मोहब्बत की दूकान कहां थी जब वरुण गांधी ने शादी में बुलाया...BJP सांसदों ने राहुल गांधी को लेटर में क्या लिखा, 9 Page पूरा पढ़िए

राहुल गांधी को लेटर लिखने वाले सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, पूनम महाजन और परवेश सिंह वर्मा हैं।

BJP MPs letter to Rahul Gandhi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हालिया मोहब्बत की दूकान वाले बयान पर बीजेपी ने जोरदार ढंग से हमला बोला है। बीजेपी के 3 सांसदों ने गुरुवार को राहुल गांधी को लेटर लिखकर आरोप लगाया कि कांग्रेस के राज में देश में सबसे अधिक दंगे हुए, नफरत की दुकानें सजाई गई। नेहरू-गांधी परिवार ने कांग्रेसी नेताओं के साथ बदसलूकी की। 

किसने लिखी है चिट्ठी?

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राहुल गांधी को लेटर लिखने वाले सांसदों में पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़, पूनम महाजन और परवेश सिंह वर्मा हैं। पूनम महाजन, बीजेपी के कद्दावर नेता रहे प्रमोद महाजन की सुपुत्री हैं तो परवेश वर्मा, दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के पुत्र हैं। वह वर्तमान में दिल्ली से सांसद हैं।

पढ़िए पूरा लेटर....

प्रिय राहुल जी,

आशा है आप स्वस्थ और सानंद होंगे।

आपकी मोहब्बत की दुकान के बारे में सुनकर बहुत अच्छा लगा। सचमुच मोहब्बत में परस्पर जोड़ने की भावना निहित है। कांग्रेस यदि वास्तविकता में इसी पॉजिटिव सोच पर चले तो वाकई कितना बेहतर हो। लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है!

अमेरिका में आपने इस 'मोहब्बत की दुकान' से अपनी मातृभूमि और देश के लिए जी भरकर नफरत फैलाई है। वैसे नफरत फैलाना आपके परिवार और आपकी पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं है। अपने ही परिवार के इतिहास के पन्ने पलटिए तो वो चीख-चीखकर नफरत के किस्सों की गवाही देंगे। आपका ध्यान उन चार ऐसे विषयों की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं, जिसे देखकर हर किसी को समझ में आएगा किआपकी मोहब्बत की दुकान की असलियत क्या है।

1. कांग्रेस के राज में ही सबसे अधिक दंगे हुए और नफरत की दुकानें सजाई गई।

2. नेहरू-गांधी परिवार ने कांग्रेसी नेताओं के साथ किस प्रकार की बदसलूकी की।

3. आपके परिवार ने अपनों से किस प्रकार का अमानवीय बर्ताव किया।

4. देश की महान विभूतियों के प्रति आपके परिवार की नफरत आज भी प्रकट होती है।

'मोहब्बत' में नरसंहार

आपको मोहब्बत की दुकान पर बात करने से पहले कांग्रेसराज में हुए नरसंहारों के बारे में जरूर जानना चाहिए। वह चाहे पं. नेहरू हों या आपके पिता राजीव गांधी, इन्होंने न सिर्फ हजारों निर्दोष लोगों के कल्लेआम को जायज ठहराया, बल्कि नफरत की आग को और तेजी से भड़काया। आपको याद दिला दें कि आजाद भारत में पहला नरसंहार नेहरू जी के ही कार्यकाल में हुआ था। 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसके पीछे मोहब्बत का पैगाम देने वाले कांग्रेसी ही थे। पिता की तरह बेटी इंदिरा गांधी भी देश के साधु-संतों के खिलाफ थी। उनके राज में साधु-संत गोलीबारी के शिकार बने। 

कांग्रेस की तो दलितों के प्रति मोहब्बत की भी खून से सनी कई दास्ताने हैं। जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी, 9 मई, 1980 को अल्मोड़ा में में शामिल 14 दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। वहीं फिरोजाबाद में 30 दिसंबर, 1981 को दलित समाज के 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

यह यहीं नहीं थमा जनसंहार को बढ़ावा देने का जुनून पं. नेहरू और इंदिरा गांधी से होते हुए आपके पिता राजीव गांधी तक भी आया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और फिर सिखों के कल्लेआम के बाद 19 नवंबर को दिल्ली के बोट क्लब में उनका भाषण बताता है कि उन्होंने विरासत में मिली नरसंहार की परंपरा को कितना सहेजकर रखा था। आप ही बताइए कि भाषण का यह हिस्सा आखिर किस की मोहब्बत की बात करता है- “जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फसाद हुए थे। हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना गुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।”

कांग्रेस की सियासी 'मोहब्बत'

आपकी कांग्रेस पार्टी की तो शुरू से परंपरा रही है कि वो अपने वरिष्ठ नेताओं को भी नहीं बनती है। उनके निधन के बाद ही नहीं, जीते-जी भी उनका अपमान करती रही है। शुरुआत पं. नेहरू से ही करते हैं। नेहरू जी के दिल में न जाने ये कैसी मोहब्बत थी कि उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सलाह दी कि वो सरदार वल्लभभाई पटेल के अंतिम संस्कार में न जाएं। देश के लौहपुरुष के प्रति नेहरू जी और आपकी पार्टी का नफरत का भाव कुछ ऐसा था कि कांग्रेस शासन में उन्हें भारत रत्न देने के बारे में सोचा तक नहीं गया। ऐसे में जो सम्मान 1950 के दशक में ही उनके नाम होना चाहिए था. वह वर्ष 1991 में जाकर उन्हें दिया गया।

पं. नेहरू की नफरत की आग से तो हमारे संविधान के निर्माता भी नहीं बच पाए थे। राजनीति की मुख्यधारा से डॉ. अम्बेडकर को केवल इसलिए दूर रखने का हरसंभव प्रयास किया गया, क्योंकि वे हर मामले में नेहरू से कहीं अधिक योग्य थे। बाबासाहेब से तिरस्कार के इस भाव को परिवार की अगली पीढ़ियों ने भी अपनाए रखा। साल 1990 में उन्हें भारत रत्न से भी तब नवाजा जा सका, जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी थी।

राहुल जी, जब आप मोहब्बत की दुकान खोलने की बात करते हैं तो तुरंत वह तस्वीर भी उभरती है कि आपकी दादी ने किस प्रकार देश के लोकतंत्र को 19 महीनों तक अपनी मुट्ठी में कैद रखा था। देश और देशवासियों से नफरत के उस काले चैप्टर को देखते हुए आपकी मोहब्बत एक कॉमेडी से ज्यादा कुछ नहीं लगती!

आज जैसे गांधी परिवार से बाहर के मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस अध्यक्ष हैं. वैसे ही कभी सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष हुआ करते थे। केसरी जी को बेइंतहा बेइज्जती के साथ कांग्रेस अध्यक्ष पद से बेदखल किया गया था। कांग्रेसियों ने उनकी धोती तक खोल दी थी और बाथरूम में बंद कर दिया था। यह बात 1998 की है। तब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की 142 सीट आई थी। हार का ठीकरा गांधी परिवार ने सीताराम केसरी पर फोड़ दिया। केसरी जी को अपमानित कर हटाने के बाद प्रणब मुखर्जी के प्रस्ताव पर सोनिया गांधी पहली बार पार्टी अध्यक्ष बनी थीं।

कांग्रेस ने तो सारी संवेदनाओं को तिलांजलि देते हुए 2004 में अपनी मोहब्बत की दुकान पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के लिए भी लगाई थी। इसकी पोल ऑप की ही पार्टी की नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी किताब Courage and Commitment में खोली थी। इसमें उन्होंने लिखा, पीएम राव का पार्थिव शरीर एआईसीसी कैंपस में भी नहीं जाने दिया गया था। 

और आप किस मोहब्बत की बात करते हैं। अपने जीवन की आधी सदी से ज्यादा कांग्रेस को समर्पित करने वाले गुलाम नबी आजाद के साथ आपने क्या किया, याद है ना! आजाद ने तो आपको जी23 की चिठ्ठी लिखकर पार्टी के हालातों का आईना ही दिखाया था। आपको यह रास नहीं आया और उन्हें पिछले साल अपना ही 'घर' छोड़ने को मजबूर कर दिया।

कांग्रेस के लिए तो पार्टी के सबसे वयोवृद्ध नेता का अपमान करना कोई बड़ी बात नहीं है। ताजा उदाहरण मल्लिकार्जुन खरगे का है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान किस प्रकार खरगे जी चिलचिलाती धूप में खड़े रहे। कड़ी धूप में बेहाल होकर वे कांग्रेस की 'मोहब्बत को तरसते रहे। लेकिन कांग्रेस की मोहब्बत की छतरी की छाया सिर्फ आपकी मां राजमाता को ही दी गई।

खून के रिश्तों से भी नफरत

आपके दिलों में तो अपनों के लिए भी मोहब्बत नजर नहीं आती। आपको भी शायद 28 मार्च, 1982 की वह तारीख याद हो। जब आपकी दादी अपनी छोटी बह मेनका गांधी से इतनी 'मोहब्बत' से पेश आई थीं कि रातोंरात उन्हें घर से निकाल दिया था। तब देशभर के तमाम अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर एक ही तस्वीर थी। उस तस्वीर में थीं प्रधानमंत्री निवास से आँखों में बेबसी के आंसू और मायूस चेहरे के साथ बेघर हो रही मेनका गांधी। गोद में था नन्हा बेटा वरुण, जो उस वक्त तेज बुखार से तप रहा था। आपके भाई वरुण गांधी अपनी शादी का न्योता लेकर खुद अपनी लाई सोनिया के घर 10 जनपथ गए थे। मोहब्बत के रिश्तों को निशाने के लिए न आप और न ही आपकी मां और बहन इस शादी में शामिल हुई। जबकि इंदिरा गांधी से मिले असहनीय अपमान के बावजूद प्रियंका गांधी की शादी में वरुण गांधी शामिल हुए थे।

वीरता की विभूतियों का अपमान

देश को 1971 के भारत-पाक युद्ध में शानदार जीत दिलाने वाले सेना प्रमुख और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को 32 सालों के बाद उनका हक तब मिला, जब एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने। यह भी जान लीजिए कि देश को आजादी दिलाने के आंदोलन में वर्षों तक काला पानी की सजा पाने वाले वीर सावरकर के प्रति भी आपकी खुद की मोहब्बत किन अल्फाजों में अभिव्यक्त होती हैं, 'मेरा नाम सावरकर नहीं है। मैं गांधी हूं। मैं माफी नहीं मांगूंगा।'

राहुल जी आपकी और आपकी पार्टी की मोहब्बत की इतनी सारी मिसालें हैं, जिनको लेकर हम तो बस यही कह सकते हैं- "हमको नफरत करने से फुरसत न मिली दोस्तो. वरना ये बताते कि मोहब्बत किसको कहते हैं!"

उम्मीद है कि अपने परिवार और कांग्रेस की मोहब्बत के ऐसे सभी उदाहरणों को आप गंभीरता से लेंगे। इसके साथ ही आपसे आशा है कि 'मोहब्बत की दुकान' के नाम पर नफरत का जहर बोने के बजाए आप शांति, सद्भाव और एकता की देश की भावना को समझने का प्रयास करेंगे।

 

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