हैदराबाद का किला कैसे भेद पाई भाजपा, 6 पॉइंट्स में समझिए पूरा राजनीतिक गणित

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) के चुनाव नतीजों ने सभी को चौंका दिया। दरअसल, 150 सीटों वाले नगर निगम में भाजपा को कुल 46 सीटें मिली। हालांकि, इस बार भी सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) 55 सीटों के साथ सबसे  बड़ी पार्टी रही। 

हैदराबाद. ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC) के चुनाव नतीजों ने सभी को चौंका दिया। दरअसल, 150 सीटों वाले नगर निगम में भाजपा को कुल 46 सीटें मिली। हालांकि, इस बार भी सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) 55 सीटों के साथ सबसे  बड़ी पार्टी रही। इसके बावजूद इन नतीजों में सबसे ज्यादा चर्चा भाजपा की रही। भाजपा ने पिछली बार चुनाव में सिर्फ 4 सीटें जीती थीं। ऐसे में भाजपा का ये प्रदर्शन दक्षिण भारत में पार्टी के लिए संजीवनी तो बन ही सकता है, साथ में प बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं के लिए जोश भर सकता है। इस चुनाव में भाजपा के शानदार प्रदर्शन के पीछे उसकी रणनीति है, आईए जानते हैं कि भाजपा कैसे हैदराबाद में सेंध लगाने में कामयाब हुई।

क्यों अहम था ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव?
यह पहला मौका है, जब किसी नगर निगम चुनाव की राष्ट्रीय स्तर पर इतनी चर्चा हुई हो। साफ तौर पर कहें तो इसके पीछे प्रमुख वजह है भाजपा। भाजपा ने जिस तरह से ये चुनाव लड़ा, प्रचार में राष्ट्रीय नेताओं को उतारा और जिस तरह 4 से 46 सीटों तक का सफर तय किया। वहीं, ओवैसी की पार्टी AIMIM 44 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही। 

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ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में 150 सीटें हैं। इसकी आबादी तकरीबन 80 लाख है। यहां एक मेयर और एक डिप्टी मेयर होता है। नगर निगम में विधानसभा की 24 और लोकसभा की 5 सीट आती है। यहां करीब 40% मुस्लिम आबादी है। 

भाजपा के जीत की प्रमुख वजहें

1- भाजपा ने प्रचार के लिए उतारी फौज
हैदराबाद नगर निगम चुनाव को भाजपा ने किसी राष्ट्रीय चुनाव के अंदाज में ही लड़ा। यहां तक की पार्टी ने स्टार प्रचारकों की पूरी फौज उतार दी। इससे साफ था कि भाजपा इस चुनाव को हल्के में नहीं ले रही।  यहां तक की चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को छोड़ बाकी तमाम बड़े नेता प्रचार करने पहुंचे। यहां तक की चुनाव प्रचार में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद में प्रचार और रोड शो किए। वहीं, भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या,  स्मृति इरानी, प्रकाश जावड़ेकर, देवेंद्र फडणवीस भी प्रचार करते नजर आए। 

2- स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा चुनाव
भाजपा इस चुनाव में नगर निगम के सामान्य मुद्दों को साइडलाइन कर राष्ट्रवाद के मुद्दे पर मोड़ने में कामयाब रही। यहां भाजपा ने बिजली, पानी, सड़क जैसे स्थानीय मुद्दों के बजाय सर्जिकल स्ट्राइक, 370, मुसलमान, रोहिंग्या, पाकिस्तान, बांग्लादेश का जिक्र किया। वहीं, योगी आदित्यनाथ के बयानों से भी भाजपा को फायदा हुआ। उन्होंने एक रोड शो के दौरान कहा,  हमने फैजाबाद का नाम अयोध्या किया। हमने इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया। ये हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। तो हैदराबाद का प्राचीन नाम भाग्यनगर क्यों नहीं हो सकता। 

वहीं, तेजस्वी सूर्या ने कहा, ओवैसी को वोट भारत के खिलाफ वोट है। इन लोगों ने हैदराबाद में केवल रोहिंग्या मुसलमानों का विकास करने का काम किया है। जबकि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी कहा, टीआरएस और एआईएमआईएम घुसपैठियों के साथ खड़ी है।

3- केसीआर के खिलाफ लोगों का गुस्सा
भाजपा प्रचार के दौरान लगातार दावा करती रही कि तेलंगाना की जनता का टीआरएस सरकार और सीएम केसीआर से मोहभंग हो गया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दावा किया, तेलंगाना के लोग राज्य में कमल खिलाना चाहते हैं। नड्डा ने राज्य सरकार पर युवाओं को रोजगार देने के वादे पर भी खरा नहीं उतरने का आरोप लगाया था।

4- गैर-मुस्लिम आबादी पर भाजपा ने फोकस किया
हैदराबाद में 40% से ज्यादा की आबादी मुस्लिमों की है। ऐसे में भाजपा ने इस चुनाव में इसे ही अपनी ताकत बनाया। भाजपा नेताओं ने गैर-मुस्लिम आबादी पर फोकस किया। भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने इसके लिए  'चेंज हैदराबाद' कैंपेन चलाया। उन्होंने कहा, ओवैसी हैदराबाद में रहते हैं, लेकिन ये शहर हमारा है। ये शहर जय श्रीराम के नारे से गूंज उठा है। टीआरएस और एआईएमआईएम श्रीराम के नारे से डरते हैं। यहां तक की उन्होंने एक रैली में ओवैसी को मोहम्मद अली जिन्ना का अवतार तक बता दिया।

5- टीआरएस की कमजोरी का भाजपा ने उठाया फायदा
इस चुनाव में सत्ताधारी टीआरएस ने सभी 150 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। जबकि ओवैसी की पार्टी सिर्फ  51 सीटों पर चुनाव लड़ी। भाजपा ने 149 उम्मीदवार उतारे थे। भाजपा आरोप लगाती रही कि इस चुनाव में टीआरएस और एआईएमआईएम का अपवित्र गठबंधन है। ऐसे में टीआरएस के खिलाफ ज्यादातर सीटों पर ओवैसी की पार्टी का नहीं उतरने का भाजपा को फायदा मिला। 

6- कांग्रेस के सिमटने का मिला फायदा
चाहें निकाय चुनाव हों या विधानसभा...कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के खिलाफ कांग्रेस विकल्प बनती थी, वहां अब भाजपा पैर पसार रही है। चाहें तेलंगाना हो, तमिलनाडु हो या पश्चिम बंगाल, इन राज्यों में कांग्रेस के सिमटने का भाजपा को फायदा मिला है। कांग्रेस ने 2009 में हैदराबाद नगर निगम चुनावों में 52 सीटें जीती थीं। ये 2016 में सिमट कर 2 रह गईं। वहीं, इस चुनाव में पार्टी को सिर्फ 2 सीटें मिलीं। ऐसे में एक बड़ा तबका भाजपा की ओर शिफ्ट हो गया। 

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