आसान नहीं सुंदर पिचाई बननाः घर में टीवी-फ्रीज नहीं, पिता ने कर्ज लेकर भेजा विदेश और आसमान पर पहुंच गई किस्मत

10 जून यानी आज गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई का जन्मदिन है। यहां तक पहुंचने का सफर उनका संघर्षों से भरा रहा। लेकिन चेहरे पर मुस्कान लेकर वे हर चुनौतियों का सामना करते रहे। कभी उनके घर में टीवी-फ्रीज नहीं था। और आज पूरा गूगल उनके नक्शो-कदम पर चलता है। 

नई दिल्लीः गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई का आज जन्मदिन (Sundar Pichai Birthday) है। हम सभी जानते हैं इनको। अब इतने बड़े पद पर हैं तो यह लाजिमी है कि इनके जीवन में काफी संघर्ष भी रहा होगा। लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि इनकी लाइफ किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं है। फिल्मों में दिखाते हैं कि हीरो गरीबी में जीता है, संघर्ष करता है और अपना मकाम पाता है। ठीक वैसी ही कहानी गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई की भी है। कभी सुंदर पिचाई के घर में टीवी नहीं था। लेकिन आज सर्च इंजन गूगल के इम्प्लॉई इनके इशारे पर अगला कदम रखते हैं। संघर्ष के साथ-साथ इनका दिमाग भी काफी शार्प था। ये अपने जेहन में कई लोगों के नंबर को याद रख सकते थे। मैनेजमेंट भी इनकी कमाल थी। रुपए नहीं होते थे, तो पुरानी चीजें इस्तेमाल कर लिया करते थे। 

मां थीं स्टेनोग्राफर
जब वे बड़े हो रहे थे तब पिचाई की मां एक स्टेनोग्राफर के रूप में काम करती थीं और उनके पिता भारत में जीईसी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे। एक बच्चे के रूप में पिचाई अपने परिवार के साथ दो कमरों के एक छोटे से अपार्टमेंट में रहते थे। घर में टीवी, फ्रीज, टेलिफोन वगैरह नहीं थे। तमिलनाडु के मदुरै में जन्में सुंदर पिचाई ने मेहनत के दम पर आईआईटी खड़गपुर में एडमिशन लिया। इंजीनियरिंग के बाद स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की स्कॉलरशिप मिली। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय उनके घर की हालत इतनी खराब थी कि सुंदर के एयर टिकट के लिए उनके पिता को कर्ज लेना पड़ा था। पिता ने साल भर की कमाई जोड़ कर उन्हें अमेरिका भेजा था। 

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आर्थिक तंगी के कारण पुरानी चीजें इस्तेमाल की
सुंदर पिचाई ने को बेचलर डिग्री में अपने बैच में सिल्वर मेडल मिला था। अमेरिका में सुंदर ने एमएस की पढ़ाई स्टैनडफोर्ड यूनिवर्सिटी से की और वॉर्टन यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। पिचाई को पेन्सिलवानिया यूनिवर्सिटी में साइबेल स्कॉलर के नाम से जाना जाता था। आर्थिक तंगी में सुंदर पिचाई 1995 में स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गेस्ट रहते थे। पैसे बचाने के लिए उन्होंने पुरानी चीजें इस्तेमाल कीं, लेकिन पढ़ाई से समझौता नहीं किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुंदर पिचाई ने 12 साल की उम्र में पहली बार फोन देखा था। उनके पिता इले​क्ट्रिकल इंजीनियर थे, इस वजह से गैजेट की तरफ उनका झुकाव था। पिचाई ने 1995 अपना पहला फोन में खरीदा। पहला मल्टीमीडिया फोन साल 2006 में लिया।

पीएचडी करना चाहते थे लेकिन करनी पड़ी नौकरी
वे पीएचडी करना चाहते थे लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें बतौर प्रोडक्ट मैनेजर अप्लायड मटीरियल्स इंक में नौकरी करनी पड़ी। प्रसिद्ध कंपनी मैक्किंसे में बतौर कंसल्टेंट काम करने तक भी उनकी कोई पहचान नहीं थी। सुंदर पिचाई ने 2004 में गूगल ज्वाइन किया था। उस समय वे प्रोडक्ट और  इनोवेशन ऑफिसर थे। सुंदर सीनियर वाइस प्रेसीडेंट (एंड्रॉइड, क्रोम और ऐप्स डिविजन) रह चुके हैं। पिछले साल अक्टूबर में उन्हें गूगल का सीनियर वीपी (प्रोडक्ट चीफ) बनाया गया था। एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के डेवलपमेंट और 2008 में लांच हुए गूगल क्रोम में उनकी बड़ी  भूमिका रही है।

एक आइडिया ने बदल दी दुनिया
जब वे गूगल में आए तब सुंदर का पहला प्रोजेक्ट प्रोडक्ट मैनेजमेंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्च टूलबार को बेहतर बनाकर दूसरे ब्रॉउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था। इसी दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि गूगल को अपना ब्राउजर लांच करना चाहिए। इसी एक आइडिया से वे गूगल के संस्थापक लैरी पेज की नजरों में आ गए। इसी आइडिया से उन्हें असली पहचान मिलनी शुरू हुई। 2008 से लेकर 2013 के दौरान सुंदर पिचाई के नेतृत्व में क्रोम ऑपरेटिंग सिस्टम की सफल लांचिंग हुई और उसके बाद एंड्रॉइड मार्केट प्लेस से उनका नाम दुनियाभर में हो गया।

सुंदर की वजह से सैमसंग का साझेदार बना गूगल
सुंदर ने ही गूगल ड्राइव, जीमेल ऐप और गूगल वीडियो कोडेक बनाए हैं। सुंदर द्वारा बनाए गए क्रोम ओएस और एंड्रॉइड एप ने उन्हें गूगल के शीर्ष पर पहुंचा दिया। पिछले साल एंड्रॉइड डिविजन उनके पास आया और उन्होंने गूगल के अन्य व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी अपना योगदान दिया। पिचाई की वजह से ही गूगल ने सैमसंग को साझेदार बनाया। 

इंटरनेट यूजर्स के लिए किया रिसर्च
प्रोडक्ट मैनेजर के रूप में जब सुंदर ने गूगल ज्वाइन किया था, तो इंटरनेट यूजर्स के लिए रिसर्च किया, ताकि यूजर्स जो इन्स्टॉल करना चाहते हैं, वे जल्दी इन्स्टॉल हो जाए। हालांकि यह काम ज्यादा मजेदार नहीं था, फिर भी उन्होंने खुद को साबित करने के लिए अन्य कंपनियों से बेहतर संबंध बनाएं, ताकि टूलबार को बेहतर बनाया जाए। उन्हें प्रोडक्ट मैनेजमेंट का डायरेक्टर बना दिया गया। 2011 में जब लैरी पेज गूगल के सीईओ बने, तो उन्होंने तुरंत पिचाई को प्रमोट करते हुए सीनियर वाइस प्रेसीडेंट बना दिया गया था। सुंदर पिचाई ने गूगल सीईओ के पोस्ट पर 2 अक्टूबर 2015 को ज्वाइन किया। 3 दिसंबर 2019 को वे अल्फाबेट के सीईओ बन गए। 

मानी पत्नी की सलाह
गूगल का सीईओ बनने से पहले माइक्रोसॉफ्ट के सीआईओ बनने की रेस में भी पिचाई का नाम शामिल था, लेकिन बाद में उनकी जगह सत्य नडेला को चुना गया। बीच में ट्विटर ने भी उनको अपने पाले में करने का प्रयास किया था लेकिन जानकारों के मुताबिक, गूगल ने 10 से 50 लाख मिलियन डालर का बोनस देकर उनको कंपनी में बने रहने पर सहमत कर लिया था। उस समय सुंदर पिचाई ने गूगल छोड़ने का पूरा मन बना लिया था। लेकिन उनकी पत्नी अंजलि ने उन्हें गूगल न छोड़ने की सलाह दी। सुंदर ने अंजलि की बात मानकर गूगल में ही रहने का मन बना लिया।

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