From The India Gate: आखिर कहां, बिना धूमधाम के हुआ 'युवराज' का आगमन

सत्ता के गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पर्दे के पीछे की इसी कहानी को सामने लाने के लिए पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का दूसरा एपिसोड, जिसमें हम बता रहे हैं- तमिलनाडु में 'Son' राइज की कहानी और साथ ही ये भी कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। 

From The India Gate: सत्ता के गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सियासत का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज नेटवर्क की व्यापक जमीनी मौजूदगी इसे देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज पकड़ने में सक्षम बनाती है। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का दूसरा एपिसोड, जिसमें हम बता रहे हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, साथ ही तमिलनाडु में 'Son' राइज की कहानी। 

बैक पेट एंड बैक पैक :  
संसद का शीतकालीन सत्र इस सप्ताह के अंत में समाप्त होने वाला है। इसी बीच, एक बार फिर मंत्रिमंडल में फेरबदल की बातें जोर पकड़ने लगी हैं। जहां तक अनुमान है, इस बार कम से कम 2 कैबिनेट दिग्गजों को बेदखल किया जा सकता है। जहां एक को दिल्ली में अपराजेय दिखने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए पार्टी के चेहरे के रूप में खड़ा किया जा सकता है, वहीं दूसरे दिग्गज को हाल के विधानसभा चुनावों में उनकी विफलता के लिए बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। आगे भी बनें रहें..

HOWZZZAATT : 
अर्जेंटीना और फ्रांस के बीच फीफा विश्व कप फाइनल के लिए बीसीसीआई के सभी बड़े अधिकारी कतर की राजधानी दोहा में थे। सबसे जरूरी बात ये है कि ये सभी अधिकारी कतर में महज फुटबॉल का आनंद लेने के लिए नहीं गए थे, बल्कि उनके दिमाग में कई विचार भी उमड़ रहे थे। दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के माननीय फुटबॉल वर्ल्डकप के विश्व स्तरीय आयोजन की सभी व्यवस्थाओं और आयोजन का जायजा इसलिए भी करने गए थे, ताकि वो इसे करीब से समझ सकें। बीसीसीआई की टीम ने वहां इस बात को बारीकी से देखा और समझा कि दुनियाभर से आए दर्शकों और राष्ट्राध्यक्षों को कैसे हैंडल किया जाता है। कतर में बीसीसीआई के अधिकारियों की मौजूदगी इस बात की ओर इशारा करती है कि इतने बड़े आयोजन को कैसे मैनेज करना है, इसे समझना बहुत जरूरी है। वैसे, इतने अमीर लोगों के कतर जाने के लिए ये कारण पर्याप्त हैं, या फिर इसे थर्ड अंपायर पर छोड़ दें?

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'Son'राइज इन तमिलनाडु : 
तमिलनाडु में बिना धूमधाम के युवराज का आगमन हो चुका है। चेन्नई के किले में राजा ने बेहद शांति के साथ जाने का फैसला किया था। उनके उत्तराधिकारी को मंत्री बनाने के फौरन बाद प्रोटोकॉल में उनकी रैंक कई वरिष्ठ दिग्गजों से भी आगे रख दी गई। हालांकि, अब दरबार में ये कानाफूसी चल रही है कि बेटे को और जिम्मेदारियां सौंपी जा रही हैं। इस कदम को उन्हें एक बड़े नेता के तौर पर पेश करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी दल का नेतृत्व करेगा। अंदरूनी सूत्रों से ये भी पता चला है कि लोकसभा चुनाव के बाद उनके बेटे को उपमुख्यमंत्री बनाने पर विचार चल रहा है। इसी क्रम में युवराज स्वयं पर्याप्त संकेत दे रहे हैं कि वो एक पावर सेंटर के रूप में उभर रहे हैं। हाल ही में राज्य के वित्त मंत्री दूध और बिजली के दामों में बढ़ोतरी करना चाहते थे। हालांकि, मुख्यमंत्री इन सिफारिशों को लागू करने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन युवराज से मंजूरी मिलने के बाद सरकार को इसे लागू करना पड़ा। 

कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं : 
तेलंगाना राष्ट्र समिति, अब भारत राष्ट्र समिति है। यह मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव द्वारा देश भर में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के पंख फैलाने के लिए बढ़ाया गया एक स्पष्ट कदम है। भविष्य में दिल्ली के लिए परफेक्ट रोडमैप तैयार करने की दिशा में केसीआर ने आंध्र प्रदेश में अपना पहला पिट स्पॉट बनाने की तैयारी कर ली है। इसके तहत आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में भारत राष्ट्र समिति का नया ऑफिस खोला जा रहा है। इसके साथ ही, राजनीतिक पंडित उन संभावित नेताओं के नामों पर टिक लगाने में व्यस्त हैं, जो केसीआर के साथ सवारी करने के लिए पाला बदलेंगे। इनमें दो बार कांग्रेस के सांसद रहे वुंदावल्ली अरुण कुमार, बीआरएस में शामिल होने वाले पहले प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति लग रहे हैं। वो केसीआर के जाने-पहचाने विरोधी हैं और उन्होंने राज्य के बंटवारे का तगड़ा विरोध किया था। वुंदावल्ली कुछ समय के लिए एक तरह की शीतनिद्रा में थे। लेकिन हाल ही में उन्होंने केसीआर के साथ एक लंबी बैठक की, जिसके बाद दोनों राज्यों में इस तरह की अफवाहें उड़ीं। बता दें कि वुंदावल्ली वाईएस राजशेखर रेड्डी, पूर्व सीएम और वर्तमान में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन के पिता के करीबी सहयोगी रहे हैं। वैसे, कहावत है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता और ये चरितार्थ होती दिख रही है। 

ये भी देखें : 

From The India Gate: 2 चैनलों, म्यूजिकल चेयर और दो फ्रेम की कहानी..

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