पढ़-लिखकर अपनी जिंदगी संवारेंगे अनामलाई टाइगर रिजर्व के दुर्गम इलाकों के आदिवासी, शुरू हुआ एक प्रोजेक्ट

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-गन्ना प्रजनन संस्थान (ICAR-SBI), कोयंबटूर ने अनामलाई बाघ अभ्यारण्य (ATR) की मदद से यहां के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवनस्तर में सुधार लाने उन्हें शिक्षित करने एक प्रोजेक्ट शुरू किया है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 7, 2022 5:19 AM IST

कोयंबटूर, तमिलनाडु. तमिलनाडु के अन्नामलाई बाघ अभयारण्य(Annamalai Tiger Reserve) एरिया में रहने वाले आदिवासियों के जीवनस्तर में सुधार लाने एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-गन्ना प्रजनन संस्थान (ICAR-SBI), कोयंबटूर ने अनामलाई बाघ अभ्यारण्य (ATR) की मदद से 5 जनवरी को अट्टागट्टी में अपनी अनुसूचित जनजाति घटक(STC) परियोजना शुरू की।

दुर्गम इलाकों में रहते हैं आदिवासी
अनामलाई बाघ अभ्यारण्य में एसटीसी परियोजना को लागू करने के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-गन्ना प्रजनन संस्थान के निर्णय का स्वागत करते हुए एटीआर के उप-निदेशक एमजी गणेशन ने एक कार्यक्रम में कहा कि संस्थान ने इस बाघ अभयारण्य में ऐसे आदिवासियों की सही पहचान करने में अत्यधिक सावधानी बरती है, जो बहुत दूरस्थ एवं लगभग दुर्गम बस्तियों में रहते हैं। उन्होंने कहा कि अन्य बाघ अभयारण्यों के विपरीत, अनामलाई टाइगर रिजर्व में स्वदेशी लोगों के विविध समूह हैं।

हाथियों को संभालने में माहिर है यहां की जनजाति
एशियाई हाथियों को संभालने के अपने गहन ज्ञान और कौशल के साथ हाथियों को प्रशिक्षित करने में वन विभाग की बहुत मदद करने वाली 'मालासर' जनजातियों का उल्लेख करते हुए उप निदेशक ने कहा कि आदिवासियों को बचाना वनों का संरक्षण करने के समान है। उन्होंने इस अवसर पर भाकृअनुप-गन्ना प्रजनन संस्थान द्वारा प्रकाशित विस्तार पुस्तिकाओं का भी विमोचन किया।

आईसीएआर-एसबीआई एसटीसी टीम के प्रयासों को बताते हुए गन्ना प्रजनन संस्थान से डॉ. जी. हेमाप्रभा ने उल्लेख किया कि जनजातीय आबादी में साक्षरता दर सामान्य जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों, महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि शिक्षा न केवल उनके आर्थिक विकास और समृद्धि के लिए बल्कि उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए भी जरूरी है।

प्रोजेक्ट को गंभीरता से लेने पर जोर
डॉ. हेमाप्रभा ने कहा कि आदिवासी लाभार्थियों को इस उद्यम में सक्रिय रूप से भाग लेने और एसटीसी परियोजना का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संस्थान को आदिवासियों के सहयोग से अगले कुछ वर्षों में अन्नामलाई बाघ अभयारण्य की आदिवासी बस्तियों में आईसीएआर-एसबीआई द्वारा किए गए तकनीकी हस्तक्षेप से सकारात्मक परिणाम मिलने की आशा है।

पहली बार ATR में लागू की गई यह परियोजना
अनुसूचित जनजाति घटक के प्रधान वैज्ञानिक और नोडल अधिकारी डॉ. डी. पुथिरा प्रताप ने उल्लेख किया कि यह परियोजना पहली बार एटीआर में लागू की जा रही है। एसटीसी को लागू करने के लिए संस्थान द्वारा किए गए हस्तक्षेपों को दो जनजातियों जैसे कि 'मालासर' और 'मलाई मालासर' ,के बीच फोकस समूहों के संचालन द्वारा व्यवस्थित आवश्यकता मूल्यांकन के आधार पर अंतिम रूप दिया गया था, जो नागारूथु -1, नागारूथु -2, पुरानी सरकारपति, चिन्नारपति, कूमाट्टी और पालकीनारू की आदिवासी बस्तियों से संबंधित हैं।

47 लाख बच्चे पोषण की कमी से पीड़ित
डॉ. डी पुथिरा ने कहा कि 47 लाख से अधिक भारतीय आदिवासी बच्चे लगातार पोषण की कमी से पीड़ित हैं, उन्होंने कहा कि इन बस्तियों में आदिवासी समुदाय को पोषण उद्यान स्थापित करने और बनाए रखने के लिए शिक्षित किया जाएगा और इस अभियान के दौरान 'ज्ञान' पर किचन गार्डन बीज किट वितरित किए जाएंगे। आदिवासियों का सशक्तिकरण' रेडियो सेट के वितरण के साथ-साथ आदिवासियों को उन रेडियो कार्यक्रमों की जानकारी दी जा रही है जो उनके ज्ञान सशक्तिकरण में सहायता कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आईसीएआर-एसबीआई गांवों में आदिवासी लोगों को कृषि उपकरण, घरेलू सामान और पौधे भी वितरित कर रहा है।

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