विश्व भर के कई देशों में बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो रहा है। दो देशों में ट्रायल पूरा होने के बाद बच्चों को वैक्सीन लगाने की मंजूरी मिल चुकी है। ऐसे में जेहन में एक सवाल आता है कि बड़ों की वैक्सीन को बच्चों में क्यों नहीं लगाई जाती है। जैसे बच्चों को कोई अंग्रेजी दवाई देते समय उसकी मात्रा कम कर दी जाती है।
नई दिल्ली। देश में कोविड की दूसरी वेव ने तांडव मचाया है। तीसरी वेव को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट लेकर वैज्ञानिक व अन्य विशेषज्ञ नेशनल प्लान की बात कर रहे हैं। आशंका जताई जा रही है कि तीसरी वेव में कोरोना बच्चों को अधिक संक्रमित कर सकता है। ऐसे में दुनिया के देश बच्चों के लिए वैक्सीन ट्रायल शुरू कर दिए हैं। भारत सबसे आगे बढ़ते हुए 2 साल से 18 साल तक के लोगों के लिए वैक्सीन ट्रायल की अनुमति दे दी है। भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को दूसरी व तीसरी ट्रायल की मंजूरी दे दी गई है। बच्चों को बड़ों का वैक्सीन क्यों नहीं दिया जा सकता, पूरे विश्व में बच्चों के लिए कहां-कहां वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है। क्या है अपने देश में बच्चों को कोविड से बचाने खातिर वैक्सीनेशन का रोडमैप। आइए इन सवालों का जवाब जानने की करते हैं कोशिश...
इसलिए नहीं दी जाती बड़ो की वैक्सीन बच्चों को
विश्व भर के कई देशों में बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो रहा है। दो देशों में ट्रायल पूरा होने के बाद बच्चों को वैक्सीन लगाने की मंजूरी मिल चुकी है। ऐसे में जेहन में एक सवाल आता है कि बड़ों की वैक्सीन को बच्चों में क्यों नहीं लगाई जाती है। जैसे बच्चों को कोई अंग्रेजी दवाई देते समय उसकी मात्रा कम कर दी जाती है। एक्सपर्ट कहते हैं कि वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिली है। इन वैक्सीन का ट्रायल किया जाना इसलिए आवश्यक है कि उसका क्या असर बच्चों पर है। बच्चों का शरीर इस वैक्सीन के लोड को सह सकता है या नहीं। वैक्सीन लगाने के बाद क्या क्या दिक्कतें बच्चों को आ सकती हैं। कहीं कोई बड़ी परेशानी तो वैक्सीन के बाद नहीं सामने आ रही है। ट्रायल में यह भी चेक किया जाएगा कि वह कितनी मात्रा को झेल पा रहे हैं। इसलिए बच्चों को बड़ो वाली वैक्सीन नहीं दी जा रही है।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में होती नेचुरल इम्यूनिटी
विशेषज्ञ बताते हैं कि छह महीने से पांच साल के बच्चों का इम्यून सिस्टम डेवलप हो रहा होता है। इन बच्चों को यह वैक्सीन लगाने से उनका इम्यून कम होने का भी खतरा हो सकता है। इसलिए पांच साल से कम उम्र के बच्चों को वैक्सीन व्यापक शोध के बाद ही देने की इजाजत होगी। वैक्सीन से बच्चों की नेचुरल इम्यूनिटी न प्रभावित हो साथ ही यह भी जानना होगा कि इस उम्र के बच्चों को वैक्सीन की आवश्यकता है कि नहीं।
कनाडा में किशोरों को वैक्सीन दिया जाने लगा
पूरी दुनिया में कनाडा बच्चों/किशोरों के वैक्सीन का इस्तेमाल करने की इजाजत देने वाला पहला देश बन चुका है। कनाडा में 12 से 15 साल के बच्चों को वैक्सीन दिया जा रहा है। बच्चों के लिए फाइजर कंपनी की वैक्सीन लगाई जा रही है। फाइजर 16 साल से अधिक उम्र को पहले ही वैक्सीन लगा रही थी। फाइजर ने इस साल के शुरू में ही वैक्सीन ट्रायल कर लिया था। वैक्सीन की ट्रायल में काफी बेहतर रिजल्ट सामने आए और बेहतरीन रिजल्ट की वजह से बच्चों को वैक्सीन देना स्टार्ट कर दिया गया। हालांकि, बच्चों को वैक्सीन लगाए जाने के बाद बुखार व ठंड की बात सामने आई। कंपनी अगले दो सालों तक इन बच्चों की निगरानी भी करेगी।
अमेरिका ने भी बच्चों के वैक्सीनेशन की इजाजत दी
फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को अमेरिका में भी 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों को लगाने की इजाजत मिल गई है। तीसरी वेव की चेतावनी को देखते हुए अमेरिका के फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने 12 से 15 साल तक के बच्चों को फाइजर की वैक्सीन लगाने की इमरजेंसी मंजूरी दी है।
ये कंपनियां कर रही अमेरिका में ट्रायल
उधर, अमेरिका में फाइजर को मंजूरी के अलावा कई अन्य कंपनियों की वैक्सीन को ट्रायल की इजाजत दी गई है। नोवावैक्स, माॅडर्ना और जाॅनसन एंड जाॅनसन की वैक्सीन के ट्रायल भी अमेरिका में अब किए जा रहे हैं। ये तीनों कंपनियां 12 से अधिक उम्र वाले बच्चों पर ट्रायल कर रही हैं। माॅडर्ना छोटे बच्चों और किशोरों पर ट्रायल कर रही है। नतीजे जून-जुलाई तक आने की संभावना है।
भारत में कोवैक्सीन को मिली बच्चों पर ट्रायल की इजाजत
भारत ने भी बच्चों को वैक्सीनेशन के लिए ट्रायल की इजाजत दे दी है। भारत बायोटेक ने 2 से 18 साल तक की उम्र के बच्चों/किशोरों पर ट्रायल करने का ऐलान किया है। भारत बायोटेक सेकेंड व थर्ड फेज का ट्रायल करेंगे। बताया जा रहा है कि दिल्ली एम्स, पटना एम्स और मेडिट्रिना इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेस नागपुर में दोनों ट्रायल को अंजाम दिया जाएगा।
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