मजबूत कैंडीडेट से लेकर लिंगायत तक..., कर्नाटक में भाजपा की हार के जिम्मेदार हैं ये 6 बड़ी वजह

Published : May 13, 2023, 05:28 PM ISTUpdated : May 13, 2023, 05:48 PM IST
Karnataka Election Result

सार

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई है। मजबूत स्थानीय चेहरे की कमी से लेकर लिंगायतों की नाराजगी और पार्टी के अंदर गुटबाजी तक हार के कई कारण हैं। चुनाव से पहले भाजपा ने कर्नाटक के बड़े नेताओं को दरकिनार किया। इसका भारी नुकसान उठाना पड़ा। 

बेंगलुरु। कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के रिजल्ट (Karnataka Vidhansabha Chunav result) आ गए हैं। कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत मिली है। पूरा दम लगाने के बाद भी भाजपा को चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। मजबूत स्थानीय चेहरे की कमी से लेकर लिंगायतों की नाराजगी और पार्टी के अंदर गुटबाजी तक कई ऐसे कारण रहे हैं, जिसके चलते भाजपा अपनी सत्ता नहीं बचा पाई। आइए ऐसे छह प्रमुख कारणों पर नजर डालते हैं।

मजबूत स्थानीय चेहरा नहीं होना

बसवराज बोम्मई की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे उनकी छवि खराब हुई। दूसरी ओर पार्टी ने किसी मजबूत स्थानीय चेहरे को आगे नहीं बढ़ाया। भाजपा ने पूर्व सीएम येदियुरप्पा की जगह बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन वे जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में सफल नहीं हुए। दूसरी ओर कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे।

प्रमुख नेताओं को दरकिनार किया गया

चुनाव से पहले भाजपा ने कर्नाटक के बड़े नेताओं को दरकिनार किया। इसका भारी नुकसान उठाना पड़ा। कर्नाटक में बीजेपी को बड़ी ताकत बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को दरकिनार किया गया। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को टिकट नहीं दिया गया, जिसके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। तीनों नेता बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी लिंगायत समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन नेताओं को दरकिनार किए जाने से भाजपा को नुकसान हुआ।

लिंगायत समुदाय की नाराजगी

लिंगायत समुदाय भाजपा का वोट बैंक माना जा रहा था, लेकिन इस बार पार्टी को लिंगायतों का पूरा समर्थन नहीं मिला। वोट पाने के लिए भाजपा ने कई वादे किए, लेकिन उसे दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदायों का मनचाहा वोट नहीं मिला। इसके साथ ही पार्टी लिंगायत समुदाय से आने वाले अपने मूल वोट बैंक को बनाए रखने में विफल रही। दूसरी ओर कांग्रेस ने मुसलमानों, दलितों और ओबीसी वर्ग को अपने साथ मजबूती से बनाए रखा। कांग्रेस को लिंगायत समुदाय का भी वोट मिला है।

उल्टा पड़ गया धार्मिक ध्रुवीकरण

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया तो भाजपा ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ लिया। इसके साथ ही भाजपा नेताओं ने हिजाब और मुस्लिम आरक्षण जैसे मुद्दों को भी उठाया। बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड जो अन्य राज्यों में काम कर रहा था कर्नाटक में फेल हो गया। धार्मिक ध्रुवीकरण उल्टा पड़ गया।

भ्रष्टाचार के आरोप

कांग्रेस ने भाजपा की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। '40 प्रतिशत सरकार' के टैग को जन-जन तक पहुंचाया। यह धीरे-धीरे लोकप्रिय हुआ और जल्द ही लोगों की नजरों में आ गया। भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर पिछले साल अप्रैल में भाजपा नेता केएस ईश्वरप्पा के मंत्री पद से इस्तीफे ने आग में घी डालने का काम किया।

सत्ता विरोधी लहर

कर्नाटक में भाजपा की हार का प्रमुख कारण सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला न कर पाना भी रहा है। लोगों में भाजपा की सरकार के प्रति नाराजगी थी।

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