'पति भले मजदूरी करे, लेकिन बीवी-बच्चों को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता'

बीवी-बच्चों को गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर पति शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो उसे अलग रह रही पत्‍नी और बच्‍चों के भरण-पोषण के लिए मजदूरी करके भी गुजारा भत्ता देना होगा।

नई दिल्ली। बीवी-बच्चों को गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर पति शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो उसे अलग रह रही पत्‍नी और बच्‍चों के भरण-पोषण के लिए मजदूरी करके भी गुजारा भत्ता देना होगा। पति का ये दायित्व बनता है कि वो खुद से अलग हो चुके बीवी-बच्चों के लिए मजदूरी करके भी पैसा कमाए। वो किसी भी कीमत पर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं फेर सकता। 

सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई बिजनेस बंद होने की दलील : 
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पति की उस दलील को सिरे से नकार दिया, जिसमें उसने कहा था कि व्यापार बंद होने के चलते उसके पास अब इनकम का कोई जरिया नहीं है। ऐसे में वो अब खुद से अलग रह रही पत्‍नी और नाबालिग बच्‍चों को गुजारा भत्ता नहीं दे सकता है। जस्टिस दिनेश माहेश्‍वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की संयुक्त पीठ ने कहा- पति अगर शारीरिक रूप से सक्षम है, तो उसे उचित तरीके से पैसे कमाकर पत्‍नी और बच्‍चों को गुजारा भत्ता देना ही पड़ेगा। वह अपने दायित्वों से मुंह नहीं फेर सकता।

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शीर्ष कोर्ट ने इस वजह से फैमिली कोर्ट को भी लगाई फटकार : 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में वादी की ओर से दिए गए सबूतों और रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्यों से ये बात साबित होती है कि प्रतिवादी के पास इनकम के पर्याप्‍त स्रोत मौजूद थे। बावजूद इसके उसने वादी को गुजारा भत्‍ता देने में आनाकानी की। इतना ही नहीं, शीर्ष कोर्ट ने पत्‍नी को गुजारा भत्‍ता देने की मांग को खारिज करने के लिए फैमिली कोर्ट को भी फटकार लगाई। 

पति भले मजदूरी करे, लेकिन गुजारा भत्ता दे : 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 ससुराल छोड़ कर पति से अलग रह रही महिलाओं को फाइनेंशियल हेल्प देने की बात कहता है। ऐसा इसलिए ताकि उस महिला को खुद और उसके बच्चों के भरण-पोषण में किसी तरह की दिक्कत न हो। ऐसे में पति भले ही मजदूरी करके पैसा कमाए लेकिन उसे अलग रह रही पत्‍नी और नाबालिग बच्‍चों गुजारा भत्ता देना ही होगा। 

पत्नी को 10 और बच्चों को 6 हजार रुपए महीना देने के आदेश : 
कोर्ट ने कहा कि उसे केवल कानूनी आधार पर शारीरिक रूप से अक्षम होने पर ही इससे छूट मिल सकती है। बता दें कि पीड़िता ने साल 2010 में ही अपने पति का घर छोड़ दिया था और बच्चों के साथ अलग रहने लगी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया है कि वो पत्‍नी को 10 हजार और नाबालिग बच्‍चों को 6 हजार रुपए महीना गुजारा भत्ता दे।

क्या कहती है सीआरपीसी की धारा 125?
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर यानी CRPC की धारा 125 के तहत पत्नी, बच्चे या माता-पिता जैसे आश्रित उस हाल में मेंटेनेंस (गुजारा-भत्ते) का दावा कर सकते हैं, जब उनके पास आजीविका के साधन उपलब्ध नहीं हैं। गुजारा भत्ता दो तरह का होता है- अंतरिम और स्थायी। अगर केस कोर्ट में पेंडिंग है तो उस दौरान के लिए अंतरिम गुजारे भत्ते का आदेश दिया जा सकता है। कोई शख्स स्थायी मेंटेनेंस के लिए भी दावा कर सकता है। तलाक जैसे केस में स्थायी गुजाराभत्ता तब तक प्रभावी रहता है, जब तक कि संबंधित पक्ष (पति या पत्नी) दोबारा शादी न कर ले। 

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