सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा- क्या कानून की दोबारा जांच होने तक देशद्रोह के मामलों को टाला जा सकता है?

देशद्रोह के मामलों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या भविष्य में देशद्रोह के मामलों (sedition cases) के रजिस्ट्रेशन को तब तक के लिए स्थगित रखा जा सकता है जब तक कि कोर्ट देशद्रोह कानून के संबंध में पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेता।

Asianet News Hindi | Published : May 10, 2022 1:48 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को केंद्र सरकार से बुधवार तक यह बताने को कहा कि क्या भविष्य में देशद्रोह के मामलों (sedition cases) के रजिस्ट्रेशन को तब तक के लिए स्थगित रखा जा सकता है जब तक कि वह देशद्रोह कानून के संबंध में पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेता।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि वह लंबित और भविष्य के देशद्रोह के मामलों के बारे में क्या करने का प्रस्ताव रखती है? क्योंकि केंद्र ने आईपीसी की धारा 124 ए की वैधता की फिर से जांच करने का फैसला किया है। धारा 124 ए राजद्रोह का अपराधीकरण करता है।

धारा 124 ए पर पुनर्विचार करेंगी केंद्र सरकार
पीठ ने मामले को बुधवार को सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया। अदालत देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। एक ताजा हलफनामे में केंद्र ने सोमवार को शीर्ष अदालत को बताया कि उसने धारा 124 ए के प्रावधानों की फिर से जांच करने और पुनर्विचार करने का फैसला किया है। केंद्र ने अनुरोध किया कि जब तक सरकार द्वारा मामले की जांच नहीं की जाती तब तक मामले को नहीं उठाया जाए।

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शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कानून को कार्यपालिका के स्तर पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। क्योंकि राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता शामिल है। उन्होंने याचिकाओं की सुनवाई को स्थगित करने की मांग की। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने केंद्र के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा कि अदालत को वैधता तय करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए, भले ही सरकार प्रावधान की जांच कर रही हो या नहीं।

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सुनवाई के दौरान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि सरकार को पुनर्विचार पूरा करने में कितना समय लगेगा। सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि कानून पर पुनर्विचार प्रक्रिया में है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मैं एक सटीक समय सीमा नहीं दे पाऊंगा। प्रक्रिया शुरू हो गई है। अदालत ने हलफनामे की भावना और भावना को देखा होगा।

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