1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने कच्चाथीवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। दो साल बाद 1976 में श्रीलंका ने वाडगे बैंक पर भारत के दावे को स्वीकार कर लिया था।
नई दिल्ली। देश में लोकसभा चुनाव 2024 चल रहे हैं। इस बीच कच्चाथीवू द्वीप को लेकर विवाद चर्चा में है। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने कच्चाथीवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था।
1974 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। भारत और श्रीलंका ने सीमा विवाद समाप्त करने के लिए समझौते पर साइन किए थे। इस समझौते के अनुसार कच्चाथीवु द्वीप श्रीलंका को दिया गया। आइए गहराई से समझें कि भारत ने कच्चाथीवु द्वीप पर अपना दावा क्यों छोड़ दिया।
1974 में भारत और श्रीलंका ने पाक जलडमरूमध्य से एडम ब्रिज तक पानी में सीमा रेखा निर्धारित करने और संबंधित मामलों को निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से निपटाने के लिए एक समझौते पर साइन किए। दो साल बाद 1976 में दोनों देशों के बीच मन्नार की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा का विस्तार करने के लिए फिर से एक समझौता किया।
1976 में श्रीलंका ने माना था वाडगे बैंक को भारत का हिस्सा
भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा संधि के अनुसार नई दिल्ली ने कच्चाथीवु द्वीप पर अपना दावा छोड़ दिया। इसके बदले 1976 में कोलंबो ने कन्याकुमारी के पास वाडगे बैंक को भारत का हिस्सा मान लिया। वाडगे बैंक केप कोमोरिन के दक्षिण में स्थित है। यह भारत के क्षेत्रीय जल के बाहर स्थित है। वाडगे बैंक के पास समुद्र की गहराई 50-200 मीटर है। यहां का समुद्र तल रेत और सीपियों से बना है। कुछ स्थानों पर यह चट्टानी है। यह मत्स्य संसाधन के मामले में बेहद समृद्ध है। यह सजावटी मछलियों और अन्य समुद्री जानवरों की 60 से अधिक प्रजातियों का घर है।
वाडगे बैंक के संबंध में भारत के विदेश सचिव केवल सिंह ने अपने श्रीलंकाई समकक्ष WT जयसिंघे को एक पत्र में लिखा: "... वाडगे बैंक में मछली पकड़ने के संबंध में दोनों सरकारों के बीच सहमति बन गई है। वाडगे बैंक भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थित है। भारत के पास इस क्षेत्र और इसके संसाधनों पर पूरा अधिकार होगा।"
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उन्होंने पत्र में लिखा, "श्रीलंका के मछली पकड़ने वाले जहाज और इन जहाजों पर सवार लोग वाडगे बैंक में मछली नहीं पकड़ेंगे। हालांकि, श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर और सद्भावना के संकेत के रूप में भारत सरकार इस बात पर सहमत है कि श्रीलंका के लोग मछली पकड़ सकेंगे। इसके लिए भारत सरकार से लाइसेंस लेना होगा। श्रीलंका के मछली पकड़ने वाले जहाजों की संख्या छह से अधिक नहीं होगी। किसी भी एक वर्ष में वाडगे बैंक में वे 2,000 टन से अधिक मछली नहीं पकड़ेंगे। श्रीलंका के लोग वाडगे बैंक में इसके विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की तारीख से तीन साल की अवधि तक ही मछली पकड़ सकेते हैं।"