यहां मरने से अच्छा गांव में मरेंगे...भूखे पेट पलायन करने को मजबूर मजदूर और तमाशा देखती उद्धव सरकार

चिलचिलाती धूप के बावजूद भूखे पेट लोग बस अपने घर पहुंचना चाहते हैं। शरीर पसीने से भीगा हुआ, पैरों में चप्पल ना होने के चलते फफोले-छाले पड़ गए हैं। कभी सामान की गठरी सिर पर पहुंच जाती तो कभी थके हुए बच्चे। दिनभर धूप में चलने के बाद रात को खाना भी नसीब नहीं हो रहा...ये नजारे मुंबई के हैं। 

Asianet News Hindi | Published : May 11, 2020 11:46 AM IST / Updated: May 11 2020, 06:50 PM IST

मुंबई. चिलचिलाती धूप के बावजूद भूखे पेट लोग बस अपने घर पहुंचना चाहते हैं। शरीर पसीने से भीगा हुआ, पैरों में चप्पल ना होने के चलते फफोले-छाले पड़ गए हैं। कभी सामान की गठरी सिर पर पहुंच जाती तो कभी थके हुए बच्चे। दिनभर धूप में चलने के बाद रात को खाना भी नसीब नहीं हो रहा...ये नजारे मुंबई के हैं। यहां से बड़ी संख्या में मजदूर उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, ओडिशा के लिए पैदल पलायन कर रहा है। ये दृश्य महाराष्ट्र सरकार की नाकामी बताने के लिए काफी हैं।

उद्धव सरकार पर भरोसा नहीं कर पाए मजदूर
लॉकडाउन के ऐलान के बाद सबसे पहले दिल्ली में मजदूरों का पलायन हुआ था। इसके बाद खुद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने मजदूरों से रुकने की अपील की थी। इसके बाद वहां बड़े पैमाने पर लोगों के लिए खाने और राशन की व्यवस्था की गई। दिल्ली सरकार का दावा है कि हर रोज करीब 10 लाख लोगों को खाना खिलाया गया। इसके अलावा केजरीवाल ने मकान मालिकों से अपील की कि जो बाहर  के लोग किराया नहीं दे पा रहे हैं, उन पर दबाव ना डाला जाए। अगर किराएदार किराया नहीं दे पाएगा तो सरकार देगी।वहीं, दिल्ली के अलावा हरियाणा में खट्टर सरकार और पंजाब में अमरिंदर सरकार ने मजदूरों से पलायन ना करने की अपील की। उन्होंने मजदूरों को भरोसा दिलाया कि लॉकडाउन के बाद उन्हें काम दिया जाएगा। यहां तक की कर्नाटक में तो सरकार ने एक कदम बढ़कर प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन चलाने की अनुमति नहीं दी। हालांकि, बाद में विरोध के बाद फैसला वापस लिया गया। वहीं, उद्धव सरकार कोई भरोसा दिलाने के बजाय मजदूरों को घर भेजने का आश्वासन देते रहे।

 


                       बिना चप्पल पैदल यात्रा करने से मजदूरों के पैरों में छाले पड़ गए हैं।
 

महाराष्ट्र में किस राज्य के कितने मजदूर?
महाराष्ट्र खासकर मुंबई में देश भर से बड़ी संख्या में लोग काम के लिए जाते हैं। जनगणना 2011 के मुताबिक, मुंबई में 1.84 करोड़ जनसंख्या में 47 लाख प्रवासी मजदूर थे। इनमें से सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के 18 लाख, गुजरात के 6.3 लाख, कर्नाटक के 3.8 लाख, राजस्थान के 3.3 लाख, बिहार के 2.2 लाख, बंगाल के 1.98, तमिलनाडु के 1.7 लाख मजदूर मुंबई में थे। 

वहीं, पूरे महाराष्ट्र की बात करें तो  यहां की आबादी 11.23 करोड़ है। 2011 जनगणना के मुताबिक, उस वक्त महाराष्ट्र में दूसरे राज्यों के 90 लाख प्रवासी मजदूर थे। इनमें से सबसे ज्यादा यूपी के 27 लाख, कर्नाटक के 15 लाख, बिहार के 9.8 लाख मजदूर थे। 

क्यों पलायन कर रहे मजदूर?
लॉकडाउन में सभी उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं। रोजगार भी छिन गया। ऐसे में मजदूरों को अपना पेट पालना भी मुश्किल पढ़ रहा है। इसलिए जल्द से जल्द मजदूर अपने घर जाना चाहते हैं। इसके अलाव राज्य सरकार मजदूरों को खाने या राशन की व्यवस्था कराने में असफल रही है। यहीं कारण है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलने के बावजूद बड़ी संख्या में लोग पैदल निकलकर अपने घर जा रहे हैं। औरंगाबाद में हाल ही में हुआ हादसा सरकार की नाकामियों पर मुहर लगाता है। 


         रास्ता ना भटके इसलिए कई मजदूर पटरियों के किनारे किनारे चल रहे हैं


'यहां मरने से अच्छा गांव में मरेंगे'

मजदूरों के पास खाने पीने को कुछ नहीं बचा है। यहां तक की भीख मांगने की नौबत आ गई है। बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर मजदूर पैदल अपने घर की ओर निकल पड़े हैं। दिनभर घूप में चलने के बाद रात में खाना भी नसीब नहीं हो रहा है। कुछ लोग पटरियों के रास्ते चल पड़े हैं। इन लोगों को डर है कि कहीं सड़क के रास्ते पुलिस ना पकड़ ले या फिर ये भटक ना जाएं। मजदूरों का कहना है कि यहां ना किराए के लिए पैसा है, ना कुछ खाने के लिए मिल रहा है। ऐसे में यहां मरने से तो अच्छा है कि गांव में मरेंगे। 
 


            थक जाने के बाद इस तरह नींद पूरी करने को मजबूर हैं ये मजदूर


क्या खुद पलायन चाहते हैं उद्धव ठाकरे?

उद्धव ठाकरे लगातार कह रहे हैं कि मजदूरों को उनके घर भेजा जाएगा। इसके अलावा लॉकडाउन में श्रमिक ट्रेनें चलने से पहले भी वे केंद्र सरकार से लगातार ट्रेनें चलाने की मांग करते रहे। उनकी तरफ से अभी तक ऐसा कोई बड़ा ऐलान नहीं हुआ है, जिससे मजदूर सरकार पर भरोसा कर वहां रुक सकें।

इससे पहले लॉकडाउन के दूसरे चरण में राज्य के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर ट्रेनें चलाने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर घरों से बाहर निकलेगा। ऐसे में कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है। 

व्यवस्था कराने की बजाय केंद्र पर फोड़ा ठीकरा
लॉकडाउन के दूसरे चरण के ऐलान के बाद बांद्रा में बड़ी संख्या में मजदूर पलायन की मांग के साथ इकट्ठा हुए थे। इस दौरान उद्धव सरकार ने मजदूरों को व्यवस्था देने के बजाय केंद्र सरकार पर ट्रेनें ना चलाने का बहाना बनाकर पलायन का ठीकरा फोड़ दिया। बताया जा रहा है कि उद्धव सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए खाने तक का सही से इंतजाम नहीं कर पाई। 

मजदूरों के पलायन पर उद्धव के मंत्री ही नाराज
महाराष्‍ट्र में जारी मजदूरों के पलायन को लेकर उद्धव कैबिनेट में मंत्री छगन भुजबल अपनी सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने लॉकडाउन को लेकर जारी निर्देशों के लिए नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने कहा था, महाराष्ट्र से मजदूरों के पलायन की तस्वीरें राज्य सरकार के लिए अशोभनीय हैं। यह देखकर मन बेचैन है। उन्होंने कहा था, प्रशासन के विरोधाभाषी आदेशों के चलते राज्य में अफरातफरी का माहौल बना है। 

 


                                                      मजदूर कैंप 

शिविरों में रह रहे 6 लाख मजदूर 

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में शिविरों में करीब  6.5 लाख मजदूर हैं। सरकारी और गैर सरकारी संगठन इन मजदूरों के लिए व्यवस्था कर रहे हैं। ये लोग लॉकडाउन लगने के बाद से कैंपों में हैं।  

कोरोना पर काबू पाने में भी नाकाम उद्धव सरकार
भारत में कोरोना संक्रमण के 67700 मामले सामने आ चुके हैं। इन मामलों का करीब 32% सबसे प्रभावित महाराष्ट्र में हैं। महाराष्ट्र में अन्य राज्यों की तुलना में रिकवरी रेट भी काफी कम है। यहां सिर्फ 18.94% की दर से मरीज ठीक हो रहे हैं। जबकि अन्य राज्यों की बात करें तो केरल में यह 95% तो राजस्थान में यह 55% है। आंकड़े बताते हैं कि अब तक कोरोना को काबू करने के मामले में भी उद्धव सरकार फेल नजर आ रही है।

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