बीजेपी के दिग्गज नेता डॉ.हर्षवर्धन ने लिया राजनीति से संन्यास, चांदनी चौक के सांसद अपना टिकट काटे जाने से नाराज

Published : Mar 03, 2024, 07:00 PM IST
harshvardhan

सार

आरएसएस से बीजेपी की राजनीति में आए पेशे से डॉक्टर, हर्षवर्धन करीब तीन दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे हैं। टिकट नहीं मिलने के बाद अपने संन्यास का ऐलान करते हुए उन्होंने ट्वीटर पर पोस्ट किया है।

Lok Sabha Election 2024: भारतीय जनता पार्टी के सीनियर लीडर डॉ.हर्षवर्धन ने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.हर्षवर्धन को लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रत्याशी नहीं बनाया है। वह दिल्ली से सांसद हैं। चांदनी चौक के सांसद डॉ.हर्षवर्धन की जगह पर बीजेपी ने प्रवीण खंडेलवाल को प्रत्याशी बनाया है।

आरएसएस से बीजेपी की राजनीति में आए पेशे से डॉक्टर, हर्षवर्धन करीब तीन दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे हैं। टिकट नहीं मिलने के बाद अपने संन्यास का ऐलान करते हुए उन्होंने ट्वीटर पर पोस्ट किया है। एक लंबे विदाई संदेश में उन्होंने कहा: वह तंबाकू और मादक द्रव्यों के सेवन व जलवायु परिवर्तन के खिलाफ, सरल और टिकाऊ जीवन शैली सिखाने का अपना काम जारी रखेंगे।

मेरे लिए राजनीति का मतलब गरीबी-बीमारी-अज्ञानता से लड़ना

बीजेपी नेता ने बताया कि उनकी राजनीति यात्रा आरएसएस के कहने पर बीजेपी के साथ शुरू हुई थी। वह दिल से स्वयंसेवक थे, वह तत्कालीन आरएसएस नेतृत्व के आग्रह पर चुनावी राजनीति में कूद पड़े। वे मुझे केवल इसलिए मना सके क्योंकि मेरे लिए राजनीति का मतलब हमारे तीन मुख्य दुश्मनों - गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ने का अवसर है।

2021 में मोदी मंत्रिमंडल से हटाए गए थे डॉ.हर्षवर्धन

डॉ. हर्षवर्धन मोदी कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री थे। लेकिन जुलाई 2021 को मोदी कैबिनेट के विस्तार के कुछ समय पहले ही उनसे इस्तीफा ले लिया गया था। तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की जगह पर मनसुख मंडाविया को स्वास्थ्य मंत्री के रूप में शपथ दिलाया गया। डॉ.हर्षवर्धन पेशे से डॉक्टर हैं।

कोविड प्रबंधन में नाकाम साबित रहे

दरअसल, कांग्रेस ने पहले ही आरोप लगाया था कि डॉ.हर्षवर्धन को हटाना कोविड प्रबंधन में मोदी सरकार की विफलता की मौन स्वीकृति थी। दूसरी कोविड लहर के दौरान अभूतपूर्व पैमाने पर हुई तबाही ने भारत के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की पोल खोल दी थी। ऑक्सीजन, अस्पताल के बिस्तर और वैक्सीन के लिए बेताब हजारों मरीजों की मौत हो गई थी। यूपी और बिहार में गंगा में तैरते या उसके तटों पर बहते शवों की तस्वीरें भारतीय और विदेशी मीडिया में छाई रहीं।

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