कश्मीर में 10 हजार सैनिकों की तैनाती का आदेश दिया गया है। इसके बाद से घाटी में लोगों के बीच ये अटकलें तेज हैं कि सरकार आर्टिकल 35ए को हटाना चाहती है।
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि अगर कोई पाकिस्तान में जाकर खुद को आजाद समझना चाहता है तो वह वहां जा सकता है। हिंदुस्तान को तोड़कर कोई आजादी नहीं मिलेगी। एक कार्यक्रम के दौरान मलिक ने एक कश्मीरी शॉलवाले के सवाल का जिक्र किया, जिसमें उसने सवाल पूछा था कि क्या अब हम आजाद हो जाएंगे? शॉलवाले के इसी सवाल को याद करते हुए राज्यपाल ने कहा- ''एक शॉलवाला मुझसे करीब एक साल तक पूछता रहा कि साहब हम आजाद हो जाएंगे क्या?'' मैंने उससे कहा- ''तुम तो वैसे भी आजाद हो, पर तुम अगर पाकिस्तान के साथ जाना आजादी समझते हो तो चले जाओ कौन रोक रहा है तुम्हें, पर हिंदुस्तान को तोड़ के आजादी नहीं मिलेगी।''
कश्मीर में 10 हजार सैनिकों की तैनाती के बाद 35ए हटने की अफवाह...
कार्यक्रम में राज्यपाल ने कहा- ''कश्मीर में सब कुछ ठीक चल रहा है और किसी को कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं है। बता दें कि कश्मीर में हाल ही में 10 हजार सैनिकों की तैनाती का आदेश दिया गया है। इसके बाद से घाटी में लोगों के बीच ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकार आर्टिकल 35ए को को हटाना चाहती है।
क्या है आर्टिकल 35ए
भारतीय संविधान का आर्टिकल 35A वो विशेष व्यवस्था है, जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा परिभाषित राज्य के मूल निवासियों (परमानेंट रेसीडेंट) को विशेष अधिकार देता है। यह आर्टिकल 14 मई 1954 को विशेष स्थिति में दिए गए भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आदेश से जोड़ा गया था। 17 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आए जम्मू और कश्मीर संविधान में मूल निवासी को परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक वही व्यक्ति राज्य का मूल निवासी माना जाएगा, जो 14 मई 1954 से पहले राज्य में रह रहा हो, या यह धारा लागू होने से 10 साल पहले से राज्य में रह रहा हो।
संसद की सहमति के बिना लाया गया अनुच्छेद 35ए
अनुच्छेद 35ए को आजादी मिलने के सात साल बाद यानी 14 मई 1954 को संविधान में जोड़ा गया था। इसे जोड़ने का आधार साल 1952 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच हुआ '1952 दिल्ली एग्रीमेंट' था। जिसमें जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में भारतीय नागरिकता के फैसले को राज्य का विषय माना गया। इस अनुच्छेद को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद संविधान में जोड़ा गया था, जो कि नियमों के हिसाब से गलत था। क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 368 के मुताबिक संविधान में कोई भी संशोधन सिर्फ संसद की मंजूरी से ही हो सकता है।