हैं। जैसे-जैसे उत्साह बढ़ता गया तो रामफोसा ने पीएम मोदी के बगल में बैठने के बारे में एक हल्का-फुल्का लेकिन उत्साही बयान दिया और उनकी इच्छा है कि वे पीएम मोदी के बगल में बैठें और पॉजिटीव एनर्जी का आनंद लें। इसके बाद पीएम मोदी ने ब्रिक्स नेताओं को धन्यवाद दिया और विशेष तौर पर राष्ट्रपति रामफोसा की प्रशंसा को स्वीकार किया। प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि इस सफलता को किसी एक देश की सीमित सफलता के रूप में नहीं बल्कि मानव जाति की महत्वपूर्ण सफलता के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
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