ब्रांड इंडिया को एक पहचान देने में होली की है बड़ी भूमिका

होली भारत का सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इसके आकर्षण से दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि भारत की वैश्विक राजनीति को आकार देने में इसकी क्या भूमिका है?

बेंगलुरु। क्या आप अरमानी (Armani) और वर्साचे (Versace) के बिना इटली, अपनी कारों के बिना जर्मनी और रामेन (Ramen) के बिना जापान की कल्पना कर सकते हैं?  ठीक ऐसा ही भारत और होली के साथ है। यह हमारी आदत बन गई है कि हम किसी खास बात को किसी देश की पहचान से जोड़ कर देखते हैं। जरूरी नहीं कि इस संबंध का हमेशा कोई मतलब ही हो, लेकिन यह हमेशा मौजूद होता है। दूसरे देशों में जाने पर मेरा यह अनुभव रहा है कि जब भी मैंने किसी से कहा कि मैं भारत से आया हूं, उसने तुरंत मुझसे रंगों के त्योहार होली के बारे में पूछा, जब लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। यह मुझे काफी रोचक लगा और इससे खुशी भी हुई। इसे छोड़ भी दिया जाए कि होली से विदेशों में भारत की छवि बहुत ही प्यारी बनती है, इस त्योहार की कई और भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं। 

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में दुनिया भर के देश लगातार रिसोर्सेस, इन्वेस्टमेंट, ट्रेड, पूंजी और टूरिज्म के क्षेत्र में कड़ी प्रतियोगिता में शामिल हैं। इसलिए सभी देश एक भावनात्मक और सांस्कृतिक छवि बनाने की कोशिश करते हैं, जिससे लोग वहां अपनी छुट्टियां बिताने, पूंजी का निवेश करने और शिक्षा हासिल करने के बारे में सोच सकें। ये छवियां हमारे मन में इस तरह बैठ जाती हैं कि हम कुछ देशों की तुलना में दूसरे देशों को इसके लिए ज्यादा तवज्जो देते हैं। 

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हम भारत के बारे में ऐसी धारणाएं बना सकते हैं जो हमारे मूल्यों और संस्कृति को देश और विदेशों में आसानी से पहुंचाने में समर्थ हो सकती हैं। जब हम एक सकारात्मक छवि का निर्माण करते हैं, हमारे देश को दुनिया में एक खास पहचान मिलती है और लोगों के मन में देश को लेकर जो गलत धारणाएं बनी हुई हैं, वे भी दूर होती हैं। लोगों का किसी देश की राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और भावनात्मक पहचान को महसूस करना उस देश के दुनिया में प्रभाव को एक हद तक निर्धारित करता है, जिसे सॉफ्ट पावर कहा गया है।

अब हम यह देखें कि किस तरह होली ने भारत के सॉफ्ट पावर को एक पहचान देने का काम किया है। 'अतुल्य भारत' भारतीय पर्यटन की एक ऐसी पहचान है, जो इसे दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले आगे रखती है। 'अतुल्य भारत' अभियान की शुरुआत 2002 में वाजपेयी सरकार के समय हुई थी, जिसने भारत की छवि को बदलने में जैसी भूमिका निभाई, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। 'अतुल्य भारत' के शुरुआती अभियान में होली को प्रमुखता से शामिल किया गया था, जिससे विदेशों में भारत की छवि में तत्काल बदलाव आया। यह एक गरीब और बदहाल देश की जगह एक ऐसे रहस्यमय देश के रूप में सामने आया जो विविध रंगों से भरा हुआ है। इससे भारत को एक ऐसे रोमांटिसिज्म के साथ देखा जाने लगा, जिसका पहले पूरी तरह अभाव था। इससे सिर्फ पर्यटन को ही बढ़ावा नहीं मिला, बल्कि दुनिया में भारत की छवि काफी सकारात्मक बन गई। 

निस्संदेह, 'अतुल्य भारत' अभियान कई वर्षों तक कई देशों और महादेशों में फैलता रहा और हर तरह के मीडिया में इसे काफी जगह मिली। यह कई लाख डॉलर का बेशकीमती अभियान था, जिससे भारत को काफी फायदा हुआ। भारत के पर्यटन मंत्रालय ने कई एजेंसियों के साथ मिल कर इस अभियान को पूरी दुनिया में फैला कर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई। इस अभियान के लिए बीबीसी वर्ल्ड ने भारत के पर्यटन विभाग के साथ मिल कर एक मार्केटिंग कैम्पेन चलाना चाहा और कुछ विज्ञापनों की डिजाइन भी तैयार की। बीबीसी ने इसके लिए काफी रिसर्च किया। बीबीसी का कहना था कि भारत के लोग चमकीले रंगों को काफी पसंद करते हैं और वे अपने विज्ञापनों में इसे शामिल करेंगे। दरअसल, इसे होली का प्रभाव माना जा सकता है।  

'अतुल्य भारत' अभियान मलेशिया के 'मलेशिया ट्रूली एशिया' कैम्पेन पर भारी पड़ा। भारत के इस अभियान ने पर्यटन और निवेश को बढ़ावा तो दिया ही, साथ ही यहां की सांस्कृतिक विविधता और उसकी बहुरंगी छवि को भी दुनिया के सामने लाने का काम किया। इस तरह, होली भारत के लिए एक ऐसा राष्ट्रीय ब्रांड बन गया है, जिसकी उपेक्षा कर पाना दूसरे देशों के लिए संभव नहीं है। यह राष्ट्रीय ब्रांड तब बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जब देशों के बीच समान स्रोतों पर अधिकार के लिए प्रतियोगिता बढ़ेगी। इसलिए होली को हम दूसरे त्योहारों की तरह मान कर नहीं चल सकते। ब्रांड इंडिया को एक आकार देने में इसके योगदान को हमें भूलना नहीं होगा।  

कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीइओ हैं और 'डीप डाइव विद एके' नाम के डेली शो के होस्ट भी हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का बेहतरीन कलेक्शन है। उन्होंने दुनिया के करीब 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा की है। वे एक टेक आंत्रप्रेन्योर हैं और पॉलिसी, टेक्नोलॉजी, इकोनॉमी और प्राचीन भारतीय दर्शन में गहरी रुचि रखते हैं। उन्होंने ज्यूरिख से इंजीनियरिंग में एमएस की डिग्री हासिल की है और लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए हैं।

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