ग्लेशियर टूटने के बाद बनी आर्टिफिशयल झील ने बढ़ाई टेंशन, हलचल पता करने लगाई सेंसर डिवाइस

उत्तराखंड के चमोली में 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने के बाद ऋषि गंगा के ऊपरी हिस्से में एक आर्टिफिशयल झील बन गई है। आशंका है कि इस झील में 4.80 करोड़ लीटर पानी भरा हो सकता है। झील कहीं वहां बने डैम की दीवार पर तो प्रेशर नहीं डाल रही, इसका पता करने वहां एक सेंसर डिवाइस लगाई गई है। वहीं, इंडियन नेवी, एयरफोर्स और एक्सपर्ट की टीम के डाइवर्स ने झील की गहराई मापी।
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 21, 2021 10:26 AM IST

चमोली, उत्तराखंड. चमोली में ग्लेशियर टूटने की घटना को भले तीन हफ्ते हो चुके हों, लेकिन लोगों को अभी भी खतरे का अंदेशा बना हुआ है। ग्लेशियर टूटने के बाद ऋषि गंगा के ऊपरी हिस्से में एक आर्टिफिशयल झील बन गई है। आशंका है कि इस झील में 4.80 करोड़ लीटर पानी भरा हो सकता है। झील कहीं वहां बने डैम की दीवार पर तो प्रेशर नहीं डाल रही, इसका पता करने वहां एक सेंसर डिवाइस लगाई गई है। वहीं, इंडियन नेवी, एयरफोर्स और एक्सपर्ट की टीम के डाइवर्स ने झील की गहराई मापी। बता दें कि 7 फरवरी यानी रविवार की सुबह करीब 10 बजे समुद्र तल से करीब 5600 मीटर की ऊंचाई पर 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का ग्लेशियर टूटकर गिर गया था। इससे धौलीगंगा और ऋषिगंगा में बाढ़ की स्थिति बन गई।

रिसर्च में लगे वैज्ञानिक 
-ऋषि गंगा के ऊपरी हिस्से में बनी आर्टिफिशियल झील से डैम को कितना खतरा है या नहीं, इसका आकलन करने इंडियन नेवी, एयरफोर्स और एक्सपर्ट की टीम ने मुआयना किया। यहां से मिले डेटा के आधार पर आगे की स्थिति का आकलन किया जाएगा।
-झील के अंदर होने वाली हलचल का पता लगाने विशेषज्ञों की एक टीम वहां तैनात की गई है। टीम ने ऋषिगंगा नदी में सेंसर लगाया गया है। जैसे ही नदी का जलस्तर बढ़ेगा, अलार्म बज उठेगा। SDRF ने कम्युनिकेशन के लिए यहां एक डिवाइस भी लगाई है।
-विशेषज्ञों की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि यह झील करीब 750 मीटर लंबी है, लेकिन आगे जाकर संकरी हो गई है। इसकी गहराई आठ मीटर है। नेवी के डाइवर्स हाथ में ईको साउंडर लेकर झील की गहराई मापने अंदर उतरे। वैज्ञानिक यह रिसर्च कर रहे हैं कि अगर भविष्य में यह झील टूटती है, तो डैम को कितना नुकसान होगा।
-इस झील की तुलना केदारनाथ के चौराबाड़ी से की जा रही है। बता दें कि 2013 में केदारनाथ के ऊपरी हिस्से में 250 मीटर लंबी, 150 मीटर चौड़ी और करीब 20 मीटर गहरी झील के टूटने से आपदा आ गई थी। तब इससे प्रति सेकंड करीब 17 हजार लीटर पानी बहा था।
-आर्टिफिशियल झील का निरीक्षण करने पहुंची टीम का नेतृत्व उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (USAC) के डायरेक्टर एमपीएस बिष्ट कर रहे हैं। टीम में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और USAC के 4-4 वैज्ञानिक भी शामिल हैं। साथ ही ITBP और DRDO के वैज्ञानिकों ने भी झील का मुआयना किया।
-इस बीच आपदा के बाद तपोवन में NTPC की टनल में तलाशी अभियान अभी भी जारी है। इस हादसे में 140 लोग अभी भी लापता हैं।

 

 

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