
हैदराबाद। चिलकुर बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी ने कर्नाटक हाईकोर्ट (Hijab row hearing in karnataka high court) में चल रही हिजाब मामले की सुनवाई में सबरीमाला फैसले (Sabrimala virdict) के जिक्र पर आपत्ति जताई है। मुख्य पुजारी रंगराजन ने कहा कि हाईकोर्ट में वकील बार--बार सबरीमाला मंदिर फैसले का जिक्र कर रहे थे, जबकि इसका जिक्र नहीं होना चाहिए। रंगराजन ने कहा कि सबरीमाला का फैसला बहुत ही खेदजनक फैसला था।
पुजारी बोले- यह श्रद्धालुओं के मौलिक अधिकारों के खिलाफ
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उन्होंने कहा कि सबरीमाला मंदिर मामले में फैसले की समीक्षा की जा रही है। राष्ट्रपति से इसी मामले में चिलुकुर बालाजी मूलवीरथ देवताओं के मौलिक अधिकारों के बारे में भी पूछा गया था। उन्होंने बार-बार अपील की कि इस फैसले को अदालत में बार – बार कोट नहीं करें, बल्कि न्यायलय में नैतकता की बात करें। हिजाब मामले को लेकर बार-बार वकील सबरीमाला फैसले को कोट कर रहे हैं। इसमें धर्म का मुद्दा बार-बार खींचा गया। मैं बताना चाहूंगा कि सबरीमाला निर्णय देश के लिए बहुत खेदजनक निर्णय था। इसने हिंदू श्रद्धालुओं के अधिकारों को नकारा है। यह फैसला न्याय की जमीन नहीं बन सकता है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ हमने आर्टिकल 363 के अनुसार श्रद्धालुओं के मूलभूत अधिकारों की मांग की। रंगराजन ने कहा कि मैं वकीलों से बार-बार निवेदन करता हूं कि सबरीमाला जजमेंट को कोर्ट में बार -- बार कोट नहीं करें। एक ऐसा निर्णय जिसने श्रद्धालुओं के मूल अधिकारों को नकारा वह किसी फैसले का ग्राउंड नहीं हो सकता।
क्या है मामला :
हिजाब बैन को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। आज भी इस मामले की सुनवाई होनी है। सोमवार को हुई सुनवाई में कर्नाटक के महाधिवक्ता ने सरकार की तरफ से अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने सबरीमाला फैसले का कई बार उल्लेख किया और बताया कि हिजाब को क्यों आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं माना जा सकता है। उन्होंने सबरीमाला फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हवाले से बताया कि अनुच्छेद 25 के हिसाब से हिजाब 'आवश्यक' नहीं है। यह केवल धार्मिक अभ्यास है। अनुच्छेद 25 धार्मिक प्रथाओं के संरक्षण की बात करता है न कि धार्मिक अभ्यास के बारे में। धर्म वास्तव में क्या है यह परिभाषित करना असंभव है। सबरीमाला मामले में कोर्ट कहा कि आपको यह बताना होगा कि जिस प्रथा को आप संरक्षित करना चाहते हैं वह धर्म के लिए आवश्यक है।
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