कारगिल विजय के 25 सालः सबसे पहले दुश्मनों को देखने वाले ताशी नामग्याल की जुबानी

ताशी नामग्याल ने सबसे पहले द्रास में पहाड़ियों पर दुश्मन देखे थे। उन्होंने सेना को यह जानकारी दी थी। इसके बाद कारगिल की लड़ाई शुरू हुई। इस जंग में स्थानीय लोगों ने सेना की पूरी मदद की थी।

Vivek Kumar | Published : Jul 25, 2024 10:32 AM IST / Updated: Jul 25 2024, 04:16 PM IST

कारगिल (Report- Anish Kumar)। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2024) है। इस लड़ाई में भारतीय सेना को स्थानीय लोगों से बड़ी मदद मिली थी। बटालिक सेक्टर के गारखुल में रहने वाले ताशी नामग्याल ने द्रास में पहाड़ियों की चोटी पर पहली बार दुश्मनों को देखा था। उन्होंने सेना को जानकारी दी। इसके बाद लड़ाई शुरू हुई थी। स्थानीय लोगों ने सेना को चोटी पर जाने के गुप्त रास्ते बताए थे।

ताशी नामग्याल ने एशियानेट न्यूज के साथ खास बातचीत की। उन्होंने कहा, "2 मई को मैं याक खोजने गया था। मेरे पास दूरबीन थी। मैं याक के पैर के निशान का पीछा करते हुए पहाड़ी पर गया। वहां बर्फ पर रास्ता नजर आया। 6 लोग दिखे। बर्फ हटा था, पत्थर डोल रहा था। मैं वापस आया। मेरे गांव जाने के रास्ते पर एक पुल था। वहां 3-4 जवान रहते थे। मैंने बलविंदर सिंह को बताया कि ऊपर लोग दिखे हैं। इसके बाद लड़ाई शुरू हुई।"

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लड़ाई के दौरान सैनिकों तक राशन-पानी पहुंचाया

नामग्याल ने कहा, "लड़ाई के दौरान मैंने फौज का साथ दिया। राशन-पानी पहुंचाता था। तीन महीने तक रात-दिन लड़ाई हुई। मई से लेकर जुलाई तक जंग हुई। मैं फौज के साथ रहा। दिन में 3-4 बार खाना-पानी लेकर जाता था। गर्म खाना टीन में रखकर ले जाता था, जिससे मेरे पीठ पर जख्म हो गया था। अभी बहुत ठीक है। इंडियन आर्मी की मेहरबानी से सब ठीक है। सुविधाएं भी मिल रहीं हैं।"

स्थानीय पत्रकार ने कहा- यहां के लोगों ने सेना को बताया गुप्त रास्ता

कारगिल की लड़ाई कवर करने वाले स्थानीय पत्रकार गुलाम नबीजया ने एशियानेट न्यूज के साथ खास बातचीत में कहा कि लड़ाई अचानक शुरू हुई थी। शुरू में कहा गया कि 5-6 आतंकी द्रास की पहाड़ियों में घूम रहे हैं। अगले 24 घंटों में कहा गया कि 50-60 लोग हैं। इसी तरह तीन दिन के अंदर युद्ध शुरू हो गया। ये कहा गया कि द्रास की चोटियों पर पाकिस्तान ने कब्जा किया है।"

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गुलाम नबीजया ने कहा, "बड़ी भयानक लड़ाई हुई। यहां हर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया। स्थानीय लोग सुरक्षित स्थानों पर चले लगे। करीब 30 हजार लोगों को जाना पड़ा। स्थानीय युवाओं ने आर्मी का साथ दिया। आर्मी ने इन्हीं पहाड़ियों पर लड़ाई लड़ी। पाकिस्तानी सैनिक चोटियों पर थे। अगर वो पत्थर भी गिराते तो हमारा नुकसान हो सकता था। हमारे सैनिक दुश्मन की गोली से कम, पत्थर और बर्फ से अधिक हताहत हुए। हमारे सैनिक पहाड़ी पर चढ़ते तो दुश्मन ग्रेनेड विस्फोट कर बर्फ गिराते थे। स्थानीय लोगों ने आर्मी का साथ दिया। वो खुफिया रास्ते बताए जहां से जाकर दुश्मन पर हमला किया जा सका। लड़ाई जीतने में आम लोगों का भी अहम रोल निभाया।"

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