असम में जल्द नियमित स्कूलों में बदले जाएंगे 614 मदरसे, सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने दिया आदेश

असम के नए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पद लेने के बाद से एक्शन में हैं। उन्होंने मंगलवार को अधिकारियों को निर्देश दिया कि भंग किए गए मदरसों को सामान्य विद्यालय में बदलने की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जाए। 

गुवहाटी. असम के नए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पद लेने के बाद से एक्शन में हैं। उन्होंने मंगलवार को अधिकारियों को निर्देश दिया कि भंग किए गए मदरसों को सामान्य विद्यालय में बदलने की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जाए। 

इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने यह निर्देश शिक्षा मंत्री रानुज पेगु और वित्त मंत्री अजंता नियोग की मौजूदगी में शिक्षा विभाग के कामकाज की व्यापक समीक्षा वाली बैठक में दिया।

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पिछले साल मदरसों को बदलने पर लिया गया था फैसला
असम में शिक्षा मंत्री रहते हुए हिमंत बिस्वा सरमा ने पिछले सरकार में राज्य सरकार द्वारा संचालित मदरसों को सामान्य विद्यालयों में बदलने का फैसला किया था। असम में 614 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। इनमें से 400 हाई मदरसे और 112 जूनियर मदरसे जबकि 102 सीनियर मदरसे हैं। इसके अलावा सरकार ने संस्कृत विद्यालयों को भी सामान्य विद्यालयों में बदलने का फैसला किया था। सरकार हर साल मदरसों पर लगभग तीन से चार करोड़ रुपए और संस्कृति केंद्रों पर एक करोड़ रुपए खर्च होता है। 

इस कदम पर सरकार का क्या है कहना?
इस फैसले के बाद हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि सरकार द्वारा संचालित या फंड से चलने वाले मदरसों को अगले 5 महीने के अंदर नियमित स्कूल बनाया जाएगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि सरकार का काम धार्मिक शिक्षा प्रदान करना नहीं है। हम धार्मिक शिक्षा के लिए सरकारी फंड खर्च नहीं कर सकते। 

हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट किया, मदरसे बोर्ड को भी भंग किया जाएगा। जबकि इसके अकेडमिक पार्ट को बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन में ट्रांसफर किया जाएगा। उन्होंने आगे लिखा, मदरसों को मैनस्ट्रीम में लाने के लिए हम मदरसा एजुकेशन डायरेक्टरेट को खत्म करके इसे सेकेंडरी एजुकेशन का हिस्सा बना रहे हैं। 

क्या है सरकार की योजना
सरकार इन मदरसों और संस्कृत विद्यालयों के स्थान पर 10वीं और 12वीं के नए स्कूल खोलने जा रही है। साथ ही इनके नाम से मदरसे शब्द भी हटा दिया जाएगा। हालांकि, सरकार का कहना है कि निजी तौर पर चलने वाले मदरसे चलते रहेंगे। इसके अलावा निजी संस्कृति स्कूलों से भी कोई आपत्ति नहीं है। 

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