रिटायर्ड कमांडर अभिलाष टॉमी ने पूरी की गोल्डेन ग्लोब रेस, जानें कैसी रही 30,000 मील की 'पैसा वसूल' जर्नी?

रिटायर्ड कमांडर अभिलाष टॉमी (Abhilash Tomy) ने गोल्डेन ग्लोब रेस 2022 (Golden Globe Race) की 30,000 मील की लंबी यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की। विशेष इंटरव्यू के दौरान अभिलाष ने इस सफर की खास और दिलचस्प वाकए भी शेयर किए।

Abhilash Tomy Golden Globe Race. रिटायर्ड कमांडर अभिलाष टॉमी ने गोल्डन ग्लोब रेस 2022 को सफलतापूर्वक पूरा किया है। एशियानेट न्यूज डायलॉग के स्पेशल एडिशन में अभिलाष टॉमी ने अपनी इस जर्नी के अनछुए पहलुओं के परदा हटाया। उन्होंने इस रोमांचक यात्रा के बारे में कहा कि इस जर्नी में उन्हें कई तूफानों का सामना करना पड़ा। पहला तूफान 26 जनवरी को आया और दूसरा 7 फरवरी को आया। दूसरे तूफान ने मेरी बोट को दो बार गिरा दिया और बहुत नुकसान पहुंचाया। मैं उसकी मरम्मत करता रहा। एक समय ऐसा भी आया जब 30-40 समुद्री मील की स्पीड से हवा चल रही थी और मेरा चप्पू टूट गया। फिर मैंने उसका समाधान ढूंढा और जर्नी कंटीन्यू की।

बंगाल की खाड़ी में भी तैर सकते हैं अभिलाष टॉमी

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अपनी इस जर्नी का जिक्र करते हुए भारतीय नौसेना के रिटायर्ड अधिकारी ने कहा कि मैंने वास्तव में तूफानों का आनंद लिया। एक समय वह भी था जब मैं शिकायत कर रहा था कि यह तूफान क्यों उठ रहे हैं। लेकिन जब आप तूफान के बीच से गुजरते हैं तब कह सकते हैं कि यात्रा 'पैसा वसूल' रही। मेरा मतलब है कि क्या है अगर तूफान न मिले तो केप हॉर्न जाने की जरूरत ही नहीं है। अब तो मैं बंगाल की खाड़ी में भी तैर सकता हूं।

4 सितंबर 2022 को शुरू हुई यह जर्नी

कमांडर अभिलाष पिछले साल 4 सितंबर को फ्रांस से अपनी नाव 'बायनाट' द्वारा यह सफर शुरू किया था। उन्होंने 29 अप्रैल को तब इतिहास रच दिया जब 236 दिन, 14 घंटे और 46 मिनट में वे दुनिया की परिक्रमा करके प्रतियोगिता को पूरा करने वाले पहले एशियाई बने। 2018 में दक्षिणी हिंद महासागर में उबड़-खाबड़ समुद्र और शक्तिशाली हवाओं के बाद उन्हें रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी। यह पृथ्वी पर सबसे दूरस्थ स्थानों में से एक है, जिससे उनकी नौका एसवी थुरिया टूट गई थी। अभिलाष ने यात्रा को याद करते हुए कहा कि नौकायन का सबसे कठिन हिस्सा तब होता है जब हवा न हो। जब हवा न हो तो नाव को चलाना बहुत तनावपूर्ण और थका देने वाला होता है। तूफान में यह बहुत आसान हो जाता है और नाव अपने आप चलती है।

जब व्हेल मछलियों ने कर दिया हमला

नौसेना के रिटायर्ड अधिकारी ने कहा कि मैं दो ऐसे क्षेत्रों से गुजरा जिसने मेरी चिंता बढ़ा दी थी। पुर्तगाल के करीब ओरकास (व्हेल की प्रजाति) ने सेलबोट्स पर हमला करना शुरू कर दिया। ये ओर्कास अपने छोटे बच्चों को उसी तरह से हमला करना सिखा रहे थे। इससे कुछ नावें डूब गईं। पश्चिम अफ्रीका के करीब मुझे समुद्री लुटेरों के खतरे के बारे में चेतावनी दी गई थी। यह बहुत सुरक्षित जगह नहीं थी। सौभाग्य से मुझे इनमें से किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने देश में नौकायन के लिए वित्तीय सहायता की कमी पर अफसोस भी जताया।

क्या थी यात्रा के दौरान खान-पान की व्यवस्था

यात्रा के दौरान खान-पान के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे प्रबंधक के अनुसार मुझे इस यात्रा को पूरा करने के लिए लगभग 6-8 लाख कैलोरी की आवश्यकता थी। हमने 3 अलग-अलग स्रोतों से भोजन प्राप्त करने की कोशिश की। एक तो डिब्बाबंद मांस था, जिसे मैं अपने साथ रखता था। दूसरा पका हुआ चावल था। मेरे पास रक्षा खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला (DFRL) का भोजन था। मैं बस पैकेट खोल सकता था, गर्म कर सकता था और खा सकता था। मेरे पास जमा हुआ भोजन था, जिसे खाने योग्य बनाने के लिए गर्म पानी मिलाता था। इसके अलावा मैं नाश्ते के लिए मूसली और दूध, स्नैक्स के लिए बहुत सारे काजू और मूंगफली और ढेर सारे पॉपकॉर्न भी लेता था। उन्होंने आगे कहा कि एक अच्छे दिन में उन्हें लगभग 5 घंटे की नींद मिलती थी। उन्होंने कहा उस वक्त आप सोते हैं और फिर जागते रहते हैं। आप 15 मिनट सोते हैं और फिर उठते हैं कि सब ठीक है या नहीं। आपको आठ महीने तक ऐसा ही करते रहना पड़ता है।

अच्छे प्रायोजक मिलना सौभाग्य की बात

रिटायर्ड कमांडर अभिलाष ने कहाव कि मैं इस बार अच्छा प्रायोजक पाने के मामले में भाग्यशाली था। भारतीय प्रायोजकों के साथ मेरा अनुभव बहुत खराब रहा है। मुझे समझ नहीं आता कि कोई भी नौकायन का समर्थन क्यों नहीं करता। 2013 में जब मैंने अपनी पहली जलयात्रा की तो इसे इतना महत्वपूर्ण माना गया यह एक उपलब्धि जैसी है। 2018 में मेरे पास रेस के लिए मीडिया वैल्यूएश का डाटा था, जो काफी अच्छा था। मैंने सोचा था कि लोग इसमें 2022 मेरा समर्थन करेंगे। लेकिन मेरा मानना ​​है कि भारत में लोगों को लगता है कि खेल के रूप में नौकायन का कोई भविष्य नहीं है। इसलिए इसमें निवेश करना उचित नहीं है। मैं बहुत भाग्यशाली था कि मुझे प्रायोजक के रूप में ब्यानत मिला। उन्होंने निर्णय लेने में केवल पांच मिनट का समय लिया। मेरे द्वारा अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से पहले ही ब्यानत ने पैसा दिया। यूएई की इस कंपनी की वजह से मैं भारत का झंडा लेकर दुनिया भर में घूम सका।

सरकारों को करनी चाहिए मदद

रिटायर्ड कमांडर अभिलाष ने कहा कि फिलहाल युवा नाविकों को सलाह देने के लिए अकादमी स्थापित करने की उनकी कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले मुझे पंचायतों, राज्य सरकार और नियमों के साथ काम करना होगा। मैंने नॉर्थ और साउथ ब्लॉक नई दिल्ली में बहुत सारी फाइल पुशिंग की है। मेरा मतलब है कि यह अपने आप में एक प्रोजेक्ट है। सरकार किसी एथलीट या खेल की मदद कर सकती है तो करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि भारत में याचिंग को क्रिकेट की तरह ही सपोर्ट मिलेगा।

यहां देखें पूरा इंटरव्यू

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