Skin to Skin Contact वाला फैसला देने वाली Justice गनेडीवाला नहीं बनेंगी स्थायी जज, SC कॉलेजियम का निर्णय

12 साल की लड़की के साथ यौन अपराध केस में आरोपी को बरी करते हुए जस्टिस गनेडीवाला ने कहा था कि स्किन-टु-स्किन संपर्क में आए बिना किसी को छूना POCSO एक्ट के तहत यौन हमला नहीं माना जाएगा। 

मुंबई। कई विवादित निर्णयों के लिए सुर्खियों में रहीं बांबे हाईकोर्ट (Bombay High court) की एडहॉक जज जस्टिस पुष्पा वी.गनेडीवाला (Pushpa V.Ganediwala) को स्थायी जज नहीं बनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के कॉलेजियम ने यह निर्णय लिया है। जस्टिस गनेडीवाला फिलहाल बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर बेंच (Nagpur Bench)  में नियुक्त हैं। इसी साल फरवरी में जस्टिस गनेडीवाला को 2 साल की जगह सिर्फ एक साल का एक्सटेंशन दिया गया था।

स्किन टू स्किन कांटैक्ट फैसला है वजह

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दरअसल, जस्टिस गनेडीवाला ने पॉक्सो केस (POCSO) में एक अजीबोगरीब निर्णय सुनाया था। एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस ने एक आरोपी को जमानत दे दी कि स्किन टू स्किन कांटैक्ट होने पर ही यौन उत्पीड़न या यौन हिंसा माना जाएगा। यह फैसला काफी सुर्खियों में रहा। हालांकि, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचते ही इसे रद्द कर दिया गया। बताया जा रहा है कि POCSO एक्ट (Protection of Children from sexual offences) के दो मामलों को लेकर गनेडीवाला के फैसलों की आलोचना हुई थी।

स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट वाले फैसले पर विवाद

12 साल की लड़की के साथ यौन अपराध केस में आरोपी को बरी करते हुए जस्टिस गनेडीवाला ने कहा था कि स्किन-टू-स्किन संपर्क में आए बिना किसी को छूना POCSO एक्ट के तहत यौन हमला नहीं माना जाएगा। यही नहीं, 5 साल की बच्ची का हाथ पकड़ने और पेंट खोलने को भी जस्टिस गनेडीवाला ने यौन उत्पीड़न नहीं माना था।

आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी को रिहा किया

एक अन्य फैसले में जस्टिस गनेडीवाला ने पत्नी से पैसे की मांग करने को उत्पीड़न करार नहीं दिया था। साथ ही आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी को रिहा कर दिया। 

पिछले हफ्ते रोक दिया गया प्रमोशन

जस्टिस गनेडीवाला का प्रमोशन पिछले हफ्ते ही रोक दिया गया था। जस्टिस गनेडीवाला के फैसलों पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि उनके आदेश खतरनाक मिसाल कायम करेंगे।

2 साल की जगह सिर्फ 1 साल का एक्सटेंशन मिला

फरवरी 2021 में जस्टिस गनेडीवाला को 2 साल की जगह सिर्फ एक साल का एक्सटेंशन दिया गया था। अगर यह विस्तार नहीं मिलता तो उन्हें जिला न्यायपालिका में वापस जाना पड़ता। बॉम्बे हाई कोर्ट आने से पहले 2019 तक वे यहीं थीं।

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