वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने लिखा की कोरोना से पीड़ित सारे देशों के आंकड़ें देखें तो भारत शायद सबसे कम पीड़ित देशों की श्रेणी में आएगा। दुनिया के पहले दस देशों में अमेरिका से लेकर बेल्जियम तक के नाम हैं लेकिन भारत का कहीं भी जिक्र तक नहीं है। यदि भारत की जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो माना जाएगा कि कोरोना भारत में अभी तक घुस नहीं पाया है, उसने बस भारत को छुआ भर है, जैसे उड़ती हुई चील किसी पर झपट्टा मार देती है।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने लिखा की कोरोना से पीड़ित सारे देशों के आंकड़ें देखें तो भारत शायद सबसे कम पीड़ित देशों की श्रेणी में आएगा। दुनिया के पहले दस देशों में अमेरिका से लेकर बेल्जियम तक के नाम हैं लेकिन भारत का कहीं भी जिक्र तक नहीं है। यदि भारत की जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो माना जाएगा कि कोरोना भारत में अभी तक घुस नहीं पाया है, उसने बस भारत को छुआ भर है, जैसे उड़ती हुई चील किसी पर झपट्टा मार देती है। भारत की आबादी अमेरिका से लगभग पांच गुना ज्यादा है। वहां 16000 से ज्यादा लोग मर गए लेकिन भारत में यह आंकड़ा दो-ढाई सौ तक ही पहुंचा है, वह भी सरकारी ढील और जमातियों की मूर्खता के कारण। अमेरिकी गणित यदि भारत पर लागू करें तो यह आंकड़ा 80 हजार तक पहुंच सकता था लेकिन भारत ने कोरोना के सांड के सींग जमकर पकड़ रखे हैं। वह उसे इधर-उधर भागने नहीं दे रहा है। इसके लिए भारत की अनुशासित और धैर्यवान जनता तो श्रेय की पात्र है ही, हमारी केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें भी अपूर्व सतर्कता का परिचय दे रही हैं। हमारे देश के दानदाताओं ने अपनी तिजोरियों के मुंह खोल दिए हैं। किसी के भी भूखे मरने की खबर नहीं है। सबका इलाज हो रहा है। हमारे डाॅक्टर और नर्स अपनी जान खतरे में डालकर मरीजों की सेवा कर रहे हैं। हरयाणा सरकार ने उनके वेतन और दुगुने करके एक मिसाल पेश की है। सभी सरकारों को हरयाणा का अनुकरण करना चाहिए। यही सुविधा सरकारी कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों को भी दी जानी चाहिए। ठीक हुए मरीजों के ‘प्लाज्मा’ से यदि केरल में सफलता मिलती है तो देश के सारे कोरोना-मरीजों को यह तुरंत उपलब्ध करवाया जाए। पिछले हफ्ते कई मुख्यमंत्रियों से इस बारे में मेरी बात हुई थी। जिन जिलों में कोरोना नहीं पहुंचा है, उनमें किसानों को अपनी फसलें कटवाने और उन्हें बाजारों तक पहुंचवाने के बारे में सरकारें कुछ ठोस कदम उठा सकती हैं। कोरोना की जांच के लिए हमारे वैज्ञानिक डाॅक्टरों ने कई सस्ते और प्रामाणिक उपकरण ढूंढ निकाले हैं। सरकार भीलवाड़ा पद्धति पर लाखों लोगों की जांच प्रतिदिन क्यों नहीं करवा सकती है ? शहरों में अटके हुए मजदूरों को अगर यात्रा करना है तो पहले उनकी जांच का इंतजाम भी जरुरी है। मुझे आश्चर्य है कि हिंदी के कुछ बड़े अखबारों के सिवाय कोई भी सरकारी और गैर-सरकारी टीवी और रेडियो चैनल हमारे घरेलू नुस्खों पर जोर नहीं दे रहा है। इसी तरह भारत में एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने, ताज़ा खाना खाने, नमस्ते या सलाम करने की परंपरा का भी प्रचार ठीक से नहीं हो रहा हे। भारतीय संस्कृति के इन सहज उपायों का लाभ सारे संसार को मिले, ऐसी हमारी कोशिश क्यों नहीं है