पांच राज्यों में चुनाव के पहले अमित शाह ने की दिल्ली वाररूम में मीटिंग: यूपी सबसे बड़ी चुनौती क्यों?

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में यूपी में फिर वापसी को लेकर बीजेपी परेशान है। यूपी में पार्टी की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि तीन राज्यों में वापसी बेहद आसान है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यूपी में ही है। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 13, 2021 3:22 PM IST

नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने अगले साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतियां बनानी शुरू कर दी है। बुधवार को शाह ने दिल्ली के अपने वॉर रूम में मीटिंग कर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) के लिए मंथन किया। फरवरी और मार्च में पंजाब (Punjab), गोवा (Goa), मणिपुर (Manipur), उत्तराखंड (Uttarakhand) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है। पंजाब को छोड़कर चार राज्यों में बीजेपी का ही शासन है। 

यूपी है लग रहा बीजेपी को सबसे मुश्किल

दरअसल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में यूपी में फिर वापसी को लेकर बीजेपी परेशान है। यूपी में पार्टी की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि तीन राज्यों में वापसी बेहद आसान है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यूपी में ही है। 

काफी मुश्किलों के बाद सीएम के खिलाफ असंतोष शांत लेकिन...

कई महीने पहले, भाजपा को अपने सबसे प्रमुख नेताओं में से एक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के खिलाफ असंतोष की सुगबुगाहट को शांत करने के लिए काफी प्रयास करना पड़ा था। हालांकि, असंतोष तो शांत हो गया लेकिन कई सहयोगी दल नाराज चल रहे थे। पार्टी नेतृत्व और गृहमंत्री अमित शाह के प्रयासों का नतीजा रहा कि अपना दल (Apna Dal) और पार्टी के अंदर का विरोधी धड़ा लाइन पर आया। निषाद पार्टी (Sanjay Nishad) भी गठबंधन को लेकर स्थितियों को साफ कर दी। लेकिन इन सबका जश्न मनाने का मौका पार्टी को मिलता कि विरोधियों को गोरखपुर में मनीष गुप्ता (Manish Gupta Case) द्वारा पुलिसिया पिटाई के कारण मौत और लखीमपुर खीरी कांड (Lakhimpur Kheri Case) हो गया। 

मनीष गुप्ता प्रकरण तो शांत लेकिन लखीमपुर खीरी गले की हड्डी बनी

हालांकि, पार्टी ने मनीष गुप्ता प्रकरण को तो सुलझा लिया और लोगों के गुस्से को शांत कर दिया लेकिन लखीमपुर खीरी कांड में असमंजस की स्थितियां बरकरार है। दो दिन पहले यूपी के वरिष्ठ भाजपा (BJP) नेताओं ने दिल्ली में पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा (J P Nadda) से मुलाकात की थी। सूत्रों ने कहा कि चार घंटे की बैठक का एजेंडा, 3 अक्टूबर की घटनाओं को लेकर चर्चा की गई। यूपी भाजपा के नेताओं ने दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात की और आगामी विधानसभा चुनावों पर चर्चा की थी।

अजय मिश्र के इस्तीफा के विकल्पों को तलाशा जा रहा

लखीमपुर खीरी कांड के मुख्य आरोपी आशीष मिश्र (Ashish Mishra) के पिता और केस में आरोपी बनाए गए गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा (Ajay Mishra Teni) ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है। किसानों और विपक्ष का दबाव इनके इस्तीफा के लिए बढ़ता ही जा रहा है। सूत्रों की मानें तो अपने विकल्पों का पता लगा सकती है और आगे की राह तय कर सकती है।

ब्राह्मण चेहरे को हटाने से नुकसान से डर रही

दरअसल, पार्टी नेतृत्व की बैठकों और शाह की बुधवार की मीटिंग में भी सबसे बड़ा सवाल यही था कि अजय मिश्र के इस्तीफे के बाद से क्या ब्राह्मण नाराज नहीं होगा। यह इसलिए क्योंकि पार्टी की अंदरुनी रिपोर्ट्स के अनुसार 2017 के चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद पर ठाकुर जाति के योगी आदित्यनाथ की नियुक्ति के बाद ब्राह्मण परेशान हैं। अगर उनके समुदाय में से एक अजय मिश्रा इस्तीफा दे देते हैं, तो क्या वे नाराज हो सकते हैं।

क्यों ब्राह्मण मतों को खोना नहीं चाहती बीजेपी

बीजेपी यूपी में दूसरे कार्यकाल के लिए योगी आदित्यनाथ को चेहरा बनाने जा रही है। लेकिन उसे ब्राह्मण समाज का 11 प्रतिशत वोट भी चाहिए। योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के शुरूआत में ब्राह्मण विभिन्न वजहों से नाराज होता चला गया जिसे फिर से पूरी तरह से अपने पाले में करने के लिए बीजेपी पूरी मेहनत कर रही है। राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस जाति को पाले में करने के लिए बीजेपी ने यूपी कैबिनेट में कई ब्राह्मण चेहरों को जगह दी, यूपी से ही ताल्लुक रखने वाले लखीमपुर खीरी के सांसद अजय मिश्र टेनी को केंद्रीय सरकार में जगह दी। लेकिन किसान आंदोलन के दौरान किसानों के कुचलकर मारे जाने की घटना ने नेतृत्व को एक बार फिर परेशान कर दिया है।

बीजेपी कार्यकर्ताओं को जनता में उतारने के लिए बड़ा आयोजन

भाजपा ने उत्तर प्रदेश के लिए 100 दिनों में 100 कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है। यह इसलिए ताकि बीजेपी के लोग जनता के बीच बने रहे और लोगों की नाराजगी दूर होने के साथ साथ कार्यकर्ता भी व्यस्त रहें। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत विभिन्न जातियों और समुदायों को जोड़ने के लिए जनसभाएं, घर-घर अभियान, केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान और युवा सम्मेलन शामिल होंगे।

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