विदेशी पोर्टफोलियो निवेश शेयर और बांड के रूप में होता है। एफपीआई निवेशक अपने निवेश में अधिक निष्क्रिय स्थिति में रहते हैं।
नई दिल्ली। कोरोना काल (Covid19) में भारत की अर्थव्यवस्था (Economy) भले ही डगमगाई हो लेकिन वैश्विक स्तर पर इसकी साख अभी भी बरकरार है। भारत की एफपीआई (FPI) जितना पिछले 30 सालों में रही उसका 26 प्रतिशत वित्तीय वर्ष 2020-21 में हासिल हो गया। वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि इंडिया की साख पूरे विश्व में बढ़ी है और फॉरेन इंन्वेस्टर्स यहां निवेश के लिए अधिक सुरक्षा महसूस कर रहे हैं।
30 साल के कुल इन्वेस्टमेंट का 26 प्रतिशत एक ही साल में
भारत सरकार की माईगॉव (MyGov) वेबसाइट के अनुसार भारत में साल 1992 से 2020 तक फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (Foreign Portfolio Investment) कुल 7.64 लाख करोड़ रहा। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में एफपीआई इक्वीटी 2.74 लाख करोड़ रहा। आंकड़ों पर गौर करें तो यह तीन दशकों की कुल एफपीआई का करीब 26 प्रतिशत है।
क्या है एफपीआई ?
जब कोई विदेशी व्यक्ति या कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड इंडियन कंपनी के शेयर खरीदी है लेकिन उसकी हिस्सेदारी 10% से कम होती है तो उसे एफपीआई कहा जाता है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश शेयर और बांड के रूप में होता है। एफपीआई निवेशक अपने निवेश में अधिक निष्क्रिय स्थिति में रहते हैं। एफपीआई को निष्क्रिय निवेशक माना जाता है।
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