pariksha pe charcha: PM मोदी ने कहा-अगर कॉम्पिटिशन ही नहीं है तो जिंदगी कैसी, कभी-कभी खुद का भी एग्जाम लें

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) ने नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से हाइब्रिड मोड में परीक्षा पे चर्चा(pariksha pe charcha) के 5वें संस्करण के दौरान छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत की। इसमें पीएम ने करियर और एग्जाम फीवर से जुड़े टिप्स दिए।

नई दिल्ली. 1 अप्रैल को स्टूडेंट्स के लिए खास दिन रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) ने अपने लोकप्रिय संवाद परीक्षा पे चर्चा(Pariksha Pe Charcha) के 5वें संस्करण के दौरान छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत की। इसमें पीएम ने करियर और एग्जाम फीवर से जुड़े टिप्स दिए। इससे पहले तालकटोरा स्टेडियम पहुंचने पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने प्रधानमंत्री का स्वागत किया। 

ये मेरा बड़ा प्रिय कार्यक्रम है
मोदी ने कहा- ये मेरा बड़ा प्रिय कार्यक्रम है, लेकिन कोरोना के कारण बीच में मैं आप जैसे साथियों से मिल नहीं पाया। मेरे लिए आज का कार्यक्रम विशेष खुशी का है, क्योंकि एक लंबे अंतराल के बाद आप सबसे मिलने का मौका मिल रहा है। त्योहारों के बीच में exam भी होते हैं। इस वजह से त्योहारों का मजा नहीं ले पाते। लेकिन अगर exam को ही त्योहार बना दें, तो उसमें कईं रंग भर जाते हैं।

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अनुभवों को कतई छोटा मत मानिए
अपने इन अनुभवों को, जिस प्रक्रिया से आप गुजरे हैं, उसको आप कतई छोटा मत मानिए। दूसरा आपके मन में जो पैनिक होता है, उसके लिए मेरा आपसे आग्रह है कि आप किसी दबाव में मत रहिए। जितनी सहज दिनचर्या आपकी रहती है, उसी सहज दिनचर्या में आप अपने आने वाले परीक्षा के समय को भी बिताइए। मन में तय कर लीजिए कि परीक्षा जीवन का सहज हिस्सा है। हमारी विकास यात्रा के ये छोटे-छोटे पड़ाव हैं। इस पड़ाव से पहले भी हम गुजर चुके हैं। पहले भी हम कई बार परीक्षा दे चुके हैं। जब ये विश्वास पैदा हो जाता है तो आने वाले एग्जाम के लिए ये अनुभव आपकी ताकत बन जाता हैं। 

जब आप ऑनलाइन पढ़ते हैं
जब आप ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं तो क्या आप सच में पढ़ाई करते हैं, या reel देखते हैं? दोष ऑनलाइन या ऑफलाइन का नहीं है। क्लासरूम में भी कई बार आपका शरीर क्लासरूम में होगा, आपकी आंखें टीचर की तरफ होंगी, लेकिन कान में एक भी बात नहीं जाती होगी, क्योंकि आपका दिमाग कहीं और होगा।
दिन भर में कुछ पल ऐसे निकालिए, जब आप ऑनलाइन भी नहीं होंगे, ऑफलाइन भी नहीं होंगे बल्कि इनरलाइन होंगे। जितना अपने अंदर जाएंगे, आप अपनी ऊर्जा को अनुभव करेंगे। अगर इन चीजों को कर लेते हैं तो मुझे नहीं लगता कि ये सारे संकट आपके लिए कोई कठिनाई पैदा कर सकते हैं। आज हम डिजिटल गैजेट के माध्यम से बड़ी आसानी से और व्यापक रूप से चीजों को प्राप्त कर सकते हैं। हमें इसे एक opportunity मानना चाहिए, न कि समस्या। मन कहीं और होगा तो सुनना ही बंद हो जाता है। जो चीजें ऑफलाइन होती हैं, वही ऑनलाइन भी होती हैं। इसका मतलब है कि माध्यम समस्या नहीं है, मन समस्या है। माध्यम ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, अगर मन पूरा उसमें डूबा हुआ है, तो आपके लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन का कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

21वीं सदी के अनुकूल व्यवस्थाओं को नीतियों को ढालें
हमें 21वीं सदी के अनुकूल अपनी सारी व्यवस्थाओं और सारी नीतियों को ढालना चाहिए। अगर हम अपने आपको इन्वॉल्व नहीं करेंगे, तो हम ठहर जाएंगे और पिछड़ जाएंगे। पहले हमारे यहां खेलकूद एक एक्स्ट्रा एक्टिविटी माना जाता था। लेकिन इस नेशनल एजुकेशनल पॉलिसी में उसे शिक्षा का हिस्सा बना दिया गया है।

सरकार कुछ भी करे, विरोध उठता है
सरकार कुछ भी करे तो कहीं न कहीं से तो विरोध का स्वर उठता ही है। लेकिन मेरे लिए खुशी की बात है कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी का हिंदुस्तान के हर तबके में पुरजोर स्वागत हुआ है। इसलिए इस काम को करने वाले सभी लोग अभिनंदन के अधिकारी हैं। इसमें लाखों लोग शामिल हैं। इसे देश के नागरिकों, विद्यार्थियों, अध्यापकों ने बनाया है और देश के भविष्य के लिए बनाया है। 

नई शिक्षा नीति
2014 से ही हम नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के काम पर लगे थे। हिंदुस्तान के हर कोने में इस काम के लिए इस विषय पर brainstorming हुआ।  देश के अच्छे विद्वान, जो लोग साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े थे, उसके नेतृत्व में इसकी चर्चा हुई। उससे जो ड्राफ्ट तैयार हुआ उसे फिर लोगों के बीच भेजा गया, उस पर 15-20 लाख इनपुट आए। इतने व्यापक प्रयास के बाद नई शिक्षा नीति आई है।

खुद को जानना बेहद जरूरी
खुद को जानना बहुत जरूरी है। उसमें भी कौन सी बातें हैं जो आपको निराश करती हैं, उन्हें जानकर अलग कर लें। फिर आप ये जाने लें कि कौन सी बातें आपको सहज रूप से प्रेरित करती हैं। आप स्वयं के विषय पर जरूर विश्लेषण कीजिए। 

पुराने जमाने के शिक्षक
पुराने जमाने में शिक्षक का परिवार से संपर्क रहता था। परिवार अपने बच्चों के लिए क्या सोचते हैं उससे शिक्षक परिचित होते थे। शिक्षक क्या करते हैं, उससे परिजन परिचित होते थे। यानि शिक्षा चाहे स्कूल में चलती हो या घर में, हर कोई एक ही प्लेटफार्म पर होता था। लेकिन अब बच्चा दिन भर क्या करता है, उसके लिए मां बाप के पास समय नहीं है। शिक्षक को केवल सिलेबस से लेना देना है कि मेरा काम हो गया, मैंने बहुत अच्छी तरह पढ़ाया। लेकिन बच्चे का मन कुछ और करता है। जब तक हम बच्चे की शक्ति, सीमाएं, रुचि और उसकी अपेक्षा को बारीकी से जानने का प्रयास नहीं करते हैं, तो कहीं न कहीं वो लड़खड़ा जाता है। इसलिए मैं हर अभिभावक और शिक्षक को कहना चाहूंगा कि आप अपने मन की आशा, अपेक्षा के अनुसार अपने बच्चे पर बोझ बढ़ जाए, इससे बचने का प्रयास करें।

हर बच्चे की अपनी सामर्थ्य
हर बच्चे की अपनी सामर्थ्य होती है। परिजनों, शिक्षकों के तराजू में वो फिट हो या न हो, लेकिन ईश्वर ने उसे किसी न किसी विशेष ताकत के साथ भेजा है।  ये आपकी कमी है कि आप उसकी सामर्थ, उसके सपनों को समझ नहीं पा रहे हैं।  इससे आपकी बच्चों से दूरी भी बढ़ने लगती है। हमें उन चीजों को स्वीकार करना है, जो हमारे भीतर सहज रूप से है। मैं सबसे पहले परिजनों से और शिक्षकों से ये कहना चाहूंगा कि आप अपने सपने, जिन्हें आप पूरा नहीं कर पाए, उन्हें आप बच्चों पर डालने का प्रयास न करें। हमारे बच्चों के विकास में ये सब बहुत चिंता का विषय है।

खुद का भी एग्जाम लें
कभी-कभी आप खुद का भी एग्जाम लें, अपनी तैयारियों पर मंथन करें, रीप्ले करने की आदत बनाएं, इससे आपको नई दृष्टि मिलेगी। अनुभव को आत्मसात करने वाले रीप्ले बड़ी आसानी से कर लेते हैं, जब आप खुले मन से चीजों से जुड़ेंगे तो कभी भी निराशा आपके दरवाजे पर दस्तक नहीं दे सकती।

ध्यान बहुत सरल है
ध्यान बहुत सरल है। आप जिस पल में हैं, उस पल को जीने की कोशिश कीजिए। अगर आप उस पल को जी भरकर जीते हैं तो वो आपकी ताकत बन जाता है। ईश्वर की सबसे बड़ी सौगात वर्तमान है। जो वर्तमान को जान पाता है, जो उसे जी पाता है, उसके लिए भविष्य के लिए कोई प्रश्न नहीं होता है। हर विद्यार्थी को लगता है कि मुझे याद नहीं रहता है, ये मैं भूल गया।। लेकिन आप देखेंगे कि एग्जाम के समय पर अचानक ऐसी चीजें निकलने लगेंगी के आप सोचेंगे कि मैनें तो कभी इस विषय को छुआ तक नहीं था, लेकिन अचानक सवाल आ गया और मेरा जवाब भी बहुत अच्छा रहा। मतलब वो कहीं न कहीं स्टोर था। इसलिए ध्यान को सरलता के साथ अपने जीवन के साथ आत्मसात कीजिए। खुद को जानना बहुत जरूरी है। उसमें भी कौन सी बातें हैं जो आपको निराश करती हैं, उन्हें जानकर अलग कर लें। फिर आप ये जाने लें कि कौन सी बातें आपको सहज रूप से प्रेरित करती हैं। आप स्वयं के विषय पर जरूर विश्लेषण कीजिए। 

रास्ता छोड़ने की जरूरत नहीं
जिस चीज में आपको आनंद आता है, आपको उसके लिए अपने आप को कम से कम एडजस्ट करना पड़ता है, वो रास्ता छोड़ने की जरूरत नहीं है। लेकिन उस कंफर्ट अवस्था में भी आपका काम है आपकी पढ़ाई, maximum outcome उसमें से आपको जरा भी हटना नहीं है।

बेटियों के सामर्थ्य को जाने बिना समाज पीछे
समाज बेटियों के सामर्थ को जानने में अगर पीछे रह गया, तो वो समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता। मैंने ऐसी कई बेटियां देखी हैं, जिन्होंने मां-बाप के सुख और उनकी सेवा के लिए शादी तक नहीं की और अपनी पूरी जिंदगी खपा दी। मैंने ये भी देखा है कि बेटे अगर सुख-चैन की जिंदगी जी रहे हैं, लेकिन मां-बाप वृद्धाश्रम में जिंदगी बिता रहे हैं। समाज में बेटा-बेटी एक सामान होने चाहिए। ये हर युग की अनिवार्यता है। पहले के समय में जब शिक्षा की बात आती थी तो मां बाप सोचते थे कि बेटे को पढ़ाना चाहिए और कभी कभी कुछ लोग ये भी सोचते थे कि बेटी को पढ़ाकर क्या करना है, वो तो ससुराल जाएगी और जिंदगी का गुजारा कर लेगी, पहले इस मानसिकता का एक कालखंड था। सिर्फ परीक्षा के लिए दिमाग खपाने के बजाए, खुद को योग्य, शिक्षित व्यक्ति बनाने के लिए, विषय का मास्टर बनने के लिए हमें मेहनत करनी चाहिए। फिर परिणाम जो मिलेगा, सो मिलेगा। Competition को हमें जीवन की सबसे बड़ी सौगात मानना चाहिए। competition ही हमारी कसौटी होती है। जिंदगी में competition को हमें आमंत्रण देना चाहिए। competition जिंदगी को आगे बढ़ाने का बेहतरीन माध्यम है। आज खेलकूल में भारत की बेटियां हर जगह पर अपना नाम रोशन कर रही हैं। विज्ञान के क्षेत्र में हमारी बेटियों का आज पराक्रम दिखता है। 10वीं, 12वीं में भी पास होने वालों में बेटियों की संख्या ज्यादा होती हैं। मैंने ऐसी कई बेटियां देखी हैं, जिन्होंने मां-बाप के सुख और उनकी सेवा के लिए शादी तक नहीं की और अपनी पूरी जिंदगी खपा दी।

कॉम्पिटिशन ही नहीं है तो जिंदगी कैसी
कॉम्पिटिशन को हमें जीवन की सबसे बड़ी सौगात मानना चाहिए। अगर कॉम्पिटिशन ही नहीं है तो जिंदगी कैसी। सच में तो हमें कॉम्पिटिशन को invite करना चाहिए, तभी तो हमारी कसौटी होती है। कॉम्पिटिशन जिंदगी को आगे बढ़ाने का एक अहम माध्यम होता है, जिससे हम अपना evaluation भी कर सकते हैं।

ये 25 साल आपकी जिंदगी के लिए
आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, आज की जो पीढ़ी है जब वो अपने जीवन के सबसे सफल पलों से गुजर रही होगी तब देश आजादी की शताब्दी मना रहा होगा। ये 25 साल आपकी जिंदगी के हैं, आपके लिए हैं। उसका एक साधारण सा मार्ग है कर्तव्य पर बल देना। अगर मैं अपने कर्तव्यों का पालन करता हूं, तो मतलब है कि मैं किसी के अधिकार की रक्षा करता हूं। फिर उसको कभी अधिकार की मांग के लिए निकलना ही नहीं पड़ेगा। आज समस्या ये है कि हम कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं, इसलिए अधिकार के लिए उसको लड़ना पड़ता है। हमारे देश में किसी को  अपने अधिकारों के लिए लड़ना न पड़े ये हमारा कर्तव्य है और उसका उपाय भी हमारा कर्तव्यों का पालन है।

स्कूलों में वैक्सीनेशन
जब हमने स्कूली बच्चों के लिए टीकाकरण अभियान शुरु किया, तो बच्चों ने बड़ी तेजी के साथ खुद का टीकाकरण कराया। ये अपने आप में बड़ी घटना है। हिंदुस्तान के बच्चों ने अपने कर्तव्य का पालन किया है। ये कर्तव्य का पालन देश की आन-बान-शान बढ़ाने का कारण बन गया है। हमें दुनिया में P3 movement चलाने की जरूरत है। Pro-Planet -People. ये P3 movement से ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ेंगे, तो इससे हमें लाभ मिलेगा। स्वच्छता की मेरी भावनाओं को चार चांद लगाने का काम मेरे देश के बालक-बालिकाओं ने किया है। स्वच्छता की इस यात्रा में आज हम जहां पहुंचे हैं, उसका सबसे ज्यादा क्रेडिट में बालक-बालिकाओं को देता हूं।  ऐसे कई बच्चे हैं, जिन्होंने कई बार अपने परिजनों को इधर-उधर कूड़ा फैंकने पर टोका है। गुजरात की पंचायती राज व्यवस्था में कानूनन व्यवस्था है कि 50% इलेक्टेड बहनें होंगी। लेकिन चुनाव के बाद स्थिति ये बनती है कि चुनी हुई महिलाओं की संख्या 55% तक पहुंच जाती हैं और पुरुष 45% पर आ जाते हैं। इसका मतलब समाज का भी माताओं बहनों पर विश्वास बढ़ा है। तभी तो वो जनप्रतिनिधि बनकर आती हैं। आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो आज हिंदुस्तान के पार्लियामेंट में अब तक के कालखंड की सबसे ज्यादा महिला सांसद हैं।

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हर युवा को रहता है इंतजार
इससे पहले शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Education Minister Dharmendra Pradhan) ने ट्वीट करके लिखा था-इसका हर युवा का इंतजार रहता है। वहीं कार्यक्रम से पहले मोदी ने tweet करते हुए उन लाखों लोगों के उत्‍साह की सराहना की, जिन्‍होंने इस वर्ष के ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम के प्रति अपनी मूल्‍यवान विचार साझा किए। उन्होंने ‘परीक्षा पे चर्चा’ में योगदान देने वाले छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को भी धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने कहा-"इस साल के परीक्षा पे चर्चा के प्रति उत्साह अभूतपूर्व रहा है। लाखों लोगों ने अपनी मूल्यवान विचार और अनुभव साझा किए हैं। मैं उन सभी छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने योगदान दिया है।

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2018 में हुई थी परीक्षा पे चर्चा की शुरुआत
बता दें कि स्कूल और कॉलेज के छात्रों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चा करने यह अनूठा कार्यक्रम शुरू किया था। पहला संस्करण "परीक्षा पे चर्चा 1.0" का आयोजन 16 फरवरी, 2018 को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ही किया गया था। 'परीक्षा पे चर्चा' कार्यक्रम के जरिए मोदी हर साल छात्रों से संवाद करते हैं और उन्हें परीक्षा के तनाव को दूर करने के उपाय देते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करते हैं। पिछले साल परीक्षा पे चर्चा में शामिल होने के लिए स्टूडेंट्स के लिए एक कंपटीशन आयोजित किया गया था। यह कंपटीशन MyGov ऐप पर लॉन्च हुआ था। तब मोदी ने कहा था कि आइए, हम एक मुस्कान के साथ और बिना तनाव के परीक्षा में शामिल हों। ‘परीक्षा पे चर्चा 2022’ में भाग लेने के लिए  पहले से ही रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। इस बार इसके लिए रजिस्ट्रेशन 28 दिसंबर से mygov.in पर उपलब्ध थे। यह प्रक्रिया 28 दिसंबर से 20 जनवरी तक चली। परीक्षा पे चर्चा में 9वीं से 12वीं कक्षा के छात्र, अभिभावक और शिक्षकों का रजिस्ट्रेशन होता है।

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