Gama Pehalwan Birthday: इस भारतीय पहलवान से ब्रूस ली ने सीखा बॉडी बनाना, अखाड़े में नहीं हुई कभी हार

Published : May 22, 2022, 10:52 AM ISTUpdated : May 22, 2022, 11:02 AM IST
Gama Pehalwan Birthday: इस भारतीय पहलवान से ब्रूस ली ने सीखा बॉडी बनाना, अखाड़े में नहीं हुई कभी हार

सार

गामा पहलवान के 144वें जन्मदिन पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है। गामा पहलवान को इसमें एक गदा के साथ दिखाया गया है। गामा पहलवान के बारे में कई रिपोर्ट्स में आया है कि वे कभी एक भी कुश्ती नहीं हारे थे। उनकी डाइट ऐसी थी कि जिसे सुनकर लोगों को पसीना आ जाए। लेकिन अपने आखिरी समय में उन्हें अपना मेडल बेचकर गुजारा करना पड़ा था। 

नई दिल्लीः गामा पहलवान (Gama Pehalwan) का आज 144वां जन्मदिन है। भारत के एक से बढ़कर एक पहलवानों में इनका भी नाम शामिल है। इन्हे 'द ग्रेट गामा' और 'रुस्तम-ए-हिंद' के नाम से भी जाना जाता है। गूगल ने इनके जन्मदिन पर डूडल बनाकर इस दिन को खास बना दिया है। गामा पहलवान ने अपने पहलवानी करियर में एक भी कुश्ती नहीं हारी। अपने जीवन का 50 साल इन्होंने कुश्ती को दिया। इस दौरान इन्होंने कई खिताब भी जीता। इतना ही नहीं, एक बार इन्होंने 1200 किलो का पत्थर तक उठा डाला था। उनका पूरा नाम गुलाम मोहम्मद बख्श बट था। उनके पिता का नाम मोहम्मद अजीज बख्श था। 

गामा पहलवान को था कुश्ती का शौक
बताया जाता है कि 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में हुआ था। लेकिन कुछ रिपोर्ट बताती है कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के दतिया में हुआ था। दोनों जगहों को लेकर अलग-अलग रिपोर्ट में अलग-अलग बातें हैं। गामा पहलवान ने बचपन से ही सोच लिया था कि उन्हें पहलवानी करनी है। उन्हें कुश्ती का शौक था। उनकी लंबाई 5 फीट 7 इंच थी। उनका वजन 113 किलो था। कुश्ती के शौक के कारण उन्होंने अपने शरीर को उस लायक बनाया। घंटों कसरत करते। कम उम्र से ही उन्होंने कुश्ती करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कम उम्र से ही बड़े-बड़े दिग्गज पहलवानों को धूल चटाना शुरू कर दिया था। 

इंटरनेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में गामा पहलवान
भारत में पहलवानों को मात देने के बाद उन्होंने विदेश का रुख किया। 1910 में वे अपने भाई इमाम बख्श के साथ इंटरनेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में भाग लेने इंग्लैंड गए। उनकी हाइट कम होने के कारण उन्हें इस चैंपियनशिप में हिस्सा लेने नहीं दिया गया। इस बात से गामा पहलवान को गुस्सा आ गया था और उन्होंने सभी पहलवानों को लड़ने की खुली चुनौती दे डाली थी। उन्होंने कहा था कि 30 मिनट के अंदर मैं किसी भी पहलवान को हरा सकता हूं। लेकिन उनसे लड़ने कोई नहीं आया। उनकी चुनौती को किसी ने स्वीकार नहीं किया। 

गामा पहलवान ने दी थी ब्रूस ली को चुनौती
1910 में ही गामा ने वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियनशिप जीता था। 1927 में वर्ल्ड कुश्ती चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया था। वर्ल्ड कुश्ती चैंपियनशिप जीतने के बाद उन्हें टाइगर की उपाधि से सम्मानित किया गया। लगातार पहलवानों को हराने के बाद उन्हें मार्शल आर्ट के मास्टर ब्रूस ली को भी चैलेंज किया था। जब ब्रूस ली ने यह जाना कि गामा पहलवान ने चुनौती दी है, तो वे गामा पहलवान से मिलने पहुंचे। लेकिन यह मुलाकात दोस्ती में बदल गया। ब्रूस ली ने गामा को एक पुश अप करने का तरीका सिखाया था, जिसे 'द कैट स्ट्रैच' कहते हैं। और ब्रूस ली ने उनसे बॉडी बनाने का तरीका सीखा। कहते हैं कि ब्रूस ली की बॉडी गामा पहलवान की ही देन थी। 

10 लीटर दूध पीते थे गामा पहलवान
20वीं शताब्दी की शुरुआत में गामा पहलवान को रुस्तम-ए-हिंद कहा जाने लगा। वे खाने-पीने के काफी शौकीन थे। गांव के रहन-सहन के कारण खाना भी देसी ही पसंद किया करते थे। उनसे जुड़ी कहानियां और रिपोर्ट बताती है कि वे हर रोज 10 लीटर दूध पीते थे। हर रोज 6 देसी मुर्गा खाते थे। हर दिन 200 ग्राम बादाम डालकर अपने लिए एक ड्रिंक बनाते थे। कहा जाता है कि आज तक पहलवान इसी तरह के ड्रिंक को बनाते आ रहे हैं। कुश्ती करनेवाले लोग उन्हें काफी फॉलो किया करते हैं। वे अपने 40 साथियों के साथ हर रोज कुश्ती किया करते थे। एक रिपोर्ट के अनुसार वे रोजाना 5 हजार बैठक और 3 हजार दंड लगाते थे।

गामा पहलवान ने बेच डाला था अपना मेडल
बड़ौदा संग्रहालय में एक 1200 किलो का पत्थर रखा है। यह 2.5 क्यूबिकल पत्थर है। 23 दिसंबर 1902 में गामा ने इस पत्थर को उठा डाला था। कहा जाता है कि गामा पहलवान का अंतिम वक्त काफी तकलीफों में गुजरा था। विभाजन से पहले गामा पहलवान अमृतसर में रहते थे। लेकिन बाद में वे लाहौर रहने चले गए थे। उन्होंने जेस पीटरसन से अपने जीवन की आखिरी कुश्ती लड़ी थी। 1927 में यह मुकाबला हुआ था। जैसे ही उन्होंने कुश्ती छोड़ी, उन्हें हृदय रोग की शिकायत हुई और उनकी हालत खराब होती चली गई। उनके पास इतने रुपए तक नहीं थे कि वे अपना ढंग से इलाज करा सकें। इस कारण उन्होंने अपना मेडल बेचकर गुजारा किया था। लंबी बीमारी के बाद 1960 में 82 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। 

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