
Ahmedabad Plane Crash: एयर इंडिया का बोइंग 7878 (फ्लाइट AI 171) गुरुवार दोपहर को हादसे का शिकार हो गया। 242 लोगों को ले जा रहा विमान अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान भरने के तुरंत बाद क्रैश हो गया। हादसे में सभी की मौत हो गई। प्लेन के क्रैश होने से कुछ समय पहले पायलट ने 'Mayday' कॉल किया था। आइए जानते हैं यह मेडे कॉल क्या है और इसकी शुरुआत कब हुई।
'मेडे' कॉल हवाई यात्रा के क्षेत्र में बेहद गंभीर संकट के समय दिया जाने वाला मैसेज है। विमान के पायलट को जब लगता है कि हादसा होने जा रहा है। स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर है तब वह मेडे कॉल करता है। इसका मतलब है कि विमान को तुरंत सहायता की जरूरत है। पूरी दुनिया में विमान से जुड़ी इमरजेंसी के समय 'मेडे' कॉल किया जाता है। इससे भाषा संबंधी बाधा दूर होती है। अंग्रेजी नहीं जानने वाला व्यक्ति भी 'मेडे' कॉल सुनकर समझ जाता है कि फ्लाइट खतरे में है।
'मेडे' शब्द 1920 के दशक के आरंभ में लंदन के क्रॉयडन एयरपोर्ट के रेडियो अधिकारी फ्रेडरिक स्टेनली मॉकफोर्ड द्वारा गढ़ा गया था। उन्होंने इसे फ्रांसीसी फ्रेज m'aider ("मेरी मदद करो") की तरह सुनाई देने के चलते चुना। ताकि इसे क्रॉस-चैनल यातायात में आसानी से समझा जा सके। 1923 तक यह पायलटों और नाविकों के लिए अंतरराष्ट्रीय रेडियो संचार का हिस्सा बन गया। 1927 में मोर्स "SOS" के साथ इसे औपचारिक रूप से अपनाया गया।
जब कोई पायलट रेडियो पर "मेडे, मेडे, मेडे", बोलता है तो वह जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली आपात स्थिति की घोषणा कर रहा होता है। कहता है कि उसे तत्काल मदद की जरूरत है। इतना होते ही ATC (Air Traffic Control) उस कॉल को सबसे अधिक प्राथमिकता देता है। दूसरे सभी गैर-आवश्यक रेडियो ट्रैफिक को बंद कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद पायलट कॉल साइन, स्थान, इमरजेंसी की प्रकृति और विमान में सवार लोगों की संख्या जैसी जानकारी देता है।
1923 में क्रॉयडन-ले बौर्गेट फ्लाइट में "मेडे" का प्रयोग शुरू हुआ। अंतरराष्ट्रीय रेडियोटेलीग्राफ कन्वेंशन ने इसे 1927 में औपचारिक रूप दिया। आज के समय किसी भी मेडे सिग्नल के लिए इमरजेंसी फ्रीक्वेंसी (121.5 मेगाहर्ट्ज और 243 मेगाहर्ट्ज) पर एटीसी द्वारा लगातार निगरानी रखी जाती है।