Manipur Violence: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा- जातीय हिंसा रोकने के लिए क्या उठाए कदम, पीड़ितों को कैसे दी मदद

मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि जातीय हिंसा रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए?

नई दिल्ली। मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) को लेकर दायर याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट मांगा है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि राज्य में जातीय हिंसा रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए?

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि हिंसा प्रभावितों की मदद के लिए किस तरह के पहल किए गए हैं? हिंसा के चलते बेघर हुए लोगों को किस प्रकार राहत दी गई? हिंसा प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास शिविरों में किस तरह की व्यवस्था की गई? सुरक्षा बलों की तैनाती किस तरह की गई और कानून-व्यवस्था की क्या स्थिति है?

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बोले-धीरे-धीरे सुधर रही स्थिति

सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कोर्ट से कहा कि मणिपुर में स्थिति धीरे-धीरे ही सही, लेकिन सुधर रही है। पुलिस के अलावा मणिपुर राइफल्स, सीआरपीएफ की कंपनियों, आर्मी के 114 कॉल्मस और मणिपुर कमांडो की तैनाती की गई है। सॉलिसिटर जनरल ने मणिपुर ट्राइबल फोरम के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस से अनुरोध किया कि इस मामले को सांप्रदायिक रंग नहीं दें। सुप्रीम कोर्ट में मामले में अगली सुनवाई 10 जुलाई को होगी। कॉलिन ने कोर्ट में कहा था कि आतंकवादी एक न्यूज प्रोग्राम में आए और कहा कि वे "कुकियों को नष्ट कर देंगे" लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि कुकियों के खिलाफ हिंसा "राज्य द्वारा प्रायोजित" थी।

मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई है हिंसा

गौरतलब है कि मणिपुर में जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की मौत हुई है। सैकड़ों लोग घायल हुए हैं और हजारों घरों को जला दिया गया है। दो महीने से राज्य में हिंसा हो रही है। हिंसा की शुरुआत मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद निकाली गई आदिवासी एकता रैली के बाद हुई थी। मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा हो रही है। मणिपुर हाईकोर्ट ने बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का आदेश दिया था। इसके बाद आदिवासी एकता रैली निकाली गई थी। हाईकोर्ट के इस फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई 17 जुलाई को होगी।

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