NCERT की किताब में फिर बदलाव: अब आडवाणी की रथ यात्रा हटा, बाबरी मस्जिद की जगह लिखा तीन गुंबद वाला ढांचा

बाबरी मस्जिद की जगह पर अब छात्र, तीन गुंबदों वाला ढांचा पढ़ेंगे। एनसीईआरटी की किताबों में किए गए इस व्यापक स्तर पर बदलाव को लेकर डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी का मानना है कि स्कूलों में दंगों के बारे में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए?

Dheerendra Gopal | Published : Jun 16, 2024 6:31 PM IST

NCERT syllabus changed again: एनसीईआरटी के सिलेबस में एक बार फिर बदलाव कर दिया गया है। अब क्लास 12 की किताब में स्टूडेंट बाबरी मस्जिद विध्वंस और बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रामरथ यात्रा का संदर्भ नहीं पढ़ सकेंगे। इन दोनों संदर्भों को हटा दिया गया है। बाबरी मस्जिद की जगह पर अब छात्र, तीन गुंबदों वाला ढांचा पढ़ेंगे। एनसीईआरटी की किताबों में किए गए इस व्यापक स्तर पर बदलाव को लेकर डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी का मानना है कि स्कूलों में दंगों के बारे में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए? देश के स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों को पॉजिटिव नागरिक बनाना है न कि हिंसक और अवसादग्रस्त इंसान।

क्या-क्या बदला?

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एनसीईआरटी की किताबें, देश में सीबीएसई बोर्ड संबद्ध 30 हजार से अधिक स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं। एनसीईआरटी ने लगातार चौथी बार किताबों के सिलेबस में फेरबदल किए हैं। 12वीं की पॉलिटिकल साइंस की किताब से बाबरी मस्जिद, भगवान राम, श्रीराम, रथ यात्रा, कारसेवा, विध्वंस के बाद हिंसा की जानकारियों के बारे में हटा दिया गया है। किताब में बाबरी मस्जिद की बजाय तीन गुंबद वाला ढांचा लिखा गया है। अयोध्या विवाद की बजाय इस बार उसे अयोध्या विषय लिखा गया है। यह टॉपिक पहले चार पेज में था लेकिन उसे कम करते हुए दो पेज का कर दिया गया है।

पुरानी किताब में दो से ज्यादा पन्नों से फैजाबाद जिला अदालत के आदेश पर फरवरी 1986 में मस्जिद के ताले खोले जाने के बाद दोनों तरफ की लामबंदी की डिटेल जानकारी दी गई थी। इसमें सांप्रदायिक तनाव, सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा, दिसंबर 1992 में राम मंदिर निर्माण के लिए स्वयंसेवकों की गई कार सेवा, मस्जिद का विध्वंस और उसके बाद जनवरी 1993 में हुई सांप्रदायिक हिंसा का जिक्र किया गया था। इसमें बताया गया था कि कैसे भाजपा ने अयोध्या में हुई घटनाओं पर खेद जताया था। अब इसे भी हटा दिया गया है।

न्यूजपेपर्स की क्लिपिंग की फोटोज भी हटी

पुरानी किताब में अखबारों में छपे आर्टिकिल्स की क्लिपिंग की फोटोज थी। इनमें 7 दिसंबर 1992 का एक लेख भी शामिल था जिसका शीर्षक था- बाबरी मस्जिद ढहाया, केंद्र ने कल्याण सरकार को किया बर्खास्त (Babri Masjid demolished, Centre sacks Kalyan Govt)। 13 दिसंबर 1992 के एक अन्य शीर्षक में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हवाले से कहा गया था कि अयोध्या बीजेपी का सबसे खराब अनुमान (Ayodhya BJP’s worst miscalculation)। नई बुक में सभी अखबारों की कतरनें हटा दी गई हैं।

क्या है एनसीईआरटी डायरेक्टर का कहना?

किताबों में संशोधन को एनसीईआरटी डायरेक्टर एक सामान्य प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं कि हमें स्कूली किताबों में दंगों के बारे में क्यों पढ़ाना चाहिए? हम सकारात्मक नागरिक बनाना चाहते हैं, न कि हिंसक और अवसादग्रस्त इंसान। क्या हमें अपने छात्रों को इस तरह पढ़ाना चाहिए कि वे आक्रामक हो जाएं, समाज में नफरत पैदा करें या नफरत का शिकार बनें? क्या यही शिक्षा का उद्देश्य है? क्या हमें ऐसे छोटे बच्चों को दंगों के बारे में पढ़ाना चाहिए। जब वे बड़े होंगे तो वे इसके बारे में जान सकते हैं लेकिन स्कूली पाठ्यपुस्तकों में क्यों? उन्हें बड़े होने पर यह समझने दें कि क्या हुआ और क्यों हुआ। बदलावों के बारे में शोर-शराबा अप्रासंगिक है।

एनसीईआरटी डायरेक्टर ने कहा कि किताब में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अगर सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर, बाबरी मस्जिद या राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला दिया है तो क्या इसे हमारी पाठ्यपुस्तकों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए इसमें क्या समस्या है? हमने नए अपडेट शामिल किए हैं। अगर हमने नई संसद का निर्माण किया है तो क्या हमारे छात्रों को इसके बारे में नहीं पता होना चाहिए? प्राचीन घटनाक्रम और हाल के घटनाक्रमों को शामिल करना हमारा कर्तव्य है।

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