Deep Dive with Abhinav Khare: गैस त्रासदी की वह काली रात

1984 में 2 दिसंबर की रात जब भोपाल सोया तो सब कुछ सामान्य था। पर 3 दिसंबर की सुबह अपने साथ मौत का पैगाम लेकर आई।

Abhinav Khare | Published : Oct 31, 2019 4:03 PM IST / Updated: Nov 18 2019, 03:52 PM IST

भोपाल. 1984 में 2 दिसंबर की रात जब भोपाल सोया तो सब कुछ सामान्य था। पर 3 दिसंबर की सुबह अपने साथ मौत का पैगाम लेकर आई। अभी सुबह भी नहीं हुई थी कि कीटनाशक बनाने वाली  (UCIL’s) यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड कंपनी से जहरीली गैस निकलने लगी, जिसकी वजह से जहरीले बादलों ने पूरे भोपाल को घेर लिया। यह घटना बुरे सपने से भी भयंकर थी। जहरीली गैस ने पूरे शहर को अपने कब्जे में ले लिया और लोग सड़कों पर अस्त-व्यस्त होकर भाग रहे थे। किसी के समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। यहां न तो कोई खतरे की घंटी बजी थी और न ही भोपाल के लोगों के बास बचने का कोई प्लान था। यहां तक कि जब गैसे से पीड़ित लोग हॉस्पिटल पहुंचे तब डॉक्टरों तक को नहीं पता था कि पीड़ितों का इलाज कैसे करना है। क्योंकि डॉक्टरों को कोई आपातकालीन सूचना नहीं दी गई थी। सूर्योदय होने के बाद ही सभी को विनाश का आभास हुआ। इंसानों और जानवरों की लाशें सड़कों पर पड़ी हुई थी। पेड़ों की पत्तियां काली पड़ गई थी और हवा से जली मिर्ची की गंध आ रही थी। अनुमान लगाया गया कि इस घटना में लगभग 10 हजार लोग मारे गए थे और 30 हजार से अधिक लोग अपाहिज हो गए थे। 

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इस गैस त्रासदी ने कई तरह के नैतिक मुद्दों को जन्म दिया। पहला, यह खतरनाक कीटनाशक प्लांट शहर के बीच-बीच क्यों था। दूसरा, इतनी घनी जनसंख्या वाले इलाके में फैक्ट्री कैसे चल रही थी, जहां लाखों की आबादी रहती है। (UCIL) ने इतनी अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र में भी इतने खतरनाक केमिकल को रखने का फैसला कैसे किया। केमिकल स्टोर करने के लिए जरूरी कूलिंग दुर्घटना से पांच महीने पहले ही खत्म हो चुकी थी, पर किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया। शायद यह यूनियन कार्बाइड के वैश्विक अर्थव्यवस्था अभियान का एक हिस्सा था। वास्तव में सभी जरूरी चीजें और मापक खराब थे। जिस टावर से जहरीली गैस निकल निकल रही थी, उस टावर की भी मरम्मत का काम चल रहा था। सही मायनों में यह त्रासदी के लिए बनाया गया एक प्लान था।   

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UCC ने भोपाल कारखाने में आग को हवा देने वाले श्रमिकों की संख्या 1960 से 1984 के बीच आधी कर दी थी। इस वजह से भी फैक्ट्री की सुरक्षा और मैनेजमेंट खराब हुआ था। फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिक दलों की संख्या 12 घटाकर 6 कर दी गई थी। साथ ही मेंटीनेंस सुपरवाइजर की पोस्ट ही हटा दी गई थी। सेफ्टी ट्रेनिंग का समय भी 6 महीने से कम करके मात्र 15 दिनों का कर दिया गया था। 

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कौन हैं अभिनव खरे

अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विथ अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के सौ से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सक्सेजफुल डेली शो कर चुके हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।

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