राज्यसभा (Rajya sabha) के 72 सदस्य गुरुवार को रिटायर हो गए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अपने चिरपरिचित अंदाज और शैली में उन्हें विदाई दी। उन्होंने विदाई के लिए बाय-बाय शब्द के बजाय गुजरात के आऊजो के अलावा बंगाली के आमे आशचि शब्द का इस्तेमाल किया। पढ़िए पूरा संबोधन...
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की भाषण शैली हमेशा से चर्चा का विषय रही है। चाहे चुनावी सभाएं हों या संसद, उनके बोलने और शब्दों के चयन का तरीका सबको पसंद आता है। राज्यसभा (Rajya sabha) के 72 सदस्य गुरुवार को रिटायर हो गए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अपने चिरपरिचित अंदाज और शैली में उन्हें विदाई दी। उन्होंने विदाई के लिए बाय-बाय शब्द के बजाय गुजरात के आऊजो के अलावा बंगाली के आमे आशचि शब्द का इस्तेमाल किया। पढ़िए पूरा संबोधन, जिसे प्रेस सूचना ब्यूरो( Press Information Bureau-PIB) ने जारी किया है...
आदरणीय सभापति जी, आपने वक्ताओं के लिए काफी सीमाएं बांधी हैं, मेरी कोशिश रहेगी कि उन सीमाओं का पालन करते हुए अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करूं।
वैसे हमारे यहां विदाई समारोह तो है ही है, जा रहे हैं साथी, लेकिन जैसे बंगाली में कहते हैं आमे आशचि, या गुजराती में कहते हैं आऊजो, come again. वैसे कहते तो bye-bye हैं लेकिन कहते हैं come again. तो एक प्रकार से हम तो यही चाहेंगे come again. ताकि जैसा सभापति जी ने कहा कि इतने-इतने अनुभव जिनके साथ जुड़े हुए हैं पांच टर्म चार टर्म तीन टर्म, इतने समय से .... यानि बहुत बड़ी मात्रा में अनुभव का संपुट हमारे इन सभी महानुभावों के पास है और कभी-कभी ज्ञान से ज्यादा अनुभव की ताकत होती है।
Academic knowledge की कभी-कभी बहुत सीमाएं होती हैं
मोदी ने कहा- Academic knowledge की कभी-कभी बहुत सीमाएं होती हैं, वो सेमिनार में काम आता है लेकिन अनुभव से जो प्राप्त हुआ होता है, उसमें समस्याओं के समाधान के लिए सरल उपाय होते हैं। उसमें नयापन के लिए अनुभव का मिश्रण होने के कारण गलतियां कम से कम होती हैं। और इस अर्थ में अनुभव का अपना एक बहुत बड़ा महत्व होता है और जब ऐसे अनुभवी साथी सदन से जाते हैं तो बहुत बड़ी कमी सदन को होती है, राष्ट्र को होती है। आने वाली पीढ़ियों के लिए जो निर्णय होने वाले हैं, उसमें कुछ कमी रह जाती है। और इसलिए जब अनुभवी लोग जाते हैं उनके लिए यहां बहुत कहा जाएगा। लेकिन जब अनुभवी यहां नहीं है, तब जो हैं उनकी जिम्मेदारी जरा और बढ़ जाती है। वो जो अनुभव की गाथाएं यहां छोड़कर गए हैं, जो बाकी यहां रहने वाले हैं उनको उसको आगे बढ़ाना होता है। और जब वो आगे बढ़ाते हैं तो सदन की ताकत को कभी कमी महसूस नहीं होती है। और मुझे विश्वास है कि आप जो साथी आज विदाई लेने वाले हैं उनसे हम जो सभी सीखे हैं, आज हम भी संकल्प करें उसमें से भी उत्तम है, जो श्रेष्ठ है उसको हम आगे बढ़ाने में इस सदन की पवित्र जगह का जरूर हम उपयोग करेंगे और ताकि देश की समृद्धि में बहुत काम आएगा।
एक लंबा समय हम इस चार दीवारों के बीच बिताते हैं
मोदी ने कहा-एक लंबा समय हम इस चार दीवारों के बीच में बिताते हैं। हिन्दुस्तान के हर कोने की भावनाओं का यहां प्रतिबिम्ब, अभिव्यक्ति, वेदना, उमंग, सब कुछ यहां पर एक प्रवाह बहता रहता है, और उस प्रवाह को हम भी अनुभव करते रहते हैं। लेकिन कभी हमको लगता होगा मैंने सदन में बहुत कुछ contribute किया है, बहुत सच्चाई है, लेकिन साथ-साथ इस सदन ने भी हमारे जीवन में बहुत कुछ contribute किया है। हम सदन को दे करके जाते हैं उससे ज्यादा सदन से ले करके जाते हैं क्योंकि भारत की विविधताओं से भरी हुई सामाजिक व्यवस्थाओं से अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव वाली व्यवस्थाओं से निकली हुई चीजें, उसको हम प्रतिदिन अनुभव करते हैं सदन में।
हम भले चार दीवारों से निकल रहे हैं
मोदी ने कहा-और इसलिए मैं आज यही कहूंगा कि भले हम इस चार दीवारों से निकल रहे हैं, लेकिन इस अनुभव को राष्ट्र के सर्वोत्तम हित के लिए चारों दिशाओं में ले जाएं; चारों दीवारों में पाया हुआ चारों दिशाओं में ले जाएं, ये हम सबका संकल्प रहे और हमारी ये भी कोशिश रहे कि सदन में अपने कालखंड में जो महत्वपूर्ण चीजें हमने contribute की हैं, जिसने देश को shape दिया है, देश की दिशा को मोड़ा है, मैं चाहूंगा उन स्मृतियों को आप कहीं न कहीं शब्दबद्ध करें, कहीं-कहीं लिखें ताकि कभी न कभी वो आने वाले पीढ़ियों को reference के रूप में काम आएगी।
कहीं पर भी हम बैठे हों, यहां हों या वहां हों लेकिन हरेक ने अपने तरीके से कुछ न कुछ ऐसा contribution किया होगा जिसने देश को दिशा देने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की होगी। इसको अगर हम संग्रहित करेंगे, मैं समझता हूं कि ऐसा मूल्यवान खजाना हमारे पास काम आएगा जो आने वाले लोगों के लिए काम आ सकता है। यानी एक institutionalize व्यवस्था के हित उसका उपयोग हो सकता है।
अब देने की जिम्मेदारी
मोदी ने कहा-उसी प्रकार से मैं ये भी चाहूंगा कि आजादी का अमृत महोत्सव है। आजादी के 75 साल हुए हैं। हमारे महापुरुषों ने देश के लिए बहुत कुछ दिया है, अब देने की जिम्मेदारी हमारी है। हम यहां से उस भाव को ले करके...क्योंकि अब थोड़ा समय ज्यादा होगा हमारे पास, जब यहां से जा रहे हैं तो...सभापति जी का बंधन भी नहीं होगा। आप बड़े खुले मन से एक बड़े मंच पर जा करके आजादी के अमृत महोत्सव के इस महामूल्य पर्व को माध्यम बना करके आने वाली पीढ़ियों को कैसे प्रेरित कर सकते हैं, उसमें अगर आपका योगदान रहेगा…मैं समझता हूं देश को बहुत बड़ी ताकत मिलेगी, बहुत बड़ा लाभ मिलेगा।
अंत में मोदी ने कहा
मैं सभी साथियों को, मैं individually ऊल्लेख नहीं कर रहा हूं। सभापति जी ने कहा है कि व्यक्तिगत मिलें तो कह देना, तो मैं व्यक्तिगत जरूर कोशिश करूंगा, आप सबको अपनी अच्छी-अच्छी बातें बताऊंगा। आपकी जो अच्छी बाते हैं, उनको मैं जरूर नोटिस करता हूं। मैं फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
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