दिल्ली दंगा 2020: नफरत नहीं प्रेम की जरूरत

चीजों को शांत कराने की बजाय कई लोग दूसरों को और हिंसा के लिए भड़का रहे हैं। यह सामूहिक रूप से हमारी विफलता है, एक समाज के रूप में हम विफल हुए हैं। 

बेंगलुरू. देश की राजधानी दिल्ली कई दिनों तक जलती रही है। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर लोग कुछ भी सीखने को तैयार नहीं हैं। दंगे खत्म होने के बाद भी लगातार भ्रामक जानकारियां शेयर की जा रही हैं लोगों के बीच डर का माहौल बनाया जा रहा है। तबाही जैसे शब्दों का उपयोग बिना सोचे समझे किया जा रहा है। चीजों को शांत कराने की बजाय कई लोग दूसरों को और हिंसा के लिए भड़का रहे हैं। यह सामूहिक रूप से हमारी विफलता है, एक समाज के रूप में हम विफल हुए हैं। 

दंगों को काबू में ना करने के लिए लगातार दिल्ली पुलिस पर हमला किया जा रहा है, पर कोई यह समझने की कोशिश नहीं कर रहा है कि पुलिस हिंसा रोकने के लिए जो कर सकती थी वो उसने किया है। पुलिस ने आंसू गैस से लेकर शांति मार्च तक दंगों को रोकने के लिए बिना हिंसा किए जो भी किया जा सकता था वो किया है। डिफ्टी कमिश्नर अमित शर्मा पर भी भीड़ ने जानलेवा हमला किया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पर घायल होने के बाद भी उन्होंने दंगों को रोकने की हर संभव कोशिश की। दिल्ली की पुलिस इस जिम्मेदारी और आत्मसमर्पण के साथ अपना काम कर रही है। हेड कॉन्सटेबल रतनलाल ने इन्हीं दंगों को रोकने के प्रयास में अपनी जान की कुर्बानी दे दी। ऐसे पुलिसकर्मियों को शहीद का दर्जा देना हमारा कर्तव्य है। सोशल मीडिया और पारंपारिक मीडिया ने लोंगों के अंदर भय का माहौल बनाया, जिसकी वजह से दंगाइयों ने दिल्ली पुलिस के ऊपर एसिड फेंका। 

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हम सभी ने देखा कि पत्रकारों पर भी हमला किया गया। जेके 24*7 के आकाश नापा को मौके पर ही शूट कर दिया गया, जब वो मौजपुर में हिंसा की रिपोर्टिंग कर रहे थे। इस घटना के बाद मीडिया ने कुछ समय के लिए घटना की रिपोर्टिंग भी बंद कर दी थी। 

ऐसे मौके पर हम किसी एक समूह का साथ नहीं दे सकते कि किसने हिंसा शुरू की थी। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों की निर्दयतापूर्वक हत्या की गई है। हिंसा में हमने अपने पुलिस अधिकारी और IB के अधिकारियों को भी खोया है। यह कोई युद्ध नहीं है, जिसमें किसी की जीत या हार होगी। बल्कि यह एक दुखद स्थिति है, जिसमें इंसानियत की हार हुई हैं और हम सभी हारने वालों में से हैं। हिंसा में मरने वालों की लिस्ट देखें तो पता चलता है कि दोनों धर्मों को मानने वाले लोगों ने अपनी जान गंवाई है, उनके घर जलाए गए हैं, उनकी दुकानों में तोडफोड़ की गई है और दोनों धर्मों के छोटे-छोटे बच्चों ने अपना सब कुछ खो दिया है। यह एक दूसरे पर उंगली उठाने का समय नहीं है। हम सभी को एकजुट होकर हिंसा रोकने की कोशिश करनी चाहिए और देश में सौहार्द का माहौल बनाना चाहिए। 

वीर भान, 50 साल 

मोहम्मद मुबारक हुसैन, 28 साल 

प्रवेश, 48 साल

लोनी 

शान मोहम्मद, 35 साल 

मोहम्मद फुरकान, 30 साल 

राहुल सोलंकी, 26 साल 

मुदस्सर, 30 साल 

अशफाक हुसैन, 22 साल 

शाहिद, 25 साल 

जाकिर, 24 साल 

मेहताब, 22 साल 

राहुल ठाकुर, 23 साल 

दीपक, 34 साल 

रतन लाल , 42 साल 

राम शेर, 48 साल 

अंकित शर्मा, 26 साल 

अज्ञात, 25 साल 

अज्ञात पुरुष, 22 साल 

अज्ञात, 40 साल 

बीरभान, 40 साल 

दिलबर

इशाक खान, 24 साल 

अज्ञात पुरुष, 30 साल 

अज्ञात महिला, 70 साल 

मोहम्मद ताहिर, 28 साल 

अतुल गुप्ता, 45 साल 

महरूम अली, 25 साल 

अमन, 19 साल 

हम इन लोगों को इनके धर्म के आधार पर विभाजित नहीं कर सकते। एक समाज के रूप में यह हमारा नुकसान है, जिसमें कितने ही मासूम लोग बेवजह के दंगे में मारे गए हैं। 

दुख की बात यह है कि मुश्किल समय में ही लोगों का असली रंग सामने आता है। भारत के मामले में भी यह बात सही साबित हुई। विकट परिस्थितियों में हर समुदाय के लोग एक दूसरे की जान बचाते नजर आए। रमेश नगर में  हिंदुओं ने मुस्लिम समुदाय के लोगों के घर की रक्षा की और मुस्लिमों ने लक्ष्मी नगर में हिंदुओं के घर बचाए। हमने लोगों को मानव श्रंखला बनाते हुए भी देखा, ताकि दंगों में बच्चों को कोई नुकसान ना पहुंचे। ललिता पार्क में हिंदू और सिख समुदाय के लोग अपने मुस्लिम पड़ोसियों के घर पहुंचे और उनको सुरक्षा का आश्वासन दिया। हमने लक्ष्मी नगर में भाजपा पार्षद को अपने मुस्लिम पड़ोसियों का घर बचाने के लिए भागते हुए देखा। यही भारत की मूल भावना है। जहां हम एक दूसरे के साथ मुश्किल समय में चट्टान की तरह खड़े रहते हैं।   

लोगों के अंदर भरोसा पैदा करने के लिए दिल्ली पुलिस ने शांति कमेटी मीटिंग भी शुरू की है, ताकि क्षेत्र में हालात सामान्य किए जा सकें। अब तक 330 से ज्यादा मीटिंग की जा चुकी हैं। इन मीटिंग में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के अलावा सिविल सोसायटी ग्रुप भी शामिल होते हैं। ये मीटिंग रेसिडेंस वेलफेयर एसोशिएशन और मार्केट वेलफेयर एसोशिएशन की मदद से की जा रही हैं। हम सब प्रार्थना और उम्मीद कर सकते हैं कि जल्द ही पूरे इलाके में शांति स्थापित हो। हम सभी को सकारात्मकता और संयम स्थापित करने में अपना योगदान देना चाहिए। सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करने से पहले हमें इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि भारत का हर नागरिक देश में शांति चाहता है। आईए साथ मिलकर इसे हासिल करते हैं। 

कौन हैं अभिनव खरे

अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं।

मलयालम, अंग्रेजी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, बांग्ला और हिंदी भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।  

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