
Bihar Assembly Election 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और महागठबंधन में सीटों का बंटवारा अभी तक फाइनल नहीं हो पाया है। राजद, कांग्रेस, वीआईपी और भाकपा-माले के साथ अब दो नए दल-झामुमो और लोजपा (पारस गुट) भी महागठबंधन में शामिल हो गए हैं। इस वजह से 243 सीटों के बंटवारे की रणनीति और भी जटिल हो गई है।
तेजस्वी यादव चाहते हैं कि पिछड़ी जातियों के वोटों के लिए वीआईपी और अन्य दल गठबंधन में बने रहें, लेकिन मुकेश सहनी ने 50 सीटों और उपमुख्यमंत्री पद की मांग कर दी है। वहीं, कांग्रेस को अपनी सीटें कुछ कम करनी पड़ सकती हैं। यहां तक कि राजद और वीआईपी के बीच सीटों का संतुलन भी चुनौतीपूर्ण है। पुराने रिकॉर्ड देखें तो वीआईपी ने 2020 में 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल 4 जीत सकी थी। अब उनकी मांगें इतनी बड़ी हैं कि गठबंधन की रणनीति पूरी तरह से बदल सकती हैं।
इस बार महागठबंधन में आठ दल हैं:
यह तालमेल बनाने की चुनौती इसलिए है क्योंकि हर दल अपनी सीटें और ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को झारखंड से सटे इलाकों में सीटें मिलने की संभावना है। इसी तरह, पशुपति पारस की लोजपा गुट को खगड़िया और हाजीपुर जैसे क्षेत्रों में सीटें मिल सकती हैं। इसका मकसद पासवान परिवार के वोटों को बांटना और गठबंधन में संतुलन बनाए रखना है।
तेजस्वी यादव और कांग्रेस को अपने पुराने सीटों को छोड़कर तालमेल बिठाना होगा। कांग्रेस पिछली बार 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार उन्हें 60 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। वहीं, राजद और वीआईपी के बीच भी सीटों का संतुलन बनाना आसान नहीं होगा। यह सब मिलकर महागठबंधन में सस्पेंस पैदा कर रहा है। वोटर यह सोच रहे हैं कि कौन सा दल कितनी सीटें जीत पाएगा और गठबंधन की ताकत कितनी प्रभावी होगी।
सियासी विशेषज्ञों का कहना है कि महागठबंधन के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। 8 दलों के बीच 243 सीटों का बंटवारा करना आसान नहीं है। वीआईपी, झामुमो और लोजपा जैसी मांगों ने गठबंधन के तालमेल पर सवाल खड़े कर दिए हैं। फिलहाल, सभी दलों की कोशिश यही है कि सीटों का बंटवारा ऐसा हो कि कोई दल नाराज़ न हो और गठबंधन चुनाव में अपनी ताकत दिखा सके।