जनसंख्या नियंत्रण: असम के सीएम ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से की चर्चा, कहा- तीन महीने में बनेगा 5 साल का रोडमैप

‘अलाप-आलोचनाः एम्पावरिंग द रिलिजियस माइनाॅरिटीज’ संवाद सत्र में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अपनी सरकार की दो बच्चों की नीति पर बात की। असम सरकार ने 18 जून को जनसंख्या नियंत्रण कानून के तहत दो बच्चों की पाॅलिसी का ऐलान किया था। हालांकि, चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों, अनुसूचित जाति और जनजाति को इस कानून के दायरे में नहीं रखा गया है। 

नई दिल्ली। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जनसंख्या नियंत्रण पालिसी पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों से की। ‘अलाप-आलोचनाः एम्पावरिंग द रिलिजियस माइनाॅरिटीज’ संवाद सत्र में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अपनी सरकार की दो बच्चों की नीति पर बात की। एक दिन पहले दिल्ली में पत्रकारवार्ता करते हुए हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि असम के मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात करने के पहले वह आल असम माइनारिटी स्टूडेंट्स यूनियन से पिछले महीने मुलाकात कर चुका हूं। इन संगठनों का मानना है कि जनसंख्या एक समस्या है और हमको इसका समाधान करना चाहिए। असम में इस मसले को लेकर कोई विवाद नहीं है। 

 

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सीएम ने बैठक के बाद कहा- सभी समूह में सभी मुद्दों पर चर्चा की जाएगी और 3 महीने के बाद हम अगले 5 वर्षों के लिए एक रोडमैप तैयार करने के लिए फिर से मिलेंगे। अगली बैठक प्रवासी मुस्लिम समुदाय के साथ होगी। अगले 2-3 महीनों में यह बैठकों की एक श्रृंखला होगी।  इस बात पर जोर दिया गया है कि 8 उप-समूहों का गठन किया जाना चाहिए। एक उपसमूह स्वास्थ्य पर, एक शिक्षा पर, एक जनसंख्या स्थिरीकरण पर, एक सांस्कृतिक पहचान पर, एक वित्तीय समावेशन पर, एक महिला सशक्तिकरण पर, एक कौशल विकास पर काम करेगा। 

असम से बाहर के लोग कंट्रोवर्सी करेंगे क्योंकि यह बीजेपी कर रही

उन्होंने कहा कि असम के बाहर कुछ लोग कंट्रोवर्सी पैदा करना चाहेंगे क्योंकि यह पाॅलिसी बीजेपी ला रही है लेकिन ऐसा होने नहीं पाएगा। मुस्लिम समाज की गरीबी, अशिक्षा को जनसंख्या नियंत्रण पाॅलिसी से दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दो बच्चों के कानून पर असम के मुस्लिम समाज में कहीं भी विरोध नहीं है। 

18 जून को असम में जनसंख्या नियंत्रण कानून का ऐलान हुआ

असम में हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने 18 जून को जनसंख्या नियंत्रण कानून के तहत दो बच्चों की पाॅलिसी का ऐलान किया था। हालांकि, चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों, अनुसूचित जाति और जनजाति को इस कानून के दायरे में नहीं रखा गया है। 

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