महाश्वेता घोष पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने मैराथन डेस सैबल्स (MDS) को पूरा किया है। महाश्वेता ने शौकिया धावक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी। उन्होंने सरकार से मैराथन को बढ़ावा देने की अपील की है।
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में रहने वालीं महाश्वेता घोष पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने मैराथन डेस सैबल्स (MDS) को पूरा किया है। सात दिन तक चलने वाले इस मैराथन को दुनिया के सबसे कठिन मैराथनों में से एक माना जाता है।
44 साल की महाश्वेता ने एक दशक पहले शौकिया धावक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी। अब वह प्रोफेशनल रनर के रूप में मैराथन में हिस्सा लेती हैं। उन्होंने सरकार से मैराथन को बढ़ावा देने की अपील की है। महाश्वेता ने कहा कि ऐसा होने पर महिलाएं मैराथन को करियर के रूप में ले सकती हैं।
मोरक्को में आयोजित हुआ 37वां मैराथन डेस सैबल्स
महाश्वेता एकमात्र भारतीय महिला हैं, जिन्होंने पिछले महीने ही मैराथन डेस सैबल्स को पूरा किया। वह अब बर्लिन में होने वाले मैराथन में हिस्सा लेंगी। 37वें मैराथन डेस सैबल्स का आयोजन मोरक्को के मेर्जौगा ड्यून में हुआ था। इस मैराथन में भाग लेने वालों को कठोर परिस्थितियों का सामना करना होता है। उन्हें रेत के टीले और चट्टानों को पार करना होता है। मैराथन ऐसे इलाके में आयोजित किया जाता है जहां दौड़ने वालों को मोबाइल नेटवर्क तक नहीं मिलता। वे दुनिया से कटे रहते हैं। हर रनर को खुद पर ही निर्भर रहना होता है। वह सात दिन तक दौड़ने के लिए अपना भोजन-पानी और अन्य सामान साथ ले जाता है।
महाश्वेता बोलीं जरूरी सामान पीठ पर लादकर दौड़ना होता है
महाश्वेता ने बताया कि धावकों को सात दिन तक काम आने वाले सभी जरूरी सामान पीठ पर लादकर दौड़ना होता है। इसमें भोजन, कपड़े, स्टोव और दूसरी चीजें होती हैं। महाश्वेता मैराथन पूरा करने पर बेहद खुश हैं। उन्होंने कहा कि मैं नेटफ्लिक्स पर "लूजर" नाम की एक सीरीज देखकर इस मैराथन में दौड़ने के लिए प्रेरित हुई थी। यह शरीर के साथ ही दिमाग की सच्ची परीक्षा थी।
परिवार के लोगों ने किया था महाश्वेता के मैराथन में हिस्सा लेने का विरोध
महाश्वेता एक टेक्नोक्रेट हैं। उनके लिए मैराथन में हिस्सा लेना आसान नहीं था। परिवार के लोग विरोध कर रहे थे। बचपन में महाश्वेता का वजन अधिक था। उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी थी, जिसके चलते सर्जरी भी हुई थी। एक दोस्त से प्रेरित होकर महाश्वेता ने 2012 में दौड़ना शुरू किया था। इसके बाद से यह उनके लिए जुनून बन गया। उन्होंने भारत और विदेश में 50 से अधिक मैराथन में हिस्सा लिया है।
महाश्वेता ने कहा, "मैंने 50 से अधिक दौड़ें पूरी की हैं, इनमें 3 विश्व की बड़ी प्रतियोगिताएं शामिल हैं। मैंने मैराथन, अल्ट्रा और ट्रेल रन में हिस्सा लिया है। पोखरण में 75 किमी डेजर्ट रन किया था। वहीं, कोरोना महामारी के दौरान 100 किमी सोलो रन किया था।"
मैराथन में भाग लेने में खर्च होते हैं लाखों रुपए
मैराथन में भाग लेने वाले धावकों के सामने पैसे की चुनौती भी होती है। मैराथन के लिए रजिस्ट्रेशन कराने और तैयारी करने पर लाखों रुपए खर्च होते हैं। महाश्वेता ने सरकार से समर्थन की अपील की। उन्होंने कहा, "इस तरह के आयोजनों के लिए पंजीकरण की लागत 3000+ यूरो होती है। इसके साथ ही हमें विशेष किट और ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है। मैं भाग्यशाली हूं कि मैं काम कर रही हूं। मैं इन खर्चों को पूरा करने के लिए नौकरी कर रही हूं। सरकार से मेरा आग्रह है कि इस तरह के आयोजन में हिस्सा लेने वालों को प्रोत्साहित करे।"
सात दिनों में 256 किलोमीटर लंबी मैराथन पूरी करने के बाद महाश्वेता इस मिथक को दूर करना चाहती है कि महिलाएं इस तरह के आयोजन में हिस्सा नहीं ले सकतीं, खासकर 40 साल की उम्र के बाद। अब आगे क्या करना है। इसपर महाश्वेता ने कहा कि बर्लिन में होने वाले मैराथन के लिए तैयारी कर रही हूं।