सांस्कृतिक चेतना और विभिन्न चर्चाओं के साथ तीन दिवसीय खजुराहो लिटरेचर फेस्टिवल (केएलएफ 2020) समाप्त हो गया। यह फेस्टिवल भारत और भारतीयता के नाम रहा। पहले दिन धर्म पर चर्चा और बहस हुई।
खजुराहो. सांस्कृतिक चेतना और विभिन्न चर्चाओं के साथ तीन दिवसीय खजुराहो लिटरेचर फेस्टिवल (केएलएफ 2020) समाप्त हो गया। यह फेस्टिवल भारत और भारतीयता के नाम रहा। पहले दिन धर्म पर चर्चा और बहस हुई। वहीं, दूसरे दिन लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने लोकगीत गाकर दर्शकों की तालियां बटोरीं। फेस्टिवल मिंट बुंदेला रिजॉर्ट खजुराहो में लोकनीति द्वारा आयोजित किया गया।
आखिरी दिन भारत के ऐसे पिछड़े राज्यों की छवि को लेकर चिंता जताई गई, जिन्हें अक्सर ही अपमानित या उपेक्षित किया जाता है। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर और कश्मीर, लद्दाख शामिल हैं। इन्हें कैसे राष्ट्र की मुख्यधारा में लाया जाए, इस पर भी चर्चा हुई। राज्यों, उनकी पहचान व राष्ट्रीयता के चर्चा सत्र में वरिष्ठ पत्रकार आरती टिक्कू, ऑपइंडिया के संस्थापक राहुल रौशन, एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव खरे और नागा सीजफायर मॉनीटरिंग ग्रुप के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल शोकीन चौहान ने हिस्सा लिया। आरती टिक्कू ने जहां कश्मीरी पंडितों के दर्द की बात की, तो अभिनव खरे ने बिहारी संस्कृति और बिहारियों की पहचान के संकट को प्रमुखता से सामने रखा।
महिलाओं को क्यों नहीं मिलता सम्मान का दर्जा?
अंतिम सत्र बेहद दिलचस्प रहा, इसमें लोकगायिका मालिनी अवस्थी से जानी-मानी टॉक शो होस्ट ऋचा अनिरुद्ध और चर्चित फिल्क ताशकंद फाइल्स के निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने हल्के-फुल्के अंदाज में बातचीत की। मालिनी ने ग्रामीण अंचलों में प्रचलित लोकगीतों को चर्चा के बीच-बीच में न सिर्फ गाकर सुनाया, बल्कि उन गीतों के गहरे अर्थ और मायने भी समझाए। उन्होंने कहा कि महिला सशक्तिकरण की बात बहुत की जाती है, लेकिन किसान की तस्वीर में सिर्फ पुरुष ही क्यों दिखाया जाता है, जबकि खेती-बाड़ी के कार्यों में आधे से अधिक योगदान महिलाओं का रहता है। पुरुष घर-बार छोडक़र चला जाए तो उसे संन्यासी कहा जाता है, जबकि पति की अनुपस्थिति में महिलाएं जब घर चलातीं और बच्चे पालती हैं, तो उन्हें सम्मान का दर्जा क्यों नहीं दिया जाता है।
'महिलाओं ने ही भारतीय संस्कृति को बचाए रखा'
उन्होंने कहा कि पुराने समय के लोकगीतों में गारी बहुत लोकप्रिय होती थीं, जिनके माध्यम से महिलाएं अपने मन की पीड़ा और फ्रस्ट्रेशन को बाहर निकाल देती थीं, जबकि आज लोग अपने मन की बात किसी को नहीं कह पाते और फलस्वरूप तनाव व अवसाद के शिकार हो जाते हैं। उनके हिसाब से महिलाओं ने ही अभी तक भारतीय संस्कृति को बचाए रखा है, वर्ना पुरुष वर्ग तो हमेशा से ही माताओं और पत्नियों का यह कह कर मजाक उड़ाता रहा है कि क्या पूजा पाठ लगा रखा है या लो, शुरू हो गया इनका व्रत-उपवास। कार्यक्रम के अंत में लोकनीति के संस्थापक एवं खजुराहो साहित्य उत्सव के संचालक सत्येंद्र त्रिपाठी ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया और अगले वर्ष फिर से आने का आमंत्रण दिया।