पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का निधन, कभी जिन्ना की तारीफ करने पर बीजेपी ने कर दिया था पार्टी से बाहर

पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का निधन हो गया है। उन्होंने 82 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। राजनाथ दुख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया और उसमें लिखा, 'श्री जसवंत सिंह जी को राष्ट्र के लिए उनके द्वारा किए गए काम को लेकर याद किया जाएगा।'

नई दिल्ली, पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का निधन हो गया है। उन्होंने 82 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। राजनाथ दुख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया और उसमें लिखा, 'श्री जसवंत सिंह जी को राष्ट्र के लिए उनके द्वारा किए गए काम को लेकर याद किया जाएगा। राजस्थान में बीजेपी की स्ट्रेंथ को बढ़ाने में उनका अहम योगदान रहा। उनके परिवार को मेरी ओर से संवेदनाएं। ओम शांति।'


 

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देश के कद्दावर नेताओं में से एक, जसवंत सिंह का जन्म 3 जनवरी, 1938 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल गांव में ठाकुर सरदारा सिंह और कुंवर बाईसा के घर हुआ था। जसवंत सिंह की पत्नी का नाम शीतल कंवर है। उनके दो पुत्र हैं। बड़ा बेटा मानवेंद्र सिंह बाड़मेर से पूर्व सांसद रह चुका है। वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में थे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 1998 से 2004 के बीच वित्त, रक्षा और विदेश जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली। वह 2004 से 2009 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे। यही नहीं। 1998 से 1999 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे। जसवंत सिंह को उनके कड़े विचारों के लिए भी जाना जाता था।

राजनैतिक जीवन

वहीं, अगर जसवंत सिंह के राजनीतिक जीवन की बात करें तो 60 के दशक में वो राजनीति में आए, लेकिन शुरुआती तौर पर उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिल पाई थी। हालांकि, भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत द्वारा उन्हें जनसंघ में शामिल करने के बाद ही जसवंत को राजनैतिक पहचान मिली। भैरों सिंह शेखावत को जसवंत सिंह का राजनैतिक गुरु माना जाता है। उन्हें पहली सफलता 1980 में मिली जब वह राज्यसभा के लिए चुने गए। वह पहली बार देश के वित्त मंत्री 16 मई, 1996 से 1 जून, 1996 तक रहे जब अटल बिहारी वाजपेयी महज 13 दिनों तक देश के प्रधानमंत्री बने थे। 

दो साल बाद जब वाजपेयी फिर से देश के प्रधानमंत्री बनें, तब उन्हें विदेश मंत्रालय का जिम्मा दिया गया। इस पद पर वह 5 दिसंबर, 1998 से एक जुलाई 2002 तक रहे। जुलाई 2002 में उन्हें यशवंत सिन्हा की जगह वित्त मंत्री बनाया गया, जबकि सिन्हा को सिंह की जगह विदेश मंत्रालय भेज दिया गया। वह इस मंत्रालय में मई 2004 के आम चुनावों में राजग सरकार को मिली हार तक रहे। तहलका कांड में जॉर्ज फर्नांडिस का नाम आने के चलते वह 2000-2001 तक देश के रक्षामंत्री भी रहे। कांड में नाम आने से फर्नांडिस को रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

जिन्ना की तरीफ करने पर पार्टी से कर दिया था निष्कासित 

अपनी किताब 'जिन्ना-इंडिया पार्टिशन इंडिपेंडेंस' में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह की तारीफ करने के चलते भाजपा ने उन्हें 19 अगस्त 2009 को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। पार्टी से निकाले जाने से पहले, जसवंत 2004 से 2009 तक संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे। हालांकि, इसके अगले साल उन्हें पार्टी में फिर से शामिल कर लिया गया। उस साल दार्जीलिंग लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में वह यह सीट जीतने में कामयाब रहे। लेकिन, 2014 के आम चुनावों मे बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से टिकट नहीं मिलने और आधिकारिक प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़े होने पर उन्हें पार्टी ने फिर से निष्कासित कर दिया था।

उपराष्ट्रपति उम्मीदवार

2012 में उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में जसवंत राजग उम्मीदवार थे। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके प्रमुख जे जयललिता ने जसवंत सिंह को समर्थन देने की घोषणा की। जयललिता का कहना था कि 'सच्चे लोकतंत्र में प्रतिरोध होना चाहिए।' हालांकि, जसवंत हामिल अंसारी से हार गए जो यूपीए सरकार के उम्मीदवार थे।

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