जातीय जनगणना: RSS के नरम रुख से हलचल, क्या बदलेंगे मोदी सरकार के तेवर?

लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना प्रमुख मुद्दा रहा है, विपक्षी दल इसका पुरज़ोर समर्थन कर रहे हैं। हालांकि पहले विरोध कर रही बीजेपी अब नरम रुख अपनाती दिख रही है। आरएसएस ने संकेत दिए हैं कि वे जातीय जनगणना का समर्थन कर सकते हैं लेकिन…

Dheerendra Gopal | Published : Sep 2, 2024 10:58 AM IST / Updated: Sep 02 2024, 04:29 PM IST

Caste Census issue: लोकसभा चुनाव में इंडिया अलायंस विशेषकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का प्रमुख मुद्दा जातीय जनगणना रहा। लेकिन विपक्षी दलों के इस मांग पर बीजेपी अब थोड़ी नरम पड़ती दिख रही है। केरल के पलक्कड़ में आरएसएस के तीन दिवसीय सम्मेलन के पहले जातीय जनगणना के मुद्दे को संवेदनशील तरीके से हैंडल करने का संदेश दिया है। सम्मेलन के पहले संघ ने कहा कि जातीय आधार पर पुरुष, महिलाओं आदि का डेटा सरकार की आवश्यकता है और इसे लोककल्याण के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

बीजेपी की वैचारिक संरक्षणदाता आरएसएस का तीन दिवसीय समन्वय मीटिंग केरल के पलक्कड़ में हो रहा है। इस मीटिंग के शुरू होने के पहले आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा कि जातीय जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है। इसे बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यह चुनाव प्रचार के लिए नहीं है, इसे राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ अपने विचार पहले भी व्यक्त कर चुका है। जातीय जनगणना सरकार के लिए जरूरी है। ऐसे मामलों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है क्योंकि सरकार को संख्या (किसी दिए गए समुदाय से संबंधित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की संख्या) की आवश्यकता होती है। यह केवल कल्याण के लिए होना चाहिए। इसे राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। हमने यही लाइन खींच रखी है।

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क्या कहा आरएसएस प्रवक्ता ने जातीय जनगणना पर?

आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा: हमारे हिंदू समाज में, हमारी जाति और जाति संबंधों का एक संवेदनशील मुद्दा है। यह हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है इसलिए इसे बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए, न कि केवल चुनाव या राजनीति के लिए। जातीय जनगणना, सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए, विशेष रूप से किसी विशेष समुदाय या जाति को संबोधित करना जो पिछड़ रहे हैं और जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, के लिए करना चाहिए। अगर कभी सरकार को संख्या की आवश्यकता होती है तो वह उन्हें ले सकती है। सरकार ने पहले भी संख्या ली है, वह इसे ले सकती है, कोई समस्या नहीं है। लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण को संबोधित करने के लिए होना चाहिए। इसे चुनाव प्रचार के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। और इसलिए हमने सभी के लिए एक चेतावनी रेखा रखी है।

लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का मुद्दा छाया रहा

दरअसल, लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का मुद्दा सबसे प्रमुख रूप से छाया रहा। कांग्रेस के राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी नेताओं के चुनावी घोषणापत्रों और भाषणों में राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना कराने का वादा किया गया है। पिछले सप्ताह राहुल गांधी ने इस तरह की कवायद के महत्व पर जोर दिया और कहा कि यह प्रभावी नीति-निर्माण और एक समतामूलक समाज के लिए एक आवश्यक उपकरण है। राहुल गांधी ने कहा कि हम जाति जनगणना के बिना भारत की वास्तविकता के लिए नीतियां नहीं बना सकते। हमें डेटा चाहिए कि कितने दलित, ओबीसी, आदिवासी, महिलाएं, अल्पसंख्यक, सामान्य जाति के लोग हैं?

संसद में भी राहुल गांधी ने जोरदार बहस की थी...

गांधी ने इस विषय पर संसद में भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के साथ भी बहस की थी। जुलाई में सत्र के दौरान राहुल गांधी ने भाजपा नेता के एक कटाक्ष का तीखा जवाब दिया था। ठाकुर ने कहा था कि जिसकी जाति अज्ञात है, वह जनगणना की बात कर रहा है? राहुल गांधी ने इस टिप्पणी को दरकिनार करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री को कहा जितना चाहें उतना अपमान करें लेकिन यह मत भूलिए कि हम (विपक्ष) इस विधेयक को पारित करवाएंगे।

बिहार जाति जनगणना रिपोर्ट आने के बाद मामला पकड़ा तूल

दरअसल, नवंबर 2024 में बिहार की तत्कालीन सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) व राष्ट्रीय जनता दल-कांग्रेस आदि दलों वाले गठबंधन ने राज्यव्यापी सर्वेक्षण के परिणाम प्रकाशित कर दिया था। इसके बाद जातीय जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर कराए जाने का मामला और अधिक तूल पकड़ा था। आम चुनाव से कुछ समय पहले जारी किए गए परिणामों से पता चला कि बिहार की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी अत्यंत पिछड़े वर्गों से है।

बीजेपी ने कांग्रेस पर बोला हमला

हालांकि, बीते अप्रैल में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की स्थिति को साफ करते हुए कहा था कि विपक्ष देश को बांटना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति करने के तरीके को बदल दिया है इसलिए विपक्ष अव्यवस्थित है। पहले राजनीति जाति, धर्म, क्षेत्र पर आधारित था और कांग्रेस भाई को भाई के खिलाफ खड़ा करती थी।

लेकिन एनडीए के कई दलों का जातीय जनगणना पर खुला समर्थन

बीजेपी के ढुलमुल रवैया के इतर एनडीए में शामिल कई दल जातीय जनगणना के खुले तौर पर समर्थन में हैं। लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान,एनसीपी अध्यक्ष व महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने इसका समर्थन किया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू भी पूरी तरह से जातीय जनगणना के समर्थन में है। ऐसे में आरएसएस का नया स्टैंड, जातीय आधारित जनगणना के पक्ष में एक उम्मीद जगाई है। माना जा रहा है कि बीजेपी भी अपना स्टैंड बदलने का ऐलान कर सकती है।

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