फल बेचकर कमाता था रोज 150 रुपए, जैसे तैसे चलता था खर्च, फिर कुछ ऐसा किया कि मिला पद्मश्री अवॉर्ड

Published : Jan 28, 2020, 12:19 PM IST
फल बेचकर कमाता था रोज 150 रुपए, जैसे तैसे चलता था खर्च, फिर कुछ ऐसा किया कि मिला पद्मश्री अवॉर्ड

सार

71वें गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले सरकार ने इस वर्ष पद्मश्री की 21 लोगों की सूची की घोषणा की। इन लोगों में दक्षिणा कन्नड़ के हरेकला हजाबा भी शामिल थे। संतरा बेचने वाले हजाबा जो मंगलौर के पास नयापडापू गांव के हैं। हजाब एक फल विक्रेता है। इन्हें शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए सम्मान मिला है।

नई दिल्ली. अपने गांव के बच्चों को शिक्षा देने के प्रयासों के चलते एक फल बेचने वाले को भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया है। 71वें गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले सरकार ने इस वर्ष पद्मश्री की 21 लोगों की सूची की घोषणा की। इन लोगों में दक्षिणा कन्नड़ के हरेकला हजाबा भी शामिल थे। संतरा बेचने वाले हजाबा जो मंगलौर के पास नयापडापू गांव के हैं। हजाबा ने कभी खुदकोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है। जबकि उन्होंने अपने गांव के बच्चों के लिए एक स्कूल शुरू किया है। 

अधिकारी ने साझा की कहानी

प्रवीण कस्वां नाम के एक IFS अधिकारी ने ट्विटर पर यह खबर साझा करते हुए लिखा कि- "दक्षिण कन्नड़ के फल विक्रेता हजाबा एक दशक से अपने गांव न्यूपडापू में एक मस्जिद में गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं।" प्रवीण ने आगे लिखा कि, हजाबा को जब अधिकारियों ने सूचना दी कि उन्हें पद्मश्री मिला है तो वह उस समय एक राशन की दुकान पर लाइन में खड़े थे। 

विदेशी के सामने हुआ शर्मिंदा, तो...

खबरों के मुताबिक, हजाबा ने खुलासा किया कि यह एक बार दो विदेशी पर्यटकों के साथ उनका सामना हुआ। जिन्होंने पहली बार उन्हें स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया। विदेशी दंपति ने हजाबा से अंग्रेजी में एक संतरे की कीमत पूछी थी। विदेशी भाषा बोलने में असमर्थ हजाबा उन्हें इसकी कीमत नहीं बता पाए। जिसके बाद दंपति कोई बात किए बिना ही वहां से चले गए। इस घटना से आहत, हजाबा ने अंग्रेजी सीखने और अपने स्कूल के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मुहैया कराने का फैसला किया। जिससे किसी और को ऐसी परिस्थिति का सामना न करना पड़े। 

बचत के पैसों से खोला स्कूल

बीबीसी के मुताबिक, हज़बा के गांव में साल 2000 तक का स्कूल नहीं था, उन्होंने अपनी मामूली कमाई से पैसे बचाकर वहां स्कूल खोला। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, उन्होंने ऋण भी लिया और अपनी बचत का इस्तेमाल स्कूल के लिए जमीन खरीदने में किया।

महज 150 रुपये प्रति दिन कमाने वाले हजाबा को स्थानीय लोगों और अधिकारियों से बहुत कम सहयोग मिला, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प से 28 छात्रों के साथ एक प्राथमिक विद्यालय खोला। स्कूल खुलने के बाद हर साल छात्रों की संख्या बढ़ती गई। 

अब मिला सर्वोच्च नागरिक सम्मान

हजबा के इस कार्य को देखते हुए केंद्र सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। इस सम्मान को पाने के बाद हजबा के खुशी की ठिकाना नहीं है। साथ ही मीडिया के दौरान बातचीत में उन्होंने कहा, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा सम्मान मिलेगा। 

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