ईद मुबारक: ज्यादातर भारतीय नहीं जानते रमजान का शिष्टाचार- इफ्तार के वक्त को अदब से समझने की जरूरत

2016 में नोबेल पुरस्कार पाने वाले जापान के कोशिका जीवविज्ञानी योशिनोमोरी ओशुम ने शोध से यह साबित किया था कि 28 दिनों तक 14 से 16 घंटे का उपवास करने से कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोका जास सकता है।

Etiquettes Of Ramzan. 2016 में नोबेल पुरस्कार पाने वाले जापान के कोशिका जीवविज्ञानी योशिनोमोरी ओशुम ने शोध से यह साबित किया था कि 28 दिनों तक 14 से 16 घंटे का उपवास करने से कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोका जास सकता है। यही कारण है कि महीने भर रमजान के उपवास के बाद शरीर ठीक होना सीख जाता है। शाम के 6 बजकर 38 मिनट पर भारत के मुसलमानों के लिए इफ्तार का टाइम होता है। मैं भी 17 घंटे के रोजे के बाद उपवास तोड़ने के लिए तैयार हूं। अल्लाह का शुक्र है कि भूख, प्यास, सिरदर्द को सहने की क्षमता बढ़ गई है। इससे पहले कि मैं पहला खजूर अपने मुंह में डालूं, अल्लाह के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रार्थना करता हूं कि मैंने आपके लिए उपवास रखा और इसे तोड़ रहा हूं।

इससे पहले कि मैंने अभी पहला निवाला मुंह में लिया ही था कि फोन की घंटी बजी। मैं उठाता हूं और जल्दबाजी में कुछ पानी पीता हूं। उपवास के लास्ट में तेज प्यास लगती है। दूसरी तरफ का व्यक्ति आनंद के मूड में हैं। वह कहता है और सुनाओ क्या चल रहा है। मैं फ्री था तो सोचा आपसे बात करता हूं, कुछ चैट-वैट करते हैं। तब मुझे आभास होता है कि शायद इस व्यक्ति को पता नहीं कि इस वक्त मुसलमान 16-18 घंटे के उपवास के बाद रोजा तोड़ता है, उसमें जरा भी शिष्टाचार नहीं दिखता। या यूं कहें कि उसे रमजान का शिष्टाचा पता ही नहीं है।

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हर जगह हैं ऐसे हालात

यह सिर्फ किसी के व्यक्तिगत फोन कॉल तक ही सीमित नहीं है। मीडिया, जनसंपर्क प्रबंधकों, कॉल सेंटरों, रियल एस्टेट एजेंटों, संस्थानों, एजुकेशन इंस्टीट्यूट के पेशेवर लोग भी शाम को 5.30 से 7.30 के बीच ही कॉल करते हैं। तब यह समय होता है जब लोग दफ्तर से वापस घर लौटते हैं। कोई इत्मीनान से चाय की चुस्की ले रहा होता है। मुझे रमजान के दौरान विशेष रूप से गुस्सा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह दया और क्षमा का महीना है। लेकिन गुस्सा आता है और मैं जवाब देता हूं कि क्या मेरा नाम नहीं बताता है कि मैं मुसलमान हूं। आप ठीक उसी वक्त फोन कर रहे हैं, जब मैं रोजा तोड़ने जा रहा हूं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इतना सुनने के बाद भी फोन पर दूसरी तरफ से किसी बंदे ने न तो शर्मिंदगी महसूर की और न ही कभी सॉरी कहा। बल्कि वह तो मजे लेकर कहता है कि ओह! तो आपका रोजा चालू है? वास्तव में? तो आप क्या खा रहे हैं, भाई, क्या पकवान बना है।

मुसलमान क्या करें

मेरा मानना है कि इफ्तार के समय मुसलमानों को थोड़ा संभल कर रहना चाहिए या फोन ही नहीं उठाना चाहिए। बार-बार लोगों को व्यर्थ समझाने से अच्छा है कि बात ही न करें। पर सवाल यही है कि भारत का एक हिस्सा पवित्र महीने के दौरान मुसलमानों के साथ बातचीत करने के नियमों को सीखने को तैयार क्यों नहीं है? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके कुछ मुस्लिम दोस्त बिल्कुल भी उपवास नहीं करते हैं। या यह इसलिए है क्योंकि यह उनके दिमाग में नहीं आता है क्योंकि उन्हें कभी किसी ने बताया ही नहीं है? यह बात उनके मुसलमान मित्रों, पड़ोसियों, अध्यापकों या घर के बड़े-बुजुर्गों ने भी उन्हें नहीं बताई? क्या उनके लिए रमजान केवल रोजा रखने के बाद दावत देने का महीना है?

रोजा-इफ्तार की दावतें

दुर्भाग्य से अधिकांश इफ्तार पार्टियां सिर्फ मुसलमानों द्वारा दी जाती हैं। अन्य धर्मों के लोग एकजुटता दिखाने के लिए उपवास भी करते हैं। मैंने अलीगढ़ में एक गैर-मुस्लिम दोस्त की इफ्तार पार्टी में शिरकत की, जिसमें ज्यादातर मेहमान गैर-मुस्लिम थे। मुस्लिम अक्सर इसी तरह की इफ्तार पार्टियों की मेजबानी करते हैं। खाने की मेज पर ढेर सारे खाद्य पदार्थ और स्नैक्स फैले होते हैं। मेहमानों को शरीर को ठीक से ढंकने जैसा ड्रेस कोड तक नहीं बताया जाता है। मेहमान इस हाई टी लुक-अलाइक मौके पर शॉर्ट्स, कार्गो पैंट और जींस-टी-शर्ट में भी आते हैं! यह किसकी गलती है कि ज्यादातर लोगों को रमजान, रोजा, इफ्तार या सहरी के दौरान शिष्टाचार और उचित व्यवहार के बारे में पता ही नहीं है? सच कहें तो ईश्वर के लिए इफ्तार कभी पार्टी नहीं होती। यह तो उस सर्वशक्तिमान के प्रति आभार और विनम्रता का समय है, जो भूखे-प्यासे रहने से आता है। यह वक्त उन लोगों को याद करने का है जो एक दिन में दो वक्त की रोटी भी खा पाते।

रमजान के दौरान सामान्य व्यवहार

आइए हम सांस्कृतिक संध्याओं, कला, रंगमंच, साहित्य और फिल्म शो के बारे में भी बात करते हैं जो आमतौर पर रमजान के महीने में पूरे जोरों पर होते हैं। आयोजक इस बात पर ध्यान देने की जहमत नहीं उठाते कि यह मुसलमानों के लिए उपवास का महीना है। अक्सर इस तरह के शो का टाइम इफ्तार के साथ मेल खाता है। हाल ही में, मैंने इस बिंदु को बुद्धिजीवियों, साहित्यिक और थिएटर आइकन और फिल्म निर्माताओं के व्हाट्सएप ग्रुप में उठाया था। मैंने उन्हें बताया कि मुझे एक ऐसे शो का निमंत्रण मिला है जिसमें मुझे शामिल होना अच्छा लगता। हालांकि, रमज़ान के अपने दायित्व के कारण, मैं नहीं जा सका। मुझे लगता है कि भारत में अंतर-धार्मिक संबंधों पर चर्चा करने और धार्मिक अवसरों पर पारंपरिक मेल मिलाप और समझ बढ़ाने का समय है। मैं हमेशा दिवाली या होली पर पूजा के समय हिंदू दोस्तों से मिलने से बचता हूं क्योंकि ज्यादातर घरों में यह काफी हद तक निजी पारिवारिक मामला होता है।

रमजान उपवासों का महीना है

सभी भारतीयों को पता होना चाहिए कि रमजान का महीना उपवासों का है। यह किसी पार्टी का टाइम नहीं है। यह दान करने के बारे में है न कि कबाब और बिरयानी के बारे में है। जबकि लोग तो रात भर खाते रहते हैं। फिर दिन में उपवास करते हैं। मुसलमानों के बारे में इस तरह की छवि बनी है। सच यह है कि यह खाने के बारे में नहीं है। सच तो यह है कि इफ्तार के समय किसी को बुलाना गलत है। जब तक कि यह आपातस्थिति न हो। यह एक रोजेदार का सम्मान करने के बारे में है। तो अगली बार रमजान के दौरान, कृपया सुनिश्चित करें कि आप इफ्तार के समय किसी मुसलमान को न बुलाएं। स्थानीय इफ्तार के समय का पता लगाने के लिए कोई भी गूगल से जानकारी ले सकता है।

हो सकता है कि कुछ लोगों को यह लगे कि मैं कट्टरपंथी, छोटी सोच वाला मुसलमान हूं। कुछ लोग मुझपर और भी लेबल लगा सकते हैं लेकिन मुझे यकीन है कि समझदार लोगों को संदेश मिल गया होगा। लोग इस संदेश को आगे भी बढ़ाएंगे और यही सब मायने रखता है। आखिरकार, भारत सह-अस्तित्व और साझा संस्कृति वाला देश है।

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(लेखक- राणा सिद्दीकी, वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक हैं।)

साभार- आवाज द वॉयस

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